हाजीपुर की जमीन पर खूब फल-फूल रहा नागपुर का संतरा, एक कट्ठा में 50 हजार रुपये तक की आय
जीवन का एक ही फलसफा है अगर जुनून हो तो सब संभव है। हाजीपुर सदर प्रखंड में किसान सत्येन्द्र पांडेय ने संतरा की खेती कर इसे सच कर दिखाया है। वह केवल एक पौधा नागपुर लाये थे। उनके बगीचे में अब संतरे के करीब 50 पेड़ हैं।
By Shubh NpathakEdited By: Updated: Mon, 02 Nov 2020 08:45 AM (IST)
शैलेश कुमार, हाजीपुर। जुनून हो तो कुछ भी असंभव नहीं। इसे साबित कर दिखाया है वैशाली जिले के सदर प्रखंड के भटंडी गांव के किसान सत्येंद्र पांडेय ने। इनके जीवन का एक ही फलसफा है कि अगर जुनून हो तो सब संभव है। स्नातक और बी फार्मा की डिग्री लेने के बाद सत्येंद्र ने एक दवा कंपनी की अच्छी नाैकरी छोड़ अपने गांव की मिट्टी से ऐसी मोहब्बत की कि खेती की परिभाषा ही बदलकर रख दी और उसी के होकर रह गए। अपनी जमीन में संतरा उपजाकर इन्होंने दिखा दिया कि वैशाली की मिट्टी केवल केले और आम के उत्पादन लिए ही मुफीद नहीं है, बल्कि इस मिट्टी में संतरे भी उपजाए जा सकते हैं, वह भी बड़े पैमाने पर। यहां के संतरे न तो स्वाद में और ना ही आकार में नागपुरी संतरे से कम हैं। अभी उन्होंने अपनी जमीन में संतरे के 50 पेड़ लगा रखे हैं। उनमें से 20-22 पेड़ों में काफी फल आ रहे हैं।
व्यवसाय से जोड़ें तो खेती में नहीं होगा कोई फायदा
आम तौर पर किसान खेती को घाटे का सौदा मानते हैं, लेकिन पांडेय ने खेती को व्यवसाय से जोड़ा। लाभ-हानि का आंकड़ा निकाला और तकनीक व नए प्रयोग से मिट्टी को सोना बनाया। इस काम में पांडेय को परिवार का भी पूरा सहयोग मिला। वैशाली की मिट्टी में संतरा, अनार, नींबू जैसे आमदनी देने वाले बारहमासी फल का उत्पादन कर खेती को एक नई परिभाषा दी। परिभाषा यह कि खेती घाटे का नहीं बल्कि लाभ का सौदा है। शर्त यह कि जुनून हो और कुछ नया करने का जज्बा। अपनी जमीन में कई तरह के पौधे लगाकर पांडेय ने हरियाली की छांव दी है। मिशन भारती ने उन्हें वैशाली विभूति सम्मान से भी नवाजा है। पांडेय अपने पुस्तैनी घर पर अपना एक स्कूल भी चलाते हैं, जहां बच्चों को पौधों के प्रति प्रेम करना भी सिखाया जाता है। वह कहते हैं कि पौधों के प्रति इश्क अब उनके साथ ही जाएगा।
सात साल पहले नागपुर से लाये थे केवल एक पौधाउन्होंने बताया कि सात साल पहले नागपुर से संतरे का एक पौधा लगाया था और उसी से ग्राफ्टिंग कर यहां की मिट्टी के अनुकूल पौधे तैयार किए हैं और कर रहे हैं। संतरे का पांच साल का एक पेड़ एक सौ किलो से अधिक फल देता है। इसकी मार्केटिंग की भी कोई विशेष चिंता नहीं करनी पड़ती। बगल के सराय बाजार में आराम से 50-60 रुपये किलो फल बिक जाते हैं। प्रति कट्ठा 50 हजार रुपये तक की आय की जा सकती है।
कृषि विज्ञानी कर चुके हैं तारीफपांडेय की जमीन में संतरा उत्पादन को कृषि अनुसंधान केन्द्र पटना के निदेशक डॉ. अरविंद कुमार और कृषि विज्ञान केंद्र हरिहरपुर, हाजीपुर के पूर्व समन्वयक डॉ. देवेंद्र भी देखकर तारीफ कर चुके हैं। संतरे की फसल के साथ हल्दी व ओल की खेती की जा सकती है। संतरे की खेती को नीलगाय व अन्य पशु-पक्षी से भी कोई खतरा नहीं है।
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