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आजाद दस्ता नायक अमीर गुरुजी छापेमार सेनानियाें को करते थे प्रशिक्षि‍त, उनकी पत्‍नी ने भी निभाई अहम भूमिका

वैशाली प्रखंड के खजबत्ता निवासी अमीर गुरुजी का देश के स्वतंत्रता संग्राम में अहम योगदान रहा है परंतु स्वतंत्र भारत में ऐसे स्वतंत्रता सेनानियों के परिवार की सुध लेने वाला कोई नहीं है। अमीर गुरुजी कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी के स्थापना काल से पार्टी के सक्रिय सदस्य रहे थे। वह सन् 1930 में स्वतंत्रता सेनानी अक्षयवट राय की बनाई वानर सेना में शामिल हो गए थे।

By Ravi Shankar ShuklaEdited By: Prateek JainUpdated: Wed, 09 Aug 2023 10:47 AM (IST)
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बिदुपुर के खजबत्ता निवासी स्वतंत्रता सेनानी अमीर गुरुजी एवं उनकी पत्नी की तस्‍वीर

संवाद सूत्र, बिदुपुर (वैशाली): प्रखंड के खजबत्ता निवासी अमीर गुरुजी का देश के स्वतंत्रता संग्राम में अहम योगदान रहा है, परंतु स्वतंत्र भारत में ऐसे स्वतंत्रता सेनानियों के परिवार की सुध लेने वाला कोई नहीं है।

अमीर गुरुजी कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी के स्थापना काल से पार्टी के सक्रिय सदस्य रहे थे। वह सन् 1930 में स्वतंत्रता सेनानी अक्षयवट राय की बनाई वानर सेना में शामिल हो गए थे।

इन आंदोलनों में सक्रिय रहे और जेल गए

सन् 1932 में चौकीदारी टैक्स आंदोलन में एक सप्ताह तक जेल में रहे और सन् 1938 में बकाश्त आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाते हुए किसान सभा के मंत्री बने। मार्च 1943 में नेपाल के राज बिराज जंगल में प्रथम छापामार प्रशिक्षण केंद्र की स्थापना हुई, जिसमे अस्त्र-शस्त्र चलाने का प्रशिक्षण दिया गया, जिसके सेना नायक कैंप कमांडर अमीर गुरुजी थे।

ब्रिटिश सरकार के दबाव में नेपाल पुलिस ने 21 मार्च 1943 को जयप्रकाश नारायण, राम मनोहर लोहिया, श्याम नंदन सिंह, बैधनाथ झा आदि को बनकारों के टापू मुख्यालय से गिरफ्तार कर हनुमान नगर चौकी में बंद कर दिया था, उसके बाद आजाद दस्ता के प्रशिक्षण शिविर के सैनिक के सहायता से सूर्य नारायण सिंह एवं अमीर गुरुजी ने हनुमान नगर चौकी पर हमला कर बंदी नेताओं को छुड़ा लिया।

अदालत ने सताइस वर्षों की सजा सुनाई

सन् 1944 में 26 मार्च को सीतामढ़ी जिले के पंतपाकर गांव में सरकारी डाक छीनने के आरोप में अमीर गुरुजी को तीन साथियों के साथ गिरफ्तार कर लिया गया और उन्हें जेल में काफी यातनाएं दी गई। उन्हें जेल में डंडा-बेड़ी लगाकर रखा गया। उनके विरुद्ध छप्पन दफा लगाए गए और उन्हें सताइस वर्षों की सजा सुनाई गई।

गुरुजी ने केंद्रीय कारा बक्सर में बंदी के दौरान अत्याचार की विरुद्ध 45 दिनों तक अनशन किया। श्रीकृष्ण सिंह एवं अनुग्रह नारायण सिंह के टेलीग्राम पर अनशन समाप्त किया और 21 जून 1946 को हजारीबाग जेल से रिहा हुए। इसके बाद आजाद भारत में भी 15 अगस्त 1947 से लेकर 1967 के बीच वे दस बार जेल गए।

अमीर गुरुजी की धर्मपत्‍नी भी गईं जेल

अमीर गुरुजी की धर्मपत्नी लीला देवी भी बहादुर क्रांतिकारी थीं। ऑल इंडिया कांग्रेस के निर्देश पर 26 जनवरी 1944 को जिला एवं अनुमंडल मुख्यालय पर झंडा फहराया जाए, उस निर्देश पर आजाद दस्ता के सफल नायक अमीर गुरुजी ने अपनी बहादुर धर्मपत्नी लीला देवी को जिनकी गोद में लगभग तीन वर्ष की पुत्री सावित्री थी, उनसे तत्कालीन अनुमंडल मुख्यालय हाजीपुर पर झंडा फहराने को कहा, उनके निर्देश पर लीला देवी इस खतरनाक कार्य करने को राजी हो गईं।

इन्होंने पांच महिलाएं खजबत्ता निवासी लगनी देवी पति कोकिल सिंह, बरती देवी पति दीपन सिंह, फूलो देवी पति परीक्षण भगत, ज्योति देवी पति नारायण सिंह एवं महनार मुख्तियारपुर निवासी सूरज सिंह की पत्नी गंगा देवी को साथ लेकर हाजीपुर अनुमंडल मुख्यालय पर पुलिस चौकसी के बीच तिरंगा झंडा फहराकर महात्मा गांधी के जयकारे लगाए।

इसके बाद इन पांचों महिलाओं को पुलिस ने गिरफ्तार का मुजफ्फरपुर केंद्रीय जेल भेज दिया, जो बाद में एक साल की सजा काटकर जेल से रिहा हुईं।

गुरुजी के नेतृत्व में क्रांतिकार‍ियों ने रेल पटरी उखाड़ी

भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान चकसिकंदर और बिदुपुर स्टेशन के बीच गुरुजी के नेतृत्व में उत्तेजित जनता ने रेल पटरी को उखाड़ कर फेंक दिया था। सरकारी कार्यालय पर धावा बोल कर तिरंगा फहराया।

सरकारी कार्यालय पर तिरंगा फहराकर तीन सितंबर 1942 को जब अपने अपने घर लौट रहे थे, उसी बीच अंग्रेज पुलिस ने बिदुपुर बाजार में जुलूस पर गोली चला दी, जिस कारण सात व्यक्ति बलिदान हो गए।

गुरुजी के छोटे पुत्र अजीत कुमार अकेला की भी आपातकाल के दौरान जय प्रकाश नारायण के आह्वान पर किए गए छात्र आंदोलन में 3 अक्टूबर 1974 को पुलिस की गोली से मौत हुई थी।

गुरुजी ने आजाद भारत में मुखिया पद को सुशोभित किया, उनका निधन 15 मई 1994 को हुआ। वहीं, उनकी धर्मपत्नी का भी निधन उनकी मृत्‍यु के चौबीस घंटे के भीतर ही हो गया।

आजाद भारत में आज तक इन वीर सपूतों की एक प्रतिमा स्थापित करना राज्य और केंद्र सरकार दोनों ने मुनासिब नहीं समझा और ना ही इन लोगों के नाम पर कोई संस्था आदि खोली गई, जो एक सोचनीय विषय है।