प्रखंड पर्यटन दर्शनीय बिहार : सरैया मन में देखिए परिंदों की अठखेलियां और प्रकृति की सुंदरता का मनोहारी दृश्य
Bihar Tourist Places बिहार के पश्चिम चंपारण जिले में बेतिया से करीब साढ़े नौ किलोमीटर दूर एक झील है। इसे सरैयामन कहा जाता है। यह पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र है। सैलानी यहां नौका विहार करते हुए सूर्योदय और सूर्यास्त के सुंदर प्राकृतिक दृश्य का आनंद लेते हैं। यहां कई वन्य जीवों और पक्षियों के बीच भौंकने वाला हिरण लोगों को खासा लुभाता है।
सुनील आनंद, बेतिया (पश्चिम चंपारण)। प्रकृति की सुंदरता का मनोहारी दृश्य आपका मन मोह लेगी। मेहमान परिंदों को अठखेलियां करते देख मन हर्षित हो जाएगा। इस तरह प्राकृतिक सौंदर्य उदयपुर वन्यजीव अभयारण्य में बिखरा पड़ा है।
यहां स्थित सरैया मन (झील) पक्षी विहार अपनी नैसर्गिक सुंदरता के लिए विख्यात है। यहां सर्दियों में विदेशी पक्षी भी बड़ी संख्या में आते हैं।सूर्योदय के समय मन में सूर्य की सुंदर छवि तो देखते ही बनती है। जिला मुख्यालय बेतिया से 9.4 किमी दूर सरैयामन में नौका विहार के साथ मेहमान परिंदों का कलरव खूब सुहाता है।
झील के समीप बने टावर और करीब सात किलोमीटर में फैले जंगल प्राकृतिक सुंदरता में चार चांद लगाते हैं। झील के तट पर जामुन के सैकड़ों पेड़ हैं।पानी में गिरे फल और पत्तों के कारण झील का मीठा जल औषधीय माना जाता है। कुछ लोग तो पाचन शक्ति बढ़ाने के लिए सरैयामन का पानी पीते हैं। इस झील की रोहू, नैनी, कतला, कवई, टेंगरा, बांगुरी और भकुरा मछलियां बिहार एवं उत्तर प्रदेश में प्रसिद्ध हैं।
15 प्रजाति के पक्षियों का स्थायी बसेरा
प्रत्येक वर्ष ठंड के मौसम में यहां पोचार्ड, कोरमोरेंट, लिटिल ग्रीब, हेरोंस, ग्रेट इग्रेट, एशियन ओपनबिल, गडवाल, ब्रांज विंग्ड जकाना, किंगफिशर, लालसर बत्तख, नीलसर बत्तख, गार्गनी टील, कामन टील और मुर्गाबी सहित अन्य देसी-विदेशी पक्षी दिखते हैं।इसके अलावा झील के किनारे जकाना, एग्रेट्स, तालाब बगुला, स्वैम्प पार्ट्रिज और पर्पल मुरहेन जैसी पक्षियों का स्थायी बसेरा है। झील के पास स्थित जंगल में आम पक्षी के तौर पर जंगली कौआ, सफेद कलगी वाली बुलबुल, लाल मूंछ वाली बुलबुल, ब्लैक बर्ड, ट्री पाई, जंगल बैबलर और कामन बैबलर हैं।
ग्रीनलैंड और साइबेरिया सहित अन्य जगहों से पक्षियों का आगमन सरैया मन में होता है। ये फरवरी के अंतिम सप्ताह तक यहां से लौटने लगते हैं।यहां 135 प्रजाति के विदेशी और 85 प्रजाति के देसी पक्षी आते हैं। वर्ष 2014-15 के सर्वेक्षण में उदयपुर वन्यजीव अभयारण्य में पक्षियों की 15 प्रजातियों की स्थायी उपस्थिति दर्ज की गई थी।
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जिले के बैरिया प्रखंड के दक्षिण- पश्चिम में 887 एकड़ में उदयपुर वन्यजीव अभयारण्य है। इसे 1978 में सरकार ने अधिसूचित किया था। वन क्षेत्र में समतल भूमि पर अर्धचंद्राकार सरैया मन है। बैरिया प्रखंड के मझरिया गांव झील के दूसरी तरफ जंगल के एक छोटे हिस्से से घिरा है। उदयपुर वन्यजीव अभयारण्य के उत्तर में पतराखा-नौरंगिया गांव की खेती योग्य भूमि है।दक्षिण में बलुआ-रामपुरवा और तुमकड़िया गांव की खेती है। पूरब में सिसवा सरैया और भटवलिया गांव हैं। पश्चिम में बघम्बरपुर और सिरसिया मठिया गांव हैं। सरैया मन हरहा नदी से जुड़ा है।पटना यूनिवर्सिटी के जूलाजी विभाग के सर्वे में कहा गया है कि 19वीं शताब्दी की शुरुआत में सरैयामन गंडक नदी का छाड़न है। यह मीठे पानी की झील है जो अभयारण्य की लगभग एक तिहाई भूमि पर है। इसके एक छोटे से क्षेत्र में उत्तर-पश्चिम की ओर सुंदर बेंत के जंगल हैं। पांच नवंबर 2014 को पटना यूनिवर्सिटी के सर्वेक्षण में झील की न्यूनतम गहराई 10.7 फीट से अधिकतम 29.1 फीट तक दर्ज की गई थी।यहां दिखेगा भौंकने वाला हिरण
