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जूट की खेती के प्रति बढ़ रहा किसानों का रुझान, मूंग में आई कमी

जागरण संवाददाता सुपौल जिले में प्रमुख रूप से दलहन फसल में शामिल होने के साथ-साथ खेतों की उ

By JagranEdited By: Updated: Wed, 08 Jun 2022 12:35 AM (IST)
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जूट की खेती के प्रति बढ़ रहा किसानों का रुझान, मूंग में आई कमी

जागरण संवाददाता, सुपौल: जिले में प्रमुख रूप से दलहन फसल में शामिल होने के साथ-साथ खेतों की उर्वरा शक्ति को बनाए रखने में सहायक मूंग फसल के रकबा में हाल के दिनों में कमी दर्ज की गई है। पिछले दो वर्षों के आंकड़े को देखें तो इस फसल में 5 से 6 हजार हेक्टेयर की कमी आई है। इसके पीछे लगातार हो रहे जलवायु परिवर्तन को मुख्य वजह बताया जा रहा है। जलवायु में हो रहे लगातार परिवर्तन के कारण मूंग की खेती किसानों के लिए घाटे का सौदा बनती जा रही है। जिससे किसानों का मोह धीरे-धीरे इस फसल से टूटता जा रहा है । इसके उलट जिले के किसानों को जूट की खेती खूब भा रही है। जिससे हाल के वर्षों में जूट की खेती का रकबा बढा है। इस वर्ष जिले में 20 से 25 हजार हेक्टेयर खेतों में जूट की खेती किए जाने की संभावना जताई जा रही है। जो पिछले 2 वर्ष की तुलना में 5 से 6 हजार हेक्टेयर अधिक होगी । जबकि मूंग की फसल 20 हजार हेक्टेयर से घटकर 15 हजार हेक्टेयर पर पहुंच गई है। खेती का यह आंकडा कृषि विभाग ने दर्ज किया है। दरअसल यहां के किसान रबी फसल की कटाई के उपरांत मूंग की फसल लगाते हैं । इस समय खेतों में नमी की कमी होती है। इधर बारिश भी समय से नहीं होने के कारण मूंग की बुआई में देरी हो जाती है । इधर बुआई में देरी होने से जब तक फसल में लगी बाली पकने को होती है तब तक बारिश आ जाती है और किसान बाली को नहीं तोड़ पाते हैं। किसानों का मानना है कि तीन बार टूटने वाला मूंग एक बार भी टूट नहीं पाता है। जबकि कम लागत व अधिक उत्पादन के कारण किसानों को जूट की खेती काफी भा रही है। एक एकड़ जूट की खेती में करीब 18 हजार की लागत आती है । एक एकड़ में 10 क्विटल तक पाट का उत्पादन हो जाता है। पिछले वर्ष जूट का बाजार भाव 6 हजार से लेकर 65 सौ प्रति क्विटल था। बाजार भाव अधिक मिलने से लागत के अनुरूप किसान को दोगुना मुनाफा हो जाता है।

--------------------------------------------- बोले किसान- किसनपुर के किसान पांडव कुमार यादव ने बताया कि तीसरे फसल के रूप में वे लोग मूंग की खेती करते हैं ।परंतु उत्पादन में कमी के कारण अब इनके जगह जूट की खेती उन लोगों के लिए फायदेमंद साबित हो रही है। अच्छी पैदावार के साथ-साथ डिमांड अधिक रहने के कारण कीमत भी मिल जाती है। जिससे किसानों के लिए जूट की खेती मूंग की अपेक्षा काफी फायदेमंद हो जा रहा है।अब तो खाने भर के लिए ही मूंग की खेती करते है ।सबसे बड़ी बात है कि रेशे के अलावा जूट का डंढल भी बिक जाता है।जिससे कमोबेस खेती की लागत निकल जाती है । रेशे से प्राप्त आमदनी शुद्ध लाभ हो जाता है।

सरायगढ़ के किसान मो. जाकिर बताते हैं कि कोसी का इलाका होने के कारण यहां जल जमाव एक बड़ी समस्या है। खेतों में नमी अधिक रहने के कारण मूंग के पौधों का विकास नहीं हो पाता है । जिसका असर पैदावार पर पड़ता है। परंतु पाट ऐसे जमीन में भी बेहतर उत्पादन दे जाते हैं। फिर पाट की गोराई में भी मशक्कत नहीं करनी पड़ती है । जिससे मूंग की अपेक्षा पाट फायदा दे जाती है।

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कोट-

जूट की खेती को बढ़ावा देने के लिए सरकार भी कई तरह की योजनाएं चला रखी है । किसानों को प्रशिक्षण देने के साथ-साथ अन्य कई तरह का लाभ दिया जाता है। जहां तक मूंग फसल का सवाल है पिछले 2 वर्षों में इसमें 6 हजार हेक्टेयर की कमी दर्ज की गई है। जबकि इतनी ही बढ़ोतरी जूट की फसल में हुई है। दो वर्ष पूर्व जिले में जूट का रकबा 16 हजार हेक्टेयर के लगभग था। वहीं इस वर्ष 20 से 25 हजार हेक्टेयर में होने का अनुमान है। -समीर कुमार

जिला कृषि पदाधिकारी

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