शहाबुद्दीन: उस रात की दास्तान से सिहर जाएंगे आप, अब जेल में ही कटेगा बाकी का जीवन
सिवान के बाहुबली पूर्व सांसद व राजद नेता मो. शहाबुद्दीन को चर्चित एसिड बाथ डबल मर्डर में मिली उम्रकैद पर सुप्रीम कोर्ट ने मुहर लगा दी है। क्या थी वो घटना, जानिए इस खबर में।
By Amit AlokEdited By: Updated: Wed, 31 Oct 2018 07:00 AM (IST)
पटना [अमित आलोक]। सुप्रीम कोर्ट में चीफ जस्टिस गोगोई, जस्टिस एसके कौल और केएम जोसेफ की खंडपीठ ने बिहार के बाहुबली पूर्व सांसद मो. शहाबुद्दीन को सिवान के चर्चित एसिड बाथ डबल मर्डर मामले में मिली उम्रकैद की सजा को बरकरार रखा है। इस मामले में शहाबुद्दीन को नौ दिसंबर, 2015 को निचली अदालत ने उम्रकैद की सजा सुनाई थी, जिसपर 30 अगस्त, 2017 को पटना हाई कोर्ट ने मुहर लगा दी थी। उस खौफनाक घटना के एकमात्र चश्मदीद गवाह दोनों मृतकों के तीसरे भाई ने जो कहानी सुनाई थी, उसे याद कर आज भी लोग सिहर जाते हैं।
सुप्रीम कोर्ट के फैसले के साथ शहाबुद्दीन का अब ताउम्र सलाखों के पीछे रहना तय हो गया है। अपराध की सीढिय़ां चढ़ते-चढ़ते राजनीति के गलियारे में धमके देने वाले शहाबुद्दीन को अभी तक दो उम्रकैद और 30 साल जेल की सजाएं सुनाई जा चुकी है।
तेजाब से नहला तड़पाकर की हत्या, शवों को लगा दिया ठिकाने
बिहार के सिवान जिले में एक गांव है प्रतापपुर। इसकी पहचान मो. शहाबुद्दीन से होती है। एक जमाने में इस गांव का खौफ सिवान में सिर चढ़कर बोलता था। इसी गांव में 16 अगस्त 2004 की उस काली रात उन दो भाइयों की हत्या कर दी गई थी, जिसकी सजा शहाबुद्दीन को मिली है। उस रात पकड़कर लाए गए दोनों भाई हाथ जोड़े छोड़ देने की गुहार लगाते रहे, लेकिन आतातायी नहीं माने। भारी आवाज में आदेश जारी हुआ और अगले ही पल दोनों को तेजाब से नहलाया जाने लगा। अंतत: तड़प-तड़पकर दोनों की मौत हो गई।
अब हत्याकांड के साक्ष्य को छिपाने की बारी थी। इसे भी बखूबी अंजाम दिया गया। शवों को टुकड़ों में काटकर बोरियों में भरा गया। फिर उसे ठिकाने लगा दिया गया।
ऐसे अन्य मामलों की तरह यह मामला भी दब जाता, अगर इसे दोनों मृतकों के तीसरे भाई ने देख नहीं लिया होता। उसे भी आताताई पकड़कर लाए थे, लेकिन वह भागने में सफल रहा था। घटना के वक्त वह सांस रोके चुपचाप छिपकर सबकुछ देख रहा था। फिर छिपते-छिपाते भागने में सफल रहा। इस मामले में मृतकों के पिता चंदा बाबू ने भी बहादुरी दिखाई। उन्होंने किसी धमकी की परवाह किए बगैर न्याय की जग जारी रखी। इस दौरान उनके तीसरे बेटे की भी हत्या कर दी गई।
सिवान में 'साहेब' की थी अपनी न्याय व्यवस्था
