नारायणी के विभिन्न घाटों पर सुबह और शाम में बड़ा ही मनोहारी दृश्य होता है। चारों ओर फैली हरियाली के बीच अविरल बहती नदी लोगों को सहज अपनी और आकर्षित कर लेती है। यहां पर घाटों की श्रृंखला है।
कार्तिक पूर्णिमा के मौके पर नारायणी नदी के विभिन्न तटों पर दस लाख से अधिक श्रद्धालुओं का जुटान होता। वैसे पूरे साल यहां पर बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं के आने का क्रम जारी रहता है।
नारायणी तट पर कोनहारा समेत एक दर्जन से अधिक हैं घाट
नारायणी तट पर चार किलोमीटर में कोनहारा समेत एक दर्जन से अधिक घाट हैं। प्रमुख घाटों में सीढ़ी घाट, कौशल्या घाट, पुरानी एवं नई गंडक पुल घाट, बुटन दास घाट है।
यहां नमामि गंगे से कई घाटों का निर्माण कराया गया है। कई घाटों का निर्माण प्रस्तावित है। कई का निर्माण कार्य चल रहा है।
हाजीपुर नगर परिषद की ओर से कई घाटों पर लाइटिंग की व्यवस्था की गई है। वहीं जहां नहीं है, वहां निकट भविष्य में लाइटिंग की व्यवस्था हो जाएगी।
भक्त की पुकार पर यहां पहुंचे थे हरि और हर
हाजीपुर पावन नगरी है। कथा है कि यहां गंगा-गंडक संगम स्थल पर गज एवं ग्राह के बीच युद्ध हुआ था। काफी बलवान होने के बावजूद गज (हाथी) ग्राह (मगरमच्छ) से युद्ध में कमजोर पड़ने लगा, तब उसने सूंढ़ में पवित्र जल एवं कमल पुष्प लेकर श्रीहरि एवं हर की आराधना की थी।
भक्त की पुकार पर यहां स्वयं प्रभु पधारे और सुदर्शन चक्र से ग्राह का वध कर अपने भक्त के प्राणों की रक्षा की थी। प्रभु के हाथों जीवन त्याग कर ग्राह को मोक्ष की प्राप्ति हो गई थी।वहीं गज को नया जीवन मिला था। इसी कारण इस पावन भूमि पर स्थित नारायणी तट पर देश-दुनिया से श्रद्घालु पहुंचते हैं।
कार्तिक पूर्णिमा स्नान को 10 लाख से अधिक जुटते श्रद्धालु
हाजीपुर के नारायणी तट पर स्थित घाटों पर वैसे तो पूरे साल श्रद्धालुओं का जुटान होता है, पर कार्तिक पूर्णिमा के मौके पर 10 लाख से अधिक श्रद्धालुओं का जुटान होता है।
भारी जुटान को लेकर यहां कई दिनों तक व्यापक प्रशासनिक इंतजाम करने पड़ते हैं। वहीं गंगा दशहरा एवं कार्तिक और चैती छठ के पर भी लाखों श्रद्धालु घाटों पर जुटते हैं। वहीं पूरे साल विभिन्न त्योहारों में मौके पर श्रद्धालु पहुंचते हैं।
मोक्ष की कामना के साथ यहां होता अंतिम संस्कार
हरि-हर की पावन नगरी हरिहरक्षेत्र के कोनहारा में कई जिलों के लोग अपने स्वजनों के निधन के बाद अंतिम संस्कार के लिए पहुंचते हैं। यहां पर ग्राह को अपने हाथों वध कर श्रीहरि विष्णु ने मोक्ष प्रदान किया था।
इसी मान्यता को लेकर लोग यहां पूरे साल पहुंचते हैं। वैशाली जिले के विभिन्न गांवों के अलावा यहां पड़ोसी जिला सारण, मुजफ्फरपुर, समस्तीपुर समेत कई अन्य जिलों से पहुंचते हैं।
शिव मंदिर नेपाली वास्तुकला का अद्भुत उदाहरण
