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बिहार का एक स्कूल... जहां कमर तक पानी में घुसकर पढ़ने जाते बच्चे, पैर में नहीं हाथों में होती है चप्पल

बिहार सरकार शिक्षा-व्यवस्था को सुधारने के लिए लगातार काम कर रही है। शिक्षा विभाग के अपर मुख्य सचिव केके पाठक खुद स्कूलों की मॉनिटरिंग कर रहे हैं। नए-नए फैसले बच्चों के हित में लिए जा रहे हैं। इसके बावजूद कई जिलों में शिक्षा में सुधार नहीं हो पाया है। ऐसा ही मामला सुपौल जिले के गोपालपुर की है जहां बच्चों को पानी में घुसकर पढ़ने जाना पड़ता है।

By Rajesh Kumar SinghEdited By: Shashank ShekharUpdated: Thu, 05 Oct 2023 05:19 PM (IST)
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बिहार का एक स्कूल... जहां कमर तक पानी में घुसकर पढ़ने जाते बच्चे
विमल भारती, सरायगढ़ (सुपौल)। विद्यालयों को मूलभूत सुविधा उपलब्ध कराने के लिए बिहार सरकार लगातार प्रयासरत है। शिक्षा विभाग के अपर मुख्य सचिव की पहल से कई विद्यालयों में सालों की ज्वलंत समस्याओं को खत्म भी किया जा रहा है।

विद्यालयों में शिक्षक तथा छात्र-छात्राओं की नियमित उपस्थिति के लिए कई आदेश निर्देश जारी हुए हैं, लेकिन सरायगढ़ भपटियाही प्रखंड के एक मध्य विद्यालय में छात्र-छात्राओं की सालों की समस्या का समाधान नहीं हो रहा है।

67 साल से पानी में घुसकर पढ़ने जाते हैं बच्चे

समस्या उत्क्रमित मध्य विद्यालय गोपालपुर की है, जहां के बच्चे पिछले 67 साल से कमर तक पानी पार कर अपने विद्यालय जाते रहे हैं। प्रखंड का इकलौता विद्यालय है, जहां पहुंचने के लिए किसी भी दिशा से रास्ता नहीं है। विद्यालय को पांच कट्ठा अपनी जमीन है, जो एक दाता से प्राप्त है।

1956 में गांव के बच्चों के शिक्षा-दीक्षा के लिए प्राथमिक विद्यालय की स्थापना हुई तो वहां के एक व्यक्ति ने दान में पांच कट्ठा जमीन दी, लेकिन विद्यालय तक पहुंचाने के लिए रास्ता नहीं दे सके। बाद में विद्यालय का भवन बना। 2007 में विद्यालय उत्क्रमित होकर मध्य विद्यालय बन गया।

विद्यालय में आज की तिथि में 461 छात्र-छात्राओं का नामांकन है और सात शिक्षक कार्यरत हैं। छात्र-छात्रा कहीं कमर भर तो कहीं उससे कम पानी पार कर प्रतिदिन विद्यालय आते-जाते हैं।

विद्यालय के कई छात्र-छात्राओं ने बताया कि वह सब धान के खेत के मेड़ से विद्यालय आते जाते हैं जहां बरसात के मौसम में भारी कठिनाई होती है। कई छोटे-छोटे बच्चों ने बताया कि वह सब फिसल कर पानी में गिर जाते हैं और पुस्तक भी बर्बाद हो जाता है फिर उसके बाद लौटकर घर चला जाना पड़ता है।

शिक्षक-अभिभावक दोनों रहते हैं परेशान

विद्यालय तक पहुंचने का रास्ता नहीं होने के कारण वहां कार्यरत शिक्षक तथा अभिभावक परेशान रहते हैं। हालत यह होती है कि शिक्षकों को समय से पहले विद्यालय पहुंचना पड़ता है ताकि वह विद्यालय आने वाले छात्र-छात्राओं पर नजर रख सकें।

इस तरह जैसे ही विद्यालय में छुट्टी दी जाती है कि सभी शिक्षक पानी के किनारे पहुंच जाते हैं और तब तक रहते हैं जब तक बच्चे मुख्य सड़क तक नहीं चले जाते हैं।

विद्यालय के प्रधान मो. समीउल्लाह ने बताया कि छात्र-छात्रा सकुशल विद्यालय पहुंच जाए इसके लिए कई अभिभावक भी धान के खेत के बगल में खड़े रहते हैं। प्रधान ने बताया कि कई बार बच्चे पानी में डूबने से बचते रहे हैं।

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अभी तक मिलता रहा आश्वासन- स्कूल प्रधान

विद्यालय प्रधान ने कहा कि उस गांव में जो भी राजनीतिक दल के नेता पहुंचते हैं। वह सभी के पास जाकर गुहार करते हैं कि विद्यालय तक जाने का एक सड़क बना दिया जाए ताकि बच्चे वहां आसानी से जा सकें, लेकिन सभी के द्वारा सिर्फ आश्वासन ही मिलता रहा है।

प्रधान ने कहा कि समस्या जटिल हो चली है। किसी भी दिन बड़ी घटना हो सकती है। पानी में जाते-जाते छोटे-छोटे बच्चे यदि अपना नियंत्रण खो देंगे तो वह गहरे पानी में भी जा सकते हैं, जो समस्या उनके विद्यालय में है। वह शायद ही कहीं दिखता हो।

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