दरअसल, सिवान में शहाबुद्दीन की अपनी न्याय व्यवस्था थी। साहेब (शहाबुद्दीन को सिवान में इसी नाम से जाना जाता है) का फरमान रियाया के लिए पत्थर की लकीर होती थी। वे अपना दरबार लगा 'न्याय' करते थे। उनके आदमी भी पंचायत लगा 'न्याय' करने में पीछे नहीं रहते थे।
भूमि विवाद की पंचायती से बढ़ी बात
सिवान के गौशाला रोड स्थित व्यवसायी चन्द्रकेश्वर प्रसाद उर्फ चंदा बाबू को वो दिन भूले नहीं भूलता। 16 अगस्त 2004 की सुबह भूमि विवाद के निपटारे को लेकर पंचायत हो रही थी। इसी बीच बाहर से आए कुछ लोगों ने धमकी दी। विवाद बढ़ा तो मारपीट हो गई।
चंदा बाबू के बेटों का हुआ अपहरण
कहा जाता है कि यह मामला शहाबुद्दीन तक पहुंचा। उसी दिन शहर के दो भिन्न गल्ला दुकानों से चंदा बाबू के दो पुत्रों गिरीश व सतीश का अपहरण कर लिया गया। गुंडों ने तीसरे पुत्र राजीव रोशन को भी उठा लिया। अपहृतों की मां के बयान पर अज्ञात के विरुद्ध अपहरण का मामला दर्ज कराया गया, लेकिन उन्हें तो शहाबुद्दीन के गांव प्रतापपुर पहुंचा दिया गया था।
'साहेब' के आदेश पर हुई थी हत्या
फिर शुरू हुआ उन दिनों सिवान जेल में बंद 'साहब' का इंतजार। शाम के धुंधलके में साहब आए (आए तो कैसे आए, यह अलग सवाल है) और अपने अंदाज में 'न्याय' कर दिया। घटना के एकमात्र गवाह रहे राजीव रोशन की भी हत्या कर दी गई, हालांकि मरने के पहले उसने कोर्ट में अपना बयान दे दिया था। हालांकि, बचाव पक्ष शहाबुद्दीन के जेल से बाहर आने से इनकार करता रहा है।
राजीव रोशन की जुबानी, हत्या की कहानी
वर्ष 2010-11 में अपहृतों के बड़े भाई राजीव रोशन ने चश्मदीद गवाह के रूप में सिवान मंडल कारा में गठित विशेष अदालत को कहा था कि उसकी आंखों के सामने उसके दोनों भाईयों की हत्या शहाबुद्दीन के आदेश पर प्रतापपुर गांव में कर दी गई थी। वह किसी तरह वहां से जान बचाकर भागा था और गोरखपुर में गुजर-बसर कर रहा था।
शहाबुद्दीन पर गठित किए गए आरोप
चश्मदीद राजीव रोशन की गवाही पर तत्कालीन विशेष लोक अभियोजक सोमेश्वर दयाल ने हत्या एवं षड्यंत्र को ले नवीन आरोप गठन करने का विशेष अदालत से आग्रह किया। विशेष अदालत ने न्याय प्रक्रिया में उठाए गए कदमों को विलंबित करार देते हुए खारिज कर दिया। तत्पश्चात उच्च न्यायालय के आदेश पर शहाबुद्दीन के खिलाफ आरोप गठित किए गए।
निचली अदालत ने दी उम्रकैद की सजा
मामले में पुन: साक्ष्य आरंभ हुआ। साक्ष्य के दौरान 16 जून 2014 को चश्मदीद राजीव रोशन की भी हत्या कर दी गई। आगे नौ दिसंबर 2015 को विशेष अदालत ने शहाबुद्दीन को इस मामले में दोषी करार देते हुए 11 दिसंबर 2015 को उम्रकैद की सजा दी। 30 अगस्त, 2017 को पटना हाई कोर्ट ने फैसले को बरकरार रखा। आगे सोमवार 29 अक्टूबर 2018 को सुप्रीम कोर्ट ने भी इसपर मुहर लगा दी। शहाबुद्दीन अभी दिल्ली के तिहाड़ जेल में सजा काट रहा है।
कम नहीं शहाबुद्दीन के अपराध...
