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बिहार की इस 'हॉट' सीट पर NDA का प्रत्याशी फाइनल, महागठबंधन ने अब तक नहीं खोले पत्ते; किस पेंच में फंसी RJD?

Bihar Politics बिहार की एक सीट पर महागठबंधन ने अब अपने पत्ते नहीं खोले हैं। उम्मीदवारी की घोषणा पर सियासी खामोशी ने कोसी का राजनैतिक तापमान बढ़ा दिया है। 12 अप्रैल से नामांकन किया जाना है। लेकिन अब तक महागठबंधन से उम्मीदवारों को लेकर धुंधली हुई तस्वीर स्पष्ट नहीं हो पाई है। राजग ने जहां जदयू से अपने प्रत्याशी दिलेश्वर कामैत के नाम की घोषणा कर दी है।

By Bharat Kumar Jha Edited By: Mukul Kumar Updated: Wed, 03 Apr 2024 03:49 PM (IST)
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बिहार के डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव। फोटो - जागरण
भरत कुमार झा, सुपौल। Lok Sabha Election उम्मीदवारी की घोषणा पर सियासी खामोशी ने कोसी का राजनैतिक तापमान बढ़ा दिया है। 12 अप्रैल से नामांकन किया जाना है। लेकिन अब तक महागठबंधन से उम्मीदवारों को लेकर धुंधली हुई तस्वीर स्पष्ट नहीं हो पाई है।

राजग ने जहां जदयू से अपने प्रत्याशी दिलेश्वर कामैत के नाम की घोषणा कर दी है। लेकिन महागठबंधन का मामला अब तक सुलझ नहीं पाया है। जबकि कांग्रेस (Congress) और राजद (RJD) के द्वंद को तो स्पष्ट किया जा चुका है। कल तक कांग्रेस के कब्जे में रहने वाली सीट इसबार राजद के कोटे में चली गई है।

बावजूद अब तक कौन होंगे उम्मीदवार यह स्पष्ट नहीं किया जा सका है। हालांकि, यहां यह स्मरण करना उचित होगा कि विगत 2019 के चुनाव में भी महागठबंधन की उम्मीदवारी में पेंच फंस गया था। कांग्रेस की रंजीत रंजन का राजद खेमे से मुखर विरोध हुआ था जबकि रंजीत रंजन उस वक्त सीटिंग एमपी थी।

राजद के कोटे में चली गई सीट

स्थिति तो यहां तक पहुंच चुकी थी कि रंजीत रंजन ने अपने नामांकन की तिथि तक घोषित कर दी थी और उनका लड़ना भी तय माना जा रहा था। जबकि न तो गठबंधन ने और ना ही पार्टी ने उनके नाम की घोषणा की थी। बहुत खींचातानी के बाद कांग्रेस के हिस्से में सीट दी गई थी और रंजीत रंजन की उम्मीदवारी तय की गई थी।

हालांकि, चुनाव के नतीजे राजग (NDA) गठबंधन के जदयू उम्मीदवार के पक्ष में रहे थे। इसबार फिर सीट की दावेदारी पर काफी खींचातानी हुई, लेकिन सीट राजद के कोटे में चली गई। नामांकन की तिथि नजदीक आने पर भी अभी तक उम्मीदवार का चेहरा सामने नहीं आ सका है। कई चेहरे हैं जो सियासी गलियारे में काफी चर्चा में हैं।

इनमें से एकाध ने अपना प्रचार अभियान भी शुरू कर दिया है। हालांकि उम्मीदवारों के नाम की घोषणा किए जाने के बाद ही तस्वीर साफ हो पाएगी लेकिन अब तक की सीन के हिसाब से दोनों गठबंधन के बीच ही मुकाबला होना तय माना जा रहा है।

सात बार कांग्रेस तो ग्यारह बार गैर कांग्रेसी बने हैं सांसद

1952 में इस क्षेत्र के पहले सांसद के रूप में इंडियन नेशनल कांग्रेस पार्टी की ओर से ललित नारायण मिश्र चुने गए। 1957 के चुनाव में भी ललित बाबू ही विजयी हुए। 1962 में प्रजा सोशलिस्ट पार्टी से भूपेंद्र नारायण मंडल के नाम जीत का सेहरा बंधा। 1964 में फिर लहटन चौधरी कांग्रेस के टिकट पर चुनाव जीते।

1967 में संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी से गुणानंद ठाकुर को लोगों ने चुना। 1971 के चुनाव में कांग्रेस के चिरंजीव झा विजयी रहे। 1977 का चुनाव समाजवादियों के नाम रहा। जनता पार्टी के प्रत्याशी के रूप में विनायक प्रसाद यादव विजयी घोषित किए गए। 1980 का चुनाव नतीजा फिर कांग्रेस की झोली में गिरा।

कांग्रेस के कमलनाथ झा विजयी घोषित किए गए। 1984 के चुनाव में कांग्रेस के चंदकिशोर पाठक ने जीत दर्ज की। 1989 का चुनाव जनता दल के सूर्यनारायण यादव ने जीता। 1991 के चुनाव में भी यह सीट जनता दल ने ही जीता और सूर्यनारायण यादव विजयी घोषित किए गए।

1996 के चुनाव में जनतादल यू के दिनेश चंद्र यादव चुने गए। 1998 में इस सीट पर राजद का कब्जा हुआ और अनूपलाल यादव निर्वाचित घोषित किए गए। फिर 1999 का चुनाव जदयू के कोटे में चला गया और दिनेश चंद्र यादव के सिर जीत का सेहरा बंधा।

2004 में लोक जनशक्ति पार्टी के टिकट पर रंजीत रंजन निर्वाचित हुई। 2009 में सुपौल लोकसभा के अस्तित्व में आने के बाद जदयू के विश्वमोहन कुमार पहले सांसद निर्वाचित हुए।

2014 के चुनाव में कांग्रेस की टिकट पर रंजीत रंजन ने चुनाव जीता। 2019 का चुनाव फिर राजग के पाले में गिरा और जदयू के दिलेश्वर कामैत ने जीत दर्ज की।

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