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Akshaya Tritiya 2024: क्यों मनाया जाता है अक्षय तृतीया का त्योहार, हिंदू धर्म में क्या है इसका महत्व?

Akshaya Tritiya 2024 आचार्य पंडित धर्मेंद्रनाथ मिश्र ने कहा कि अक्षय तृतीया का दिन परशुरामजी का जन्मदिन होने के कारण परशुराम तिथि भी कहलाता है। परशुरामजी की गिनती चिरंजीवी महात्माओं में की जाती है इसलिए इस तिथि को चिरंजीवी तिथि भी कहते हैं। उन्होंने बताया कि भारतवर्ष धर्म-संस्कृति प्रधान देश है। खासकर हिंदू संस्कृति में व्रत और त्योहारों का विशेष महत्व है।

By Rajesh Kumar Singh Edited By: Rajat Mourya Updated: Thu, 09 May 2024 05:15 PM (IST)
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क्यों मनाया जाता है अक्षय तृतीया का त्योहार, हिंदू धर्म में क्या है इसका महत्व?
संवाद सूत्र, करजाईन बाजार (सुपौल)। Akshaya Tritiya 2024 जिसका कभी नाश नहीं होता है या जो स्थाई है, वही अक्षय कहलाता है। स्थाई वही रह सकता है जो सर्वदा सत्य है। सत्य केवल परमपिता परमेश्वर ही है जो अक्षय, अखंड व सर्वव्यापक है। अक्षय तृतीया की तिथि ईश्वरीय तिथि है। इस बार यह तिथि 10 मई यानि शुक्रवार को है।

अक्षय तृतीया का महात्म्य बताते हुए आचार्य पंडित धर्मेंद्रनाथ मिश्र ने कहा कि अक्षय तृतीया का दिन परशुरामजी का जन्मदिन होने के कारण परशुराम तिथि भी कहलाता है। परशुरामजी की गिनती चिरंजीवी महात्माओं में की जाती है, इसलिए इस तिथि को चिरंजीवी तिथि भी कहते हैं।

उन्होंने बताया कि भारतवर्ष धर्म-संस्कृति प्रधान देश है। खासकर हिंदू संस्कृति में व्रत और त्योहारों का विशेष महत्व है, क्योंकि व्रत एवं त्योहार नई प्रेरणा एवं स्फूर्ति का परिपोषण करते हैं। भारतीय मनीषियों द्वारा व्रत-पर्वों के आयोजन का उद्देश्य व्यक्ति एवं समाज को पथभ्रष्ट होने से बचाना है।

अक्षय तृतीया को आखातीज भी कहा जाता है

आचार्य ने बताया कि अक्षय तृतीया तिथि को आखा तृतीया अथवा आखातीज भी कहते हैं। इसी तिथि को चारों धामों में से एक धाम भगवान बदरीनारायण के पट खुलते हैं। साथ ही अक्षय तृतीया तिथि को ही वृंदावन में श्री बिहारीजी के चरणों के दर्शन वर्ष में एक बार होते हैं। इस दिन देश के कोने-कोने से श्रद्धालु बिहारीजी के चरण दर्शन के लिए वृंदावन पहुंचते हैं।

उन्होंने बताया कि भारतीय लोकमानस सदैव से ऋतु पर्व मनाता आ रहा है। अक्षय तृतीया का पर्व बसंत और ग्रीष्म के संधिकाल का महोत्सव है। इस तिथि में गंगा स्नान, पितरों का तिल व जल से तर्पण और पिंडदान भी पूर्ण विश्वास से किया जाता है जिसका फल भी अक्षय होता है। इस तिथि की गणना युगादि तिथियों में होती है, क्योंकि सतयुग का कल्पभेद से त्रेतायुग का आरंभ इसी तिथि से हुआ।

उन्होंने आगे बताया, इस दिन जल से भरे कलश, पंखे, खराऊं, जूता, छाता, गौ, भूमि, स्वर्णपात्र आदि का दान पुण्यकारी माना गया है। इस प्रकार के दान के पीछे यह लोक विश्वास है कि इस दिन जिन-जिन वस्तुओं का दान किया जाएगा वे समस्त वस्तुएं स्वर्ग में गर्मी ऋतु में प्राप्त होगी। साथ ही अक्षय तिथि का पर्व मनाने से आध्यात्मिक ऊर्जा की प्राप्ति भी निश्चित होती है।

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