- हत्या, अपहरण, रंगदारी, घातक हथियार रखने और दंगा जैसे दर्जनों मामले दर्ज
- 19 साल की उम्र में किया पहला अपराध, 1986 में दर्ज हुआ था पहला मुकदमा
- अबतक आठ मामलों में 30 साल और दो मामलों में आजीवन कारावास की सजा
- पहली सजा वर्ष 2007 में दो साल कैद की मिली थी। तब से मिल चुकीं कई सजाएं।
- चंदा बाबू के दो बेटों को तेजाब से नहलाकर मारने के मामले में आजीवन कारावास
- भाकपा (माले) कार्यकर्ता छोटेलाल गुप्ता की हत्या के मामले में भी उम्रकैद की सजा
- सिवान के एसपी एसके सिंघल पर जानलेवा हमला मामले में 10 साल की सजा
- सिवान में आर्म्स एक्ट के एक मामले में भी मिल चुकी 10 वर्ष कैद की सजा
- कई अन्य मामलाें में भी मिली कैद; कई में नहीं मिले साक्ष्य तो हो गए बरी
- वर्ष 2005 में दिल्ली से गिरफ्तारी, कुछ समय छोड़कर तब से जेलों में ही बंद
- वर्ष 2001 के चर्चित प्रतापपुर मुठभेड़ में दो पुलिसकर्मियों समेत आठ की मौत
- वर्ष 2005 में शहाबुद्दीन के पास से एके-47 के साथ कई घातक हथियार बरामद
- 1997 में जेएनयू छात्रसंघ के पूर्व अध्यक्ष चंद्रशेखर व श्याम नारायण की हत्या
चार बार सांसद और दो बार रहे विधायक
- तत्कालीन जनता दल (अब राजद) सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव की छत्रछाया में शुरू की राजनीति
- 1990 में निर्दलीय बने विधायक, फिर लालू प्रसाद के नजदीक गए, लालू ने बताया था छोटा भाई
- सीवान से चार बार बने सांसद, दो बार बने विधायक
सुप्रीम कोर्ट के फैसले के साथ शहाबुद्दीन का अब ताउम्र सलाखों के पीछे रहना तय हो गया है। अपराध की सीढिय़ां चढ़ते-चढ़ते राजनीति के गलियारे में धमके देने वाले शहाबुद्दीन को अभी तक दो उम्रकैद और 30 साल जेल की सजाएं सुनाई जा चुकी है।
तेजाब से नहला तड़पाकर की हत्या, शवों को लगा दिया ठिकाने
बिहार के सिवान जिले में एक गांव है प्रतापपुर। इसकी पहचान मो. शहाबुद्दीन से होती है। एक जमाने में इस गांव का खौफ सिवान में सिर चढ़कर बोलता था। इसी गांव में 16 अगस्त 2004 की उस काली रात उन दो भाइयों की हत्या कर दी गई थी, जिसकी सजा शहाबुद्दीन को मिली है। उस रात पकड़कर लाए गए दोनों भाई हाथ जोड़े छोड़ देने की गुहार लगाते रहे, लेकिन आतातायी नहीं माने। भारी आवाज में आदेश जारी हुआ और अगले ही पल दोनों को तेजाब से नहलाया जाने लगा। अंतत: तड़प-तड़पकर दोनों की मौत हो गई।
अब हत्याकांड के साक्ष्य को छिपाने की बारी थी। इसे भी बखूबी अंजाम दिया गया। शवों को टुकड़ों में काटकर बोरियों में भरा गया। फिर उसे ठिकाने लगा दिया गया।
ऐसे अन्य मामलों की तरह यह मामला भी दब जाता, अगर इसे दोनों मृतकों के तीसरे भाई ने देख नहीं लिया होता। उसे भी आताताई पकड़कर लाए थे, लेकिन वह भागने में सफल रहा था। घटना के वक्त वह सांस रोके चुपचाप छिपकर सबकुछ देख रहा था। फिर छिपते-छिपाते भागने में सफल रहा। इस मामले में मृतकों के पिता चंदा बाबू ने भी बहादुरी दिखाई। उन्होंने किसी धमकी की परवाह किए बगैर न्याय की जग जारी रखी। इस दौरान उनके तीसरे बेटे की भी हत्या कर दी गई।
सिवान में 'साहेब' की थी अपनी न्याय व्यवस्था
दरअसल, सिवान में शहाबुद्दीन की अपनी न्याय व्यवस्था थी। साहेब (शहाबुद्दीन को सिवान में इसी नाम से जाना जाता है) का फरमान रियाया के लिए पत्थर की लकीर होती थी। वे अपना दरबार लगा 'न्याय' करते थे। उनके आदमी भी पंचायत लगा 'न्याय' करने में पीछे नहीं रहते थे।
भूमि विवाद की पंचायती से बढ़ी बात
सिवान के गौशाला रोड स्थित व्यवसायी चन्द्रकेश्वर प्रसाद उर्फ चंदा बाबू को वो दिन भूले नहीं भूलता। 16 अगस्त 2004 की सुबह भूमि विवाद के निपटारे को लेकर पंचायत हो रही थी। इसी बीच बाहर से आए कुछ लोगों ने धमकी दी। विवाद बढ़ा तो मारपीट हो गई।
चंदा बाबू के बेटों का हुआ अपहरण
