Bihar News सिवान 18 संसदीय क्षेत्र पर 25 मई को मतदान होंगे। पहली बार इस सीट के लिए त्रिशंकु लड़ाई देख लोग सिवान पर निगाहें टिकाए रखे हुए हैं। 2019 तक हुए लोकसभा चुनाव में यहां आर-पार की लड़ाई में राजग और राजद ही मुख्य रूप से रहे लेकिन इस बार सिवान की राजनीतिक हवा में बदलाव है। यहां इस बार हर प्रत्याशी अपने लिए नए समीकरण बांध रहा है।
कीर्ति पांडेय ,सिवान। Bihar Political News: सिवान 18 संसदीय क्षेत्र पर 25 मई को मतदान होंगे। पहली बार इस सीट के लिए त्रिशंकु लड़ाई देख लोग सिवान पर निगाहें टिकाए रखे हुए हैं। 2019 तक हुए लोकसभा चुनाव में यहां आर-पार की लड़ाई में राजग और राजद ही मुख्य रूप से रहे लेकिन इस बार सिवान की राजनीतिक हवा में बदलाव है। यहां इस बार हर प्रत्याशी अपने लिए नए समीकरण बांध रहा है।
बात राजद छोड़कर निर्दलीय चुनाव लड़ रही हिना शहाब से ही शुरू की जाए तो यह चुनाव उनके लिए एक तरह से अपनी खोई विरासत को पाने की लड़ाई है। राजनीतिक गलियारें की बातों को मानें तो तीन बार से इस सीट पर हार का सामना कर रहीं हिना शहाब (Hena Shahab) के लिए यह अंतिम मौका भी है। यही कारण है कि उन्होंने सारे राजनीतिक समीकरण को तोड़कर इस संसदीय क्षेत्र में त्रिशंकु बनाया है है।
माय समीकरण छोड़ना हिना शहाब के लिए आसान नहीं था
माय समीकरण को छोड़ना हिना शहाब (Hena Shahab) के लिए उतना आसान तो नहीं था लेकिन उन्होंने 2009 से 2019 तक लोकसभा चुनाव लड़ कर अपने चुनावी अनुभव से एक नए जातीय समीकरण की पटकथा लिखने का प्रयास किया है। यह समीकरण मुस्लिम, ब्राह्मण, पिछड़ा और राजपूत का बनाया गया है।
हालांकि, यह जातीय समीकरण उनके लिए कितना लाभदायक होगा इससे पर्दा 25 मई को मतदान और चार जून मतगणना के बाद ही उठेगा। वहीं दूसरी ओर एनडीए की प्रत्याशी विजयलक्ष्मी भी अपने चुनावी कैंपेन में जातीय समीकरण को बांधने का भरपूर प्रयास कर रही हैं।
इसमें उनका साथ राजनीति के पुराने धुरंधर कहे जाने वाले जीरादेई के पूर्व विधायक रमेश कुशवाहा दे रहे हैं। रमेश कुशवाहा एनडीए प्रत्याशी विजय लक्ष्मी के पति हैं और चुनावी रण में अपनी पत्नी के सारथी भी बने हैं।
विजय लक्ष्मी के पास राजनीति का कोई अनुभव नहीं
विजय लक्ष्मी के पास राजनीति का कोई अनुभव नहीं है और यह उनकी पहली चुनावी लड़ाई है लेकिन रमेश कुशवाहा की बात करें तो जदयू में शामिल होने के पूर्व वे सिवान में भाकपा-माले के कद्दावर नेता थे और उन्होंने लोकसभा सीट पर एक बार चुनाव भी लड़ कर अपना भाग्य आजमाया था हालांकि उस चुनाव में उन्हें दिवंगत पूर्व सांसद मो. शहाबुद्दीन से हार का सामना करना पड़ा था।
इसके बाद वो लंबे समय तक भाकपा-माले का झंडा उठाते रहे। उनके पास पिछड़ा और अति पिछड़ा वोट बैंक में सेंध लगाने का अनुभव है और वो भाजपा के कैडर वोट के साथ भाकपा-माले के वोटरों को भी पिछले दरवाजे से अपने पाले में लुभाने में लगे हैं।
इसमें उनका साथ एनडीए यानी भाजपा के नेताओं ने अबतक तो खूब दिया है। शनिवार को असम के मुख्यमंत्री हेमंत विश्वकर्मा का भी जिले के दो जगहों पर चुनावी सभा है। चर्चा की मानें तो उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगीआदित्यनाथ भी जनता को संबाेधित करने आने वाले हैं लेकिन इन सब पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की गोरेयाकोठी के आज्ञा पंचायत में संभावित 21 मई की चुनावी सभा भारी है। यहीं से वो महाराजगंज और सिवान के साथ साथ गोपालगंज लोकसभा सीट पर जीत सुनिश्चित करने पहुंचेंगे। तीसरी तरफ
बात अगर राजद की हो तो यहां से अवध बिहारी चौधरी चुनावी दंगल में हैं।
अवध बिहारी चौधरी भी पहली बार लोकसभा चुनाव लड़ रहे
