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Gandhi Jayanti 2023: बापू की यादों का घर है बिहार का सिवान जिला, आज भी सुरक्षित हैं सत्याग्रह की सुनहरी यादें

चंपारण सत्याग्रह के दौरान महात्मा गांधी सिवान की धरती पर आए थे। इस दौरान उन्होंने सिवान के महाराजगंज बसंतपुर गोरेयाकोठी हुसैनगंज मैरवा और देश के पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र बाबू के घर पर ठहराव किया था। उनके आगमन और आह्वान पर लोग देश की आजादी के लिए अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ उतर गए जिससे जैसा सहयोग हुआ उसने बापू की लड़ाई को धार देने में किया।

By Ramesh KumarEdited By: Mohit TripathiUpdated: Sun, 01 Oct 2023 07:11 PM (IST)
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हुसैनगंज के फरीदपुर स्थित मौलाना मजहरुल हक साहब का आशियाना। जागरण फोटो

जागरण टीम, सिवान। चंपारण सत्याग्रह के दौरान महात्मा गांधी सिवान की धरती पर आए थे। उनके आगमन और आह्वान पर लोग देश की आजादी के लिए अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ उतर गए, जिससे जैसा सहयोग हुआ उसने बापू की लड़ाई को धार देने में किया।

यही कारण है कि आज भी बापू की यादों को राजेंद्र बाबू का मकान जीवंत रखे हुए हैं। जिस चौकी पर बैठकर बापू ने मौन व्रत रखा वह आज भी सुरक्षित है। मैरवा के जिस स्याही पुल किनारे बैठकर लोगों को एकजुट किया वहां आज लोग अक्सर बैठ उनकी बातें करते हैं।

चौकी पर बैठ बापू ने रखा था 24 घंटे का मौनव्रत

संवाद सूत्र, जीरादेई (सिवान): देशरत्न डॉ. राजेंद्र प्रसाद के गांव जीरादेई आने पर यह बापू की भी यादों से लोगों को अवगत करता है। महात्मा गांधी का 1927 में जीरादेई आगमन स्वतंत्रता संग्राम में मिल का पत्थर साबित हुआ। महात्मा गांधी तीन दिन प्रथम राष्ट्रपति देशरत्न डॉ. राजेंद्र प्रसाद के पैतृक आवास में ठहरे व 24 घंटे मौन व्रत पर रहे थे।

जिस चौकी पर बापू ने बैठ कर मौनव्रत रखा वह आज भी यहां सुरक्षित है। उस पवित्र चौकी को परिवर्तन संस्था के संस्थापक संजीव कुमार सिंह ने पुरातत्व विभाग से आदेश निर्गत कराकर शीशा से घेराबंदी कराकर उस पर चादर बिछवा दिया है ।

10 वर्ष पूर्व जब मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जीरादेई बाबू के आवास में आए थे तो उनको बैठने के लिए सोफे की व्यवस्था की गई थी, लेकिन उन्होंने सोफा छोड़कर इस चौकी पर ही बैठ पत्रकार वार्ता की।

देशरत्न के पैतृक संपत्ति के प्रबंधक 90 वर्षीय बच्चा सिंह ने बताया कि मेरे पिता कहते थे कि महात्मा गांधी, बाबू (डॉ. राजेंद्र प्रसाद के पुकार का नाम) के घर रुके थे तथा सुबह शाम प्रार्थना भी करते थे।

उन्होंने बताया कि बापू ने ग्रामीणों से बात कर साफ सफाई व स्वावलंबी बनने की शिक्षा दिए तथा राष्ट्रीय चेतना भरने का काम किए।


जीरादेई स्थित देशरत्न डा. राजेंद्र प्रसाद के आवास स्थित चौकी जिस पर राष्ट्रपिता महात्मा गांधी जी बैठे थे। (जागरण फोटो)

बापू के आगमन की याद दिलाता खोरीपाकड़ का तालाब

संवाद सूत्र, बसंतपुर (सिवान): 1926 में जब डॉ. राजेंद्र प्रसाद के साथ महात्मा गांधी का आगमन चंपारण से खोरीपाकड़ हुआ था, इस दौरान महात्मा गांधी व राजेंद्र बाबू ने इसी तालाब में स्नान किए थे।

बापू के आगमन को ले स्थानीय जमींदार कपिलदेव सिंह द्वारा खोरीपाकड़ में अस्थाई शिविर का निर्माण कराया गया था, जहां तिरंगा फहराकर राष्ट्रगान गाया गया था तथा सैकड़ों लोगों ने कांग्रेस की सदस्यता ली थी।

बापू के आगमन की निशानी है बसंतपुर का गांधी आश्रम

बापू के खोरीपाकड़ आने के बाद काफी संख्या में यहां स्वतंत्रता सेनानियों ने उनसे प्रभावित होकर आजादी की लड़ाई में अपना बलिदान दिया। उनके साथ कुछ जेल भी गए, आजादी के बाद बसंतपुर की सुथरा कुंवर ने दो कट्ठा जमीन गांधी सेवा आश्रम के लिए दान दिया जहां गांधी आश्रम की स्थापना की गई।

