बिहार में चुनाव का एक दौर ये भी... एक ही गाड़ी से प्रचार में निकलते थे लहटन और कुंवर, इस तरह से करते एक-दूसरे की मदद
लोकसभा चुनाव नजदीक है इसलिए राजनीतिक पार्टियों के चुनावी सभाओं का दौर शुरू हो गया है। आमतौर पर इन सभाओं में पार्टियां विपक्ष की खामियों को जनता के सामने गिनाने के साथ उनके खिलाफ कई बार तीखी टिप्पणियां भी करते हैं लेकिन एक वक्त ऐसा भी था जब राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता को ताक पर रख नेता जनता के हित को सर्वोपरि मानते थे।
भरत कुमार झा, सुपौल। वह समय था जब मिट्टी के बने भोंपू से होता था चुनाव प्रचार। गांव-गांव होने वाली चुनावी सभा में ही रखते थे प्रत्याशी अपनी बात। कोसी के इलाके से सूबे की राजनीति के मजबूत हस्ताक्षर माने जाने वाले लहटन चौधरी के पौत्र जयप्रकाश चौधरी ने संस्मरणों की चर्चा करते बताया कि वह समय था जब चुनाव में पैसे की कोई महत्ता नहीं थी। व्यक्तित्व व पार्टी के सिद्धांतों पर चुनाव लड़ा जाता था।
एक ही गाड़ी पर सवार हुए दो प्रतिद्वंदी
वह आगे कहते हैं, प्रतिद्वंद्वियों से भी किसी तरह की वैमनस्यता तो दूर एक ही गाड़ी से चुनाव प्रचार को निकल पड़ते थे। एक वृतांत सुनाते उन्होंने कहा कि विधान सभा का चुनाव था दादा जी (लहटन चौधरी) और परमेश्वर कुंवर के बीच मुकाबला था।चौधरी जी पूर्व में एमपी-एमएलए रह चुके थे और कांग्रेस पार्टी से चुनाव लड़ रहे थे तो वह अपना चुनाव प्रचार जीप से कर रहे थे। कुंवर जी के पास जीप की सुविधा नहीं थी। चौधरी जी अपने अभियान में निकले थे, सड़क पर ही कुंवर जी से मुलाकात हुई तो गाड़ी रोककर वे भी सवार हो गए और कहा कि पहले अगले गांव में मेरी सभा है वहां पहुंचा दीजिए।
'आपके सामने आपके खिलाफ नहीं बोल पाऊंगा...'
चौधरी जी ने कुंवर जी को उस गांव में पहुंचा दिया तो कुंवर जी ने उनसे रुकने के लिए कहा ताकि अगली सभा तक फिर साथ जा सकें। यहां दिलचस्प बात ये रही कि कुंवर जी ने चौधरी जी से कहा कि आप तब तक कोसी तटबंध के उस पार चले जाइये जब तक मेरी सभा चलेगी। ताकि मैं सभा में आपके खिलाफ बोल सकूं। आप सामने रहेंगे तो मैं आपके खिलाफ नहीं बोल पाऊंगा। ऐसा ही हुआ और जब सभा समाप्त हुई तो फिर दोनों एक ही साथ गाड़ी पर सवार होकर अगली सभा के लिए निकल पड़े।
जीत का साथ में मिलकर मनाया जश्न
अगले गांव पहुंचाने के बाद चौधरी जी बोले कि अब हमको निकलने दो हमें भी अपना प्रचार करना है। इतना ही नहीं चौधरी जी की जीत के बाद कुंवर जी उनसे मिलने पहुंचे और उन्हीं से पैसे लेकर जलेबी मंगाई और कार्यकर्ताओं के साथ मिलकर जीत के जश्न में शामिल हुए।एक-दूसरे के चुनाव प्रचार में दी मदद
दूसरा वाक्या सुनाते कहा कि एक बार चुनाव प्रचार के क्रम में लहटन चौधरी की गाड़ी खराब हो गई। उसी दिन उनके पक्ष में कांग्रेस के बड़े नेता की सभा थी। क्षेत्रीय दौरा के क्रम में परमेश्वर कुंवर को जैसे इसकी सूचना मिली उन्होंने अपनी गाड़ी का झंडा उतारकर लहटन चौधरी को उनके सभा स्थल पहुंचाया।
एक बार परमेश्वर कुंवर और लहटन चौधरी चुनावी प्रचार में आमने-सामने मिले और परमेश्वर कुंवर ने अपनी गाड़ी का ईंधन समाप्त होने का जिक्र किया तो लहटन चौधरी ने अपनी गाड़ी से डीजल निकालकर परमेश्वर कुंवर की गाड़ी में दिया, ताकि उनके चुनावी प्रचार में कोई बाधा नहीं हो। यानी सिद्धांत और विचारधारा अलग थी लेकिन संबंधों में कहीं से भी कटुता नहीं होती थी।लहटन चौधरी सुपौल से 1952 में विधायक चुने गए। 1957 और 1962 में परमेश्वर कुंवर ने धरहरा सुपौल से चुनाव जीता। महिषी विधानसभा गठन के बाद 1967 में भी परमेश्वर कुंवर को जीत मिली।
1964 में लहटन चौधरी सहरसा लोकसभा क्षेत्र से सांसद चुने गए। इसके बाद लहटन चौधरी 1972, 1980 और 1985 में कांग्रेस प्रत्याशी के रूप में जीतते रहे। जेपी के समग्र क्रांति के योद्धा के तौर पर परमेश्वर कुंवर ने 1977 के चुनाव में लहटन चौधरी को पराजित कर दिया।
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