पगोडा शैली में निर्मित शिव मंदिर नेपाली वास्तुकला का अद्भुत उदाहरण है। नेपाल के राजा राजेन्द्र विक्रम शाह के समय 18वीं शताब्दी में नेपाली मंदिर का निर्माण पूर्ण हुआ था।
ऐसा माना जाता है कि इस मंदिर का निर्माण राजा राजेन्द्र के सिंहासन पर आसीन होने से पूर्व उनके पिता राजा राणा बहादुर शाह (1800-1804) के आदेश से आरंभ हो चुका था, जब वे अपने भारत प्रवास के दौरान काशी में निवास कर रहे थे।उनकी गहरी आस्था काशी और गंगा-गंडक की संगम भूमि हाजीपुर के प्रति थी। उन्होंने ही नेपाली वास्तुकला पर आधारित पगोडा शैली के दो शिव मंदिरों के निर्माण का आदेश दिया था, जिसमें एक मंदिर काशी में बना तो दूसरा गंगा-गंडक के संगम स्थल हाजीपुर के कोनहारा घाट पर।
यहां अनुज लक्ष्मण एवं गुरु के साथ पधारे थे प्रभु श्रीराम
कोनहारा के निकट ही रामचौरा मंदिर भी स्थित है। कहा जाता है कि अपने अनुज लक्ष्मण एवं गुरु विश्वामित्र के साथ अयोध्या से जनकपुर जाने के दौरान भगवान श्रीराम ने यहां विश्राम किया था। उनके चरण चिह्न प्रतीक रूप में यहां मौजूद हैं। यहां पर प्रत्येक वर्ष रामनवमी के दिन भव्य मेला लगता है।
सड़क, रेल एवं जल मार्ग से सहज पहुंच सकते हैं यहां
कोनहारा समेत सभी घाट हाजीपुर शहर में ही स्थित है। यहां पर सड़क, रेल एवं जल मार्ग से सहज पहुंचा जा सकता है। सड़क मार्ग से पटना एवं सोनपुर से होकर यहां पहुंचा जा सकता है। पटना से कोनहारा की दूरी मात्र 20 किमी है।
महात्मा गांधी सेतु से टाल प्लाजा हाजीपुर के निकट से सड़क कोनहारा को आती है। वहीं जेपी सेतु से सोनपुर होकर सड़क मार्ग से पहुंच सकते हैं। हाजीपुर रेलवे स्टेशन से दूरी तीन किमी है।
केले की कई किस्मों के साथ परवल की मिठाई का स्वाद विशिष्ट
हाजीपुर केले की खेती के लिए प्रसिद्ध है। यहां कई किस्मों के केले मिलेंगे। वहीं रामदाना एवं खोआ की लाई के साथ ही परवल की मिठाई का विशिष्ट स्वाद है।
यहां शाकाहारी के साथ ही मांसाहारी भोजन भी उपलब्ध है। शहर में कई छोटे-बड़े होटल हैं। मटन के शौकीन लोगों के लिए गांधी चौक पर हांडी मटन एवं पराठा-लीट्टी की कई दुकानें हैं।
सुबह और शाम में घाटों पर होता मनोहारी दृश्य
नारायणी के विभिन्न घाटों पर सुबह और शाम का दृश्य मनोहारी होता है। चारों ओर फैली हरियाली के बीच अविरल बहती नदी लोगों को सहज अपनी ओर आकर्षित करती है।नदी के उस पार सोनपुर के घाट एवं मंदिरों का दर्शन होता है। इधर, घाट से महात्मा गांधी सेतु भी दिखता है। शाम में हाइमास्ट लाइट की दुधिया रोशनी के बीच यहां का दृश्य मन मोह लेता है।
डाल्फिन को देखने भी पहुंचते हैं लोग
नारायणी नदी में अभी भी बड़ी संख्या में डाल्फिन मौजूद हैं। अक्सर लोगों को यहां डाल्फिन दिख जाते हैं। यहां आने वाले लोग घंटों घाटों पर डाल्फिन का दीदार करते को ठहरते हैं। नदी की सतह पर अठखेलियां करतीं डाल्फिन को मोबाइल कैमरे में कैद करने की होड़ मची रहती है।
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