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सुनहरे सपनों अधूरे बन कर रह गया सीतामढ़ी-निर्मली रेलखंड

जब विकास की कोई योजना धरातल पर उतरती है तो क्रेडिट लेने की होड़ मच जाती है।

By JagranEdited By: Updated: Mon, 08 Apr 2019 12:55 AM (IST)
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सुनहरे सपनों अधूरे बन कर रह गया सीतामढ़ी-निर्मली रेलखंड

सीतामढ़ी। जब विकास की कोई योजना धरातल पर उतरती है तो, क्रेडिट लेने की होड़ मच जाती है। कोई नेता स्वीकृति दिलाने की तो कोई उद्घाटन की जिम्मेदारी लेने से पीछे नहीं हटते है। लेकिन जब कोई योजना शिलान्यास तक ही सिमट कर रह जाए तो इसका जवाब देने की भी कोई नेता जहमत नहीं उठाता है। कुछ ऐसा ही हाल है सीतामढ़ी-निर्मली रेलखंड का। शिलान्यास के ग्यारह साल बाद भी यह रेल परियोजना सर्वे से आगे नहीं निकल सकी है, वह भी 20 किमी तक। यह बात दीगर है कि साल दर साल रेल बजट में इस रेलखंड को कुछ फंड जरुर मिले है। 11 साल बीत जाने के बाद भी यह रेल लाइन विकास के सुनहरे सपनों की मजार बन कर रह गई है। जबकि जनता के समक्ष कई सवाल उठा रही है।

रपट सागर कुमार की।

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तत्कालीन रेलमंत्री लालू प्रसाद ने किया था शिलान्यास सीतामढ़ी-निर्मली रेलखंड की स्वीकृति साल 2007 में मिली थी। 5 जनवरी 2008 को तत्कालीन रेलमंत्री लालू प्रसाद ने सुरसंड में इसका शिलान्यास किया था। 188.9 किमी लंबी रेल लाइन में तकरीबन 80 किमी का क्षेत्र सीतामढ़ी जिले के अधीन पड़ता है। जबकि शेष इलाका निर्मली और जयनगर के क्षेत्र में है। सीतामढ़ी को सुरसंड, मधुबनी और नेपाल के इलाकों से जोड़ने के उद्देश्य से इस रेलखंड की स्वीकृति मिली थी। इसके साथ ही सुरसंड समेत आसपास के लोगों में पटरी पर ट्रेन के दौड़ने की जो उम्मीदें जगी थी, अब इंतजार दर इंतजार समाप्त हो गई।

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चार साल तक खटाई में पड़ी रही योजना जयनगर और निर्मली रेलखंड का 2008 में शिलान्यास के चार साल तक यह परियोजना खटाई में पड़ी रही। 12 जून 2012 को पलामू की एक कम्पनी ने सर्वे शुरू किया। सर्वे कंपनी के ई. विजय कुमार और रेलवे अभियंता विनोद कुमार ने संयुक्त रूप से डुमरा प्रखंड के अमघट्टा रेलवे गुमटी के 101.7 किमी के नजदीक से स्लिप लैंड प्लान का सर्वे किया गया। वहीं काम का जिम्मा रेलवे के मुख्य अभियंता एस चिटौरिया को सौंपा गया था। निर्माण की बागडोर डिप्टी चीफ इंजीनियर संजय कुमार व वरिष्ठ अनुभाग अभियंता निर्माण विनोद कुमार की निगरानी में उक्त परियोजना को पूरा करना था। हालांकि बाद में डिप्टी चीफ इंजीनियर आसित कुमार और वरिष्ठ अनुभाग अभियंता प्रेम रंजन को जिम्मेदारी दी गई। भूमि अधिग्रहण के लिए 20 किलो मीटर का लैंड प्लान तैयार कर विभाग को भेज दिया गया। 20 किमी के लिए भू-अर्जन को लेकर संबंधित विभाग ने 105 करोड़ रुपये की डिमांड की। लेकिन पैसा नहीं मिलने के कारण एक तरफ काम रुक गया तो दूसरी तरफ वर्ष 2016 में संबंधित विभाग ने 105 करोड़ के जगह 263 करोड़ की डिमांड कर डाली। जबकि भूमि अधिग्रहण के लिए रेलवे ने 14 करोड़ रुपये बतौर चेक के माध्यम से जनवरी 2013 में जिला भू-अर्जन विभाग को दिया गया था, जो अब भी जमा है। इन इलाकों को किया गया था शामिल

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108.9 किमी लंबी जयनगर और निर्मली रेलखंड में सीतामढ़ी से अमघटा होते हुए भैरोकोठी, बरियारपुर, बथनाहा, लत्तीपुर, दिग्घी, गोनाही, बेला, परसा, दोस्तिया, चिलरा, हरिहरपुर, दलकावा, राजबाड़ा, पकड़िया, नरंगा, परिहार, मसहा, बनौली, सुरसंड, भिट्ठामोड व चोरौत के अलावा जयनगर व निर्मली का इलाका शामिल है। अब तक 123 करोड़ 20 लाख की राशि आवंटित सीतामढ़ी-निर्मली रेलखंड परियोजना अब तक अटकी पड़ी है। हालांकि साल 2013-2014 से बजट में हर साल इस परियोजना के लिए कुछ रकम जरुर दी गई। अब तक इस रेलखंड को लेकर रेलवे ने 123 करोड़ 20 लाख की राशि का आवंटित कर चुकी है। जनवरी 2013 को 14 करोड़ की राशि जिला भू-अर्जन को दिया गया। जबकि वर्ष 2012-2013 में 30 करोड़, 2013-2014 में 90 करोड़, वर्ष 2014-2015 में एक करोड़, वर्ष 2015-2016 में 10 लाख, वर्ष 2016-2017 में एक करोड़, वर्ष 2018-2019 में 10 लाख व वर्ष 2019-2020 के बजट में मात्र एक करोड़ की राशि आवंटित की गई।

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