कहा जाता है कि यह मामला शहाबुद्दीन तक पहुंचा। उसी दिन शहर के दो भिन्न गल्ला दुकानों से चंदा बाबू के दो पुत्रों गिरीश व सतीश का अपहरण कर लिया गया। गुंडों ने तीसरे पुत्र राजीव रोशन को भी उठा लिया। अपहृतों की मां के बयान पर अज्ञात के विरुद्ध अपहरण का मामला दर्ज कराया गया, लेकिन उन्हें तो शहाबुद्दीन के गांव प्रतापपुर पहुंचा दिया गया था।
'साहेब' के आदेश पर हुई थी हत्या
फिर शुरू हुआ उन दिनों सिवान जेल में बंद 'साहब' का इंतजार। शाम के धुंधलके में साहब आए (आए तो कैसे आए, यह अलग सवाल है) और अपने अंदाज में 'न्याय' कर दिया। घटना के एकमात्र गवाह रहे राजीव रोशन की भी हत्या कर दी गई, हालांकि मरने के पहले उसने कोर्ट में अपना बयान दे दिया था। हालांकि, बचाव पक्ष शहाबुद्दीन के जेल से बाहर आने से इनकार करता रहा है।
राजीव रोशन की जुबानी, हत्या की कहानी
वर्ष 2010-11 में अपहृतों के बड़े भाई राजीव रोशन ने चश्मदीद गवाह के रूप में सिवान मंडल कारा में गठित विशेष अदालत को कहा था कि उसकी आंखों के सामने उसके दोनों भाईयों की हत्या शहाबुद्दीन के आदेश पर प्रतापपुर गांव में कर दी गई थी। वह किसी तरह वहां से जान बचाकर भागा था और गोरखपुर में गुजर-बसर कर रहा था।
शहाबुद्दीन पर गठित किए गए आरोप
चश्मदीद राजीव रोशन की गवाही पर तत्कालीन विशेष लोक अभियोजक सोमेश्वर दयाल ने हत्या एवं षड्यंत्र को ले नवीन आरोप गठन करने का विशेष अदालत से आग्रह किया। विशेष अदालत ने न्याय प्रक्रिया में उठाए गए कदमों को विलंबित करार देते हुए खारिज कर दिया। तत्पश्चात उच्च न्यायालय के आदेश पर शहाबुद्दीन के खिलाफ आरोप गठित किए गए।
निचली अदालत ने दी उम्रकैद की सजा
मामले में पुन: साक्ष्य आरंभ हुआ। साक्ष्य के दौरान 16 जून 2014 को चश्मदीद राजीव रोशन की भी हत्या कर दी गई। आगे नौ दिसंबर 2015 को विशेष अदालत ने शहाबुद्दीन को इस मामले में दोषी करार देते हुए 11 दिसंबर 2015 को उम्रकैद की सजा दी। 30 अगस्त, 2017 को पटना हाई कोर्ट ने फैसले को बरकरार रखा। आगे सोमवार 29 अक्टूबर 2018 को सुप्रीम कोर्ट ने भी इसपर मुहर लगा दी। शहाबुद्दीन अभी दिल्ली के तिहाड़ जेल में सजा काट रहा है।
कम नहीं शहाबुद्दीन के अपराध...
- हत्या, अपहरण, रंगदारी, घातक हथियार रखने और दंगा जैसे दर्जनों मामले दर्ज
- 19 साल की उम्र में किया पहला अपराध, 1986 में दर्ज हुआ था पहला मुकदमा
- अबतक आठ मामलों में 30 साल और दो मामलों में आजीवन कारावास की सजा
- पहली सजा वर्ष 2007 में दो साल कैद की मिली थी। तब से मिल चुकीं कई सजाएं।
- चंदा बाबू के दो बेटों को तेजाब से नहलाकर मारने के मामले में आजीवन कारावास
- भाकपा (माले) कार्यकर्ता छोटेलाल गुप्ता की हत्या के मामले में भी उम्रकैद की सजा
- सिवान के एसपी एसके सिंघल पर जानलेवा हमला मामले में 10 साल की सजा
- सिवान में आर्म्स एक्ट के एक मामले में भी मिल चुकी 10 वर्ष कैद की सजा
- कई अन्य मामलाें में भी मिली कैद; कई में नहीं मिले साक्ष्य तो हो गए बरी
- वर्ष 2005 में दिल्ली से गिरफ्तारी, कुछ समय छोड़कर तब से जेलों में ही बंद
- वर्ष 2001 के चर्चित प्रतापपुर मुठभेड़ में दो पुलिसकर्मियों समेत आठ की मौत
- वर्ष 2005 में शहाबुद्दीन के पास से एके-47 के साथ कई घातक हथियार बरामद
- 1997 में जेएनयू छात्रसंघ के पूर्व अध्यक्ष चंद्रशेखर व श्याम नारायण की हत्या
चार बार सांसद और दो बार रहे विधायक
- तत्कालीन जनता दल (अब राजद) सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव की छत्रछाया में शुरू की राजनीति
- 1990 में निर्दलीय बने विधायक, फिर लालू प्रसाद के नजदीक गए, लालू ने बताया था छोटा भाई
- सीवान से चार बार बने सांसद, दो बार बने विधायक
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