मन में पक्षियों के अलावा कई जंगली जानवर भी देख सकते हैं। यहां भौंकने वाले हिरण की दुर्लभ प्रजाति दिखती है। इनकी आवाज बहुत चौंकाने वाली होती है। इसके अतिरिक्त नीलगाय, चित्तीदार हिरण, जंगली भालू, जंगली बिल्ली व सियार यहां दिखते हैं। यहां अजगर, धारीदार करैत, कोबरा आमतौर पर दिख जाते हैं।झील का पानी बनाता पाचन तंत्र को मजबूत
झील के तट पर सैकड़ों जामुन के पेड़ हैं। अभयारण्य होने के कारण इसे कोई तोड़ नहीं सकता। ऐसे में जामुन के फल और पत्ते झील में गिरते हैं।यह झील के पानी को औषधीय बना देता है। माना जाता है कि इस कारण इस पानी के सेवन से पाचन तंत्र मजबूत होता है। पेट संबंधी बीमारी दूर होती है। पहले यहां के स्थानीय लोग झील का पानी बेचते थे। अब वन विभाग ने रोक लगा दी है। 85 वर्षीय बुजुर्ग चंद्रिका यादव ने बताया कि पेटभर भोजन कर लेने के बाद सरैया मन का एक गिलास पानी भोजन को तुरंत पचा देता है।चिकित्सक डा. पीके मिश्र बताते हैं कि वैसे भी जामुन में पर्याप्त विटामिन बी और आयरन होता है। 100 ग्राम जामुन में लगभग 62 कैलोरी ऊर्जा होती है, जो सेहत के लिए बेहद लाभकारी है।खान-पान
वन विभाग की ओर से अभयारण्य में ईको हट और गेस्ट हाउस बनाया गया है, लेकिन अभी यह सुविधा चालू नहीं है। अभयारण्य से करीब आधा किमी दूर पतरखा बाजार है, जहां दिया का दही, मरचा चूड़ा का स्वाद ले सकते हैं।पतरखा बाजार से करीब आधा किमी दूर निमुईया कुंड चौक है, जहां चंपारण मीट खाने की सुविधा मिलेगी। पर्यटकों के आवासन के लिए फिलहाल जिला मुख्यालय बेतिया में होटल और गेस्ट हाउस है।ऐसे पहुंचें
ट्रेन और बस मार्ग से यहां पहुंचा जा सकता है। ट्रेन या बस से जिला मुख्यालय बेतिया में उतरने के बाद संतघाट से आटो मिलता है। वह आटो पुजहा-पटजिरवा जाता है।उदयपुर वन्य अभयारण्य में पर्यटकों की इंट्री के लिए अलग-अलग तीन मुख्य द्वार हैं। गेट नंबर एक से इंट्री के लिए संतघाट से छह किमी टेंपो से चलने के बाद बरवाबारी गांव के समीप उतरेंगे।वहां से आधा किमी पैदल चलने के बाद गेट नंबर एक से वन्य अभयारण्य में इंट्री मिल जाएगी। पतरखा गांव से 300 मीटर पैदल चलने के बाद गेट नंबर दो से वन्यजीव अभयारण्य में प्रवेश करेंगे। बरवावारी गांव से आधा किमी दूर पत रखा गांव से टेंपो से उतरने पर गेट नंबर तीन से इंट्री मिलेगी। अगर प्राइवेट वाहन से आते हैंतो वन्यजीव अभयारण्य तक पहुंच जाएंगे।यह भी पढ़ेंप्रखंड पर्यटन दर्शनीय बिहार: वाल्मीकि टाइगर रिजर्व में प्राकृतिक सौंदर्य के साथ देखें वन्यजीवों का संसार प्रखंड पर्यटन दर्शनीय बिहार : जंगल के बीच ललभितिया पहाड़ है प्रकृति का अनमोल उपहारउदयपुर वन्यजीव अभयारण्य प्रकृति की अनमोल धरोहर है। इसे पर्यटन के दृष्टिकोण से विकसित किया गया है। अक्टूबर से यहां पर्यटकों के आवासन आदि की सुविधा भी बहाल कर दी जाएगी। - आशीष कुमार, डीएफओ, पश्चिम चंपारण