यह चुनाव उनके लिए भी प्रतिष्ठा की तरह ही है क्योंकि अवध बिहारी चौधरी भी पहली बार लोकसभा का चुनाव लड़ रहे हैं। वह वर्तमान में सिवान सदर से विधायक भी हैं और पिछली सरकार में बिहार विधानसभा अध्यक्ष भी थे। अवध बिहारी चौधरी के साथ राजद के लिए माय समीकरण टूटना किसी झटके से कम नहीं है। अबतक अवध बिहारी चौधरी को यादव समुदाय का भरपूर साथ मिला है।
अवध बिहारी चौधरी अपनी स्वच्छ छवि को लेकर जनता के बीच पहुंच रहे हैं और वो जात पात से ऊपर उठकर पिछली सरकार में राजद द्वारा कराए गए कार्यों का बखान मतदाताओं से कर रहे हैं।
बता दें कि सिवान देशरत्न डा.राजेंद्र प्रसाद, कौमी एकता के जननायक मौलाना मजहरुल हक की धरती है।
एक समय था जब सिवान में छपरा,गोपालगंज के अलावा उत्तर प्रदेश के सीमावर्ती जिले के लोग रोजगार के लिए पहुंचते थे। यहां चीनी मिल, चमड़ा मंडी के अलावा सूता फैक्ट्री थी लेकिन समय के साथ सबकुछ इतिहास के पन्ने में खो गया। हालात इतने बदल गए कि 90 के दशक में इसे अपराध का लेबोरेट्री भी कहा गया लेकिन इस जिले ने अपनी पहचान समय के साथ बदली और राज्य में सबसे अधिक विदेशी मुद्रा एकत्रित करने में शामिल कराया। यहां आज भी रोजगार के लिए लोगों को सात समुंद्र पार जाना मजबूरी है।
शहर के बैलहट्टा के रहने वाले परवेज का कहना है कि यहां रोजगार नहीं है और जीना है तो कमाना है ही। विकास तो रुका है क्योंकि आज भी शहर में जाम की स्थिति जस की तस है। पिछले सांसदों ने क्या किया यह सभी के समक्ष है।
शहर के ही दुकानदार शंकर जी का कहना है कि भाजपा दो बार से गठबंधन धर्म का पालन कर यहां से चुनाव नहीं लड़ रही है लेकिन देश में मोदी के हाथ को तो मजबूत करना है।
नेताओं से मुलाकात करना मुश्किल
प्रदेश में भी जबतक भाजपा और जदयू की सरकार है विकास होगा।
जीतने के बाद नेताओं से ना मिलने की ठसक
इस बार चुनावी दंगल में एनडीए से विजयलक्ष्मी, निर्दलीय प्रत्याशी हेना शहाब और राजद से अवध बिहारी चौधरी हैं। इनके बीच ही त्रिशंकु की लड़ाई अबतक दिखी है। जनता का यह कहना है कि इनमें से कोई भी अगर चुनाव जीत कर जनप्रतिनिधि बनता है तो इनसे मुलाकात करना टेढ़ी खीर है। वर्तमान सांसद कविता सिंह का उदाहरण देते हुए हथौड़ा के अब्दुल हमीद ने कहाकि उनसे तो मुलाकात पांच वर्षों में हुई नहीं उनके पति दिख जाते हैं।
सांसद से मिलना हो तो जिला मुख्यालय से 30 किलोमीटर दूर गांव जाइए। यही हाल कमोबेश इस बार भी दिख रही है। अगर विजयलक्ष्मी जीत गईं तो शायद ही उनसे मुलाकात हो। जनप्रतिनिधि तो डमी कैंडिटेड ही हो जाते हैं उनके प्रतिनिधि ही उनकी भूमिका निभाते हैं। सरसर के महेंद्र सिंह कहते हैं कि हेना शहाब भी अगर कल जनप्रतिनिधि बनेंगी तो उनसे भी मुलाकात करना आसान नहीं होगा। उनके पास पहुंचने के पूर्व कई सीमाओं को पार करना होगा। गुठनी के श्रीकांत मिश्रा का कहना है कि कोई भी नेता चुनाव तक ही आपके दरवाजे पर आता है जीत होने के बाद वह सबकुछ भूल जाता है।
राजनीतिक अनुभव का आकलन कर रही जनता
एनडीए से जदयू की प्रत्याशी विजयलक्ष्मी के राजनीतिक अनुभव को लेकर जनता खूब बात कर रही है। आकोपुर के नथुनी सिंह का कहना है कि विजयलक्ष्मी प्रत्याशी तो बन गईं लेकिन क्या वो चुनाव जीतने के बाद जनता के बीच मुखर रहेंगी। क्या वो सुख दुख में पहुंचेगी या फिर उनके पति ही उनकी भूमिका निभाएंगे।
सिसवन के अजय तिवारी का कहना है कि अबतक के चुनावी योग्यता को देखें तो सभी में अवध बिहारी चौधरी का पल्ला भारी है लेकिन उन्हें सदर विधानसभा छोड़कर कभी जिले में अन्य जगहों पर नहीं देखा गया। हिना शहाब को लेकर हसनपुरा के मुकुल सिंह का कहना है कि पति के देहांत के बाद हेना शहाब मंझी हुई खिलाड़ी के रूप में अबतक दिखी हैं।
जनता के बीच सीधे अकेली पहुंच रही हैं लेकिन दिमाग में बहुत सारी बातें दौड़ रही हैं।
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