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केला के लिए मशहूर हाजीपुर में बिक रहा चेन्नई, कोलकाता एवं असाम का केला

हाजीपुर का नाम सुनते ही सहसा एक नाम उभरकर जुबान पर आता है..यानी केला। इस क्षेत्र का मालभोग हो या अलपान या फिर चीनिया। इन सभी केलों का अपना स्वाद और अपनी विशेषता है।

By JagranEdited By: Updated: Wed, 18 Nov 2020 08:26 PM (IST)
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केला के लिए मशहूर हाजीपुर में बिक रहा चेन्नई, कोलकाता एवं असाम का केला

संवाद सूत्र, बिदुपुर :

हाजीपुर का नाम सुनते ही सहसा एक नाम उभरकर जुबान पर आता है..यानी केला। इस क्षेत्र का मालभोग हो या अलपान या फिर चीनिया। इन सभी केलों का अपना स्वाद और अपनी विशेषता है। इस क्षेत्र के किसानों की आर्थिक स्थिति केले के बगानों की स्थिति पर ही निर्भर करती है। केले की खेती किसानों की आर्थिक व सामाजिक दशा सुधारने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। परंतु समय-समय पर आई कई प्राकृतिक आपदाओं ने केले के फसल उत्पादकों की कमर ही तोड़ दी है। सरकार द्वारा केला फसल को फसल बीमा में शामिल नहीं किए जाने के कारण क्षेत्र के किसानों को प्रति वर्ष भारी आर्थिक क्षति उठानी पड़ती है। कभी सुखाड़ तो कभी अतिवृष्टि की वजह से केले के उत्पादन पर बुरा असर पड़ा है। इस बार बारिश ने किसानों के अरमानों पर पानी फेर दिए हैं। छठ के मौके पर यहां के लोग बाहर से मंगाए गए केले पर ही निर्भर हैं। बाजार में कोलकाता, असम एवं मद्रास का केला बिक रहा है। यहां का केला इस बार 500 से 1000 रुपये जबकि बाहर का केला 300 से 500 रुपये घौद बिक रहा है। सबसे बड़ी बात यह है कि बाहर का केला देखने में यहां के केला से ज्यादा सुंदर है पर स्वाद और सुगंध में यहां के केले जैसा नहीं है।

हाजीपुर के आसपास के गांवों के अलावा बिदुपुर प्रखंड क्षेत्र केला उत्पादन के लिए जाना जाता है। बिदुपुर प्रखंड क्षेत्र के जढुआ, सहदुल्लहपुर, सैदपुर गणेश, पानापुर धर्मपुर, कंचनपुर, रजासन, पकौली, भैरोपुर, माइल, दाउद नगर, खिलवत, बिदुपुर, रामदौली, शीतलपुर कमालपुर, अमेर, कर्मोपुर, मधुरापुर, मथुरा, गोखुला, मजलिसपुर, चेचर, कुतुबपुर, मनियापुर आदि गांवों के हजारों हेक्टेयर भूमि पर केले की फसल लहलहाती है।

जानकारी के अनुसार वर्तमान समय में वैशाली जिले में 4182 हेक्टेयर भूमि पर केले की खेती होती है। फसल उत्पादन लागत में हो रही निरंतर वृद्धि, कीट व्याधि का प्रकोप एवं बाजार की समस्या ने किसानों को धीरे-धीरे इस फसल से मुंह मोड़ने को विवश कर दिया है।

प्राकृतिक आपदा के समय भी केला उत्पादक किसानों को सरकार से किसी प्रकार की आर्थिक सहायता नहीं मिलती। सिचाई की कोई कारगर व्यवस्था नहीं होने से किसान निजी पंप सेट से सिचाई करने को बाध्य हैं। जो काफी महंगा पड़ता है। उत्पादन लागत अधिक होने के कारण भी किसान परेशान हैं। केले से बनने वाले उत्पादों के संयत्र भी यहां नहीं हैं। इस क्षेत्र में केला पकाने की न तो कोई व्यवस्था है और न ही केले से बने चिप्स एवं अन्य सामग्री के निर्माण के लिए कोई उद्योग। जबकि हाजीपुर के ही हरिहरपुर में ही स्थापित केला अनुसंधान केंद्र में कभी केले के थम के रेशे से बनी वस्तुओं के निर्माण की तकनीक सिखाई जाती थी। वर्तमान में केला उत्पादक किसान परेशान हैं। पिछले पांच वर्ष से इलाके के केला उत्पादक किसान प्राकृतिक आपदा की मार झेल रहे हैं। इस बार बारिश ने किसानों के अरमानों पर पानी फेर दिया है।