Bihar Dowry Cases: सुपौल में दहेज को लेकर दरिंदगी की हदें पार, हर महीने एक बेटी हो रही मौत का शिकार
सुपौल जिले में लगभग हर महिने एक न एक बेटी दहेज के लिए मारने का मामले सामने आ रहा है और दस साल में इस जिले में 108 बेटियां मौत के घाट उतारी जा चुक हैं। यहां लोग दहेज को लेकर समाज अपनी सोच बदलने को तैयार नहीं है और ये दिखाई दे रहा है कि दहेज ने इस इलाके में किस कदर अपने पैर जमा लिए हैं।
जागरण संवाददाता, सुपौल। Supaul Dowry Cases दहेज को लेकर समाज अपनी सोच बदलने को तैयार नहीं है। नतीजा है कि सुपौल जिले में लगभग हर माह एक न एक बेटी दहेज के लिए मारी जा रही है। दस साल में इस जिले में 108 बेटियां मौत के घाट उतारी गई हैं।
ये आंकड़े चीख-चीख कर बता रहे हैं कि दहेज ने किस कदर अपना पैर जमा लिया है। मालूम हो कि दहेज लेना व देना अपराध है, बावजूद इसके आज के समय में दहेज स्टेटस सिंबल बन गया है। स्थिति यह है कि कहीं रुपये के लिए तो कहीं बाइक, तो कहीं कुछ और के लिए दहेज दानवों द्वारा दरिंदगी की हदें पार की जा रही है।
कुछ दिन पूर्व बलुआ बाजार थाना के विशनपुर चौधरी में पांच लाख रुपये व एक बाइक के लिए एक महिला की हत्या ससुराल वालों ने कर दी। वहीं लौकहा थाना क्षेत्र के बेला गांव में पांच लाख रुपये के लिए तो सदर थाना के तेलवा गांव में दो लाख रुपये व मोटर साइकिल के लिए महिला की हत्या कर दी गई। ये घटनाएं बानगी भर है।
चार माह में छह की हत्या
समाज लगातार आधुनिक होता जा रहा है बावजूद इसके यह कुप्रथा आज भी कायम है। साल दर साल चली आ रही यह कुप्रथा नासूर बन चुकी है। सुपौल जिले में इस साल के जनवरी से अप्रैल तक छह को दहेज की आग में जला दिया गया। ऐसी घटनाएं सभ्य समाज के लिए चिंता का विषय है।
दहेज के चलते कई महिलाएं घरेलू हिंसा की शिकार हो रही है। ऐसी महिलाओं की जिंदगी सिसकते कट रही है। यहां यह भी प्रासंगिक है कि कोई भी कानून तब तक प्रभावी नहीं हो सकता जब तक उसे समाज का समर्थन नहीं मिले। दहेज प्रथा जड़ से खत्म हो इसके लिए जरूरी है कि समाज के लोग पहले खुद को बदलें।
व्यापक संघर्ष की आवश्यकता
दहेज रूपी कुरीति से बेटियों को बचाने के लिए व्यापक संघर्ष की आवश्यकता है। हालांकि, 02 अक्टूबर 2017 को जब मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने बाल विवाह और दहेज प्रथा को अभियान के तौर पर लिया, तो दहेज के मामले में काफी कमी आई थी।
नतीजा हुआ कि वर्ष 2021 में इस जिले में दहेज हत्या के सिर्फ 05 मामले प्रतिवेदित हुए थे, जो उक्त अभियान का असर बताया जा रहा था। दरअसल, शराबबंदी की सफलता के बाद इसे अभियान के तौर पर लिए जाने का फैसला लिया गया।शराबबंदी की सफलता के लिए 21 जनवरी 2017 को मानव शृंखला बनाई गई थी और दहेज प्रथा और बाल विवाह उन्मूलन के लिए 21 जनवरी 2018 को मानव शृंखला बनाई गई थी, लेकिन अब फिर से दहेज हत्या के आंकड़ों में बढ़ोतरी देखने को मिल रही है।
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