काफी दिनों तक उपेक्षित रहने पर वहां स्थानीय सांसद जनार्दन सिंह सिग्रीवाल द्वारा गांधी आश्रम का निर्माण कराया गया है, लक्ष्मण सिंह द्वारा बापू की प्रतिमा तथा स्मारक का निर्माण कराया गया है। अब यहां धीरे-धीरे विकास की गति बढ़ रही है।

मैरवा में गांधी चबूतरा स्वतंत्रता संग्राम का साक्षी

संवाद सूत्र, मैरवा (सिवान): सिवान के मैरवा धाम स्थित मध्य विद्यालय के परिसर में स्थित गांधी चबूतरा स्वतंत्रता संग्राम की यादें समेटे हुए है। महात्मा गांधी ने स्वतंत्रता संग्राम के दौरान मैरवा के लोगों को संबोधित करते हुए नशा उन्मूलन का आह्वान किया था। इस चबूतरे के निकट जिस जगह पर गांधी ने सभा की थी उसे 'मोर्चा' के नाम से जाना जाता है।

सभा कर बापू ने स्वतंत्रता संग्राम के आंदोलन को तेज करने को कहा था जिसका यहां के लोगों पर काफी असर हुआ था। स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास के इस धरोहर को संजोते हुए नवीस के मुख्य मार्गदर्शक समाजसेवी डा. बच्चा प्रसाद (अब जीवित नहीं) के सहयोग से गांधी स्मारक एवं प्रतिमा का निर्माण कर अनावरण दो अक्टूबर 2017 को कराया गया था।

आज इस चबूतरे पर राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की प्रतिमा स्थापित है। पहले यह चबूतरा जीर्ण-शीर्ण स्थिति में था। दैनिक जागरण के प्रयास से इसका जीर्णोद्धार हुआ। इसके पहले इस चबूतरे के ऐतिहासिक महत्व से नाम मात्र के लोग अवगत थे।

मैरवा में गांधी चबूतरे पर स्थापित बापू की प्रतिमा। (जागरण फोटो)

दैनिक जागरण ने स्वतंत्रता संग्राम के प्रत्यक्षदर्शी रहे वृद्धों से जानकारी जुटाई और उससे नई पीढ़ी को अवगत कराया। दैनिक जागरण के प्रयास के परिणाम स्वरूप कुछ समाजसेवी आगे आए।

डॉ. प्रेम कुमार के पिता समाज सेवी डॉ. बच्चा प्रसाद ने 2017 में गांधी चबूतरे का जीर्णोद्धार करके बापू की प्रतिमा स्थापित कराई।

प्रतिमा अनावरण के बाद से प्रति वर्ष गांधी जयंती को समाजसेवियों और राजनीतिक दलों के नेता मालार्पण करते हैं। बता दें कि गांधी चबूतरा अपने अतीत में स्वतंत्रता संग्राम की कई यादें समेटे हुए हैं।

1927 में महात्मा गांधी ने महाराजगंज में रखे थे कदम

संवाद सूत्र, महाराजगंज (सिवान): अंग्रेजी हुकूमत को उखाड़ फेंकने के लिए महात्मा गांधी ने चंपारण से अपनी यात्रा शुरू की थी। इसी दौरान वे 1927 में महाराजगंज शहर के उमाशंकर प्रसाद उच्च विद्यालय परिसर में पहुंचे थे।

उन्होंने युवाओं से इस लड़ाई में आगे आने की अपील की थी। इसमें शहर से लेकर बंगरा सहित अन्य गांवों के लोगों ने बढ़-चढ़कर कर हिस्सा लिया। सभी अंग्रेजी हुकूमत के विरुद्ध लड़ाई लड़ी।

इसके बाद ही बंगरा आज भी बलिदानियों के गांव के नाम से जाना जाता है। इसी दौरान उमाशंकर प्रसाद ने महात्मा गांधी को 1001 रुपये के चांदी के सिक्के की थैली भेंट की थी। इसके बाद उमाशंकर प्रसाद ने अपने निजी कोष से प्रखंड कार्यालय परिसर में महात्मा गांधी की मूर्ति स्थापित की।

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1927 में नेहरू के साथ मौलाना के आशियाना में आए थे बापू

संवाद सूत्र, हुसैनगंज(सिवान)। सिवान के हुसैनगंज प्रखंड के बघौनी पंचायत के फरीदपुर रमना स्थित आशियाना रिस्टर एवं कौमी एकता के प्रतीक मौलाना मजहरूल हक का आवास है। यहां 1927 में महात्मा गांधी,पंडित जवाहरलाल नेहरू तथा 1928 में मदन मोहन मालवीय, सरोजनी नायडू, केएफ नरीमन और अबुल कलाम आजाद के चरण यहां पड़ चुके हैं।

समाजसेवी विभूति शरण सिंह ने बताया कि मेरे पिताजी महात्मा गांधी का भाषण सुनने फरीदपुर गए थे। अपने भाषण के दौरान बापू ने लोगों को स्वतंत्रता के लिए जागरूक करते हुए कहा था कि वह दिन दूर नहीं जब बोतल में भरकर चावल बिक्री होगा। उस समय यह बात लोगों को नागवार लगी थी, क्योंकि उस जमाने में चार आने (पच्चीस पैसे) में एक पसेरी(साढ़े तीन किलो ग्राम) चावल बाजार में बिकता था।

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