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बिहार का एक गांव जहां भूतों का डेरा! जंजीर में बंधे किशोर को देख पिघला डॉक्‍टर का दिल तो ठीक हुए 667 मरीज

West Champaran News बिहार के पश्चिम चंपारण के थरुहट इलाके में मानसिक रोगियों की संख्या अधिक है। वर्ष 2020 में डॉ. गौरव मास्क और सैनेटाइजर का वितरण करने के लिए आए थे। इसी दौरान जंजीर में बंधा एक किशोर दिखा। तब उन्होंने मानसिक रोगियों का इलाज करने की ठानी। गौरव कुमार के नेतृत्व में 667 मानसिक रोगी स्वस्थ हो चुके हैं। 469 का निशुल्क उपचार चल रहा है।

By Aysha SheikhEdited By: Aysha SheikhPublished: Mon, 09 Oct 2023 03:24 PM (IST)Updated: Mon, 09 Oct 2023 03:24 PM (IST)
अंधविश्वास के मकड़ जाल में फंसे लोग

सुनील आनंद, बेतिया (पश्चिम चंपारण)। जिले के थरुहट इलाके में अंधविश्वास एवं गरीबी के कारण मानसिक रोगियों की संख्या अधिक है। इसमें डिप्रेशन, इंजाइटी, बायोपोलर, मिर्गी, माइग्रेन आदि के मरीज हैं। हालांकि, गांववालों को लगता है कि यहां भूतों का साया है।

नेशनल मेंटल हेल्थ सर्वे के आकड़े के मुताबिक, देश में 85.2 प्रतिशत मानसिक रोगियों का उपचार नहीं हो पाता है, क्योंकि औसतन एक लाख मरीजों के उपचार के लिए मात्र 0.3 प्रतिशत विशेषज्ञ चिकित्सक और हेल्थ वर्कर हैं।

कोरोना काल में मास्क और सेनेटाइजर का वितरण करने के लिए पहुंची पुणे की एक संस्था हिल स्टेशन फाउंडेशन बीते दो वर्ष से रामनगर प्रखंड के थरूहट इलाके में मानसिक स्वास्थ्य को लेकर जागरूकता अभियान चला रही है।

अंधविश्वास के मकड़जाल में फंसे लोग

फाउंडेशन के चेयरमैन साउथ अफ्रिका की इनटू आईटी टेक्नोलाजी के सीईओ सौरभ कुमार ने बताया कि अंधविश्वास के मकड़जाल में फंसे लोग पहले तो उपचार नहीं कराना चाहते थे।

फाउंडेशन की ओर से सामुदायिक जागरूकता अभियान चलाया गया, तब लोग उपचार कराने को तैयार हुए। लोगों में जागरूकता लाने के लिए बीते दो साल में फाउंडेशन की ओर से 15 लाख रुपये खर्च किए गए हैं।

667 मानसिक रोगी स्वस्थ हो चुके

डॉ. गौरव कुमार के नेतृत्व में मेडिकल टीम के अथक परिश्रम से 667 मानसिक रोगी स्वस्थ हो चुके हैं। 469 का निशुल्क उपचार चल रहा है। नेशनल मेंटल हेल्थ सर्वे के अनुसार, एक मानसिक रोगी के उपचार पर प्रतिमाह 1150 रुपये खर्च आता है।

दो-तीन वर्ष तक उपचार चलता है। सभी मरीज इतनी मोटी रकम खर्च करने में सक्षम नहीं होते। फाउंडेशन द्वारा मरीजों को एक ही दवा दी जाती है। स्क्रीनिंग से लेकर दवा तक में फाउंडेशन का प्रतिमाह 300 रुपये खर्च होता है। मरीजों को भी कई प्रकार की दवा नहीं खानी पड़ती है।

पेड़ के नीचे क्लीनिक को टीआइएसएस ने सराहा

टाटा इंस्टीट्यूट एंड सोशल साइंस मुंबई ने पेड़ के नीचे क्लीनिक के हील स्टेशन फाउंडेशन के मॉडल को सराहा है। आमतौर पर मानसिक रोगियों की स्क्रीनिंग और उपचार बंद कमरे में किया जाता है, लेकिन फाउंडेशन की टीम पेड़ के नीचे क्लीनिक चला मरीजों का उपचार करती है। सामुदायिक तौर पर स्क्रीनिंग की जाती है। स्क्रीनिंग के दौरान मरीज अपना अनुभव साझा करते हैं। इससे दूसरे मरीज भी प्रेरित होते हैं।

जंजीर में बंधा किशोर देख उपचार का लिया निर्णय

डॉ. गौरव ने बताया कि वर्ष 2020 में रामनगर प्रखंड के बनकटवा दोन में मास्क और सैनेटाइजर का वितरण करने के लिए गए थे। इसी दौरान जंजीर में बंधा एक किशोर दिखा। जानकारी मिली कि किशोर सीजोफेनिया से पीड़ित है। यह मानसिक रोगों में सबसे खतरनाक माना जाता है।

वह घर से जंगल की ओर भाग जाता है। आत्महत्या करने का प्रयास करता है। गरीब माता-पिता को आजीविका के लिए मजदूरी करनी पड़ती है। इसलिए इसे जंजीर से बांध कर रखा हैं। आज वह किशोर युवा बन चुका है और पूरी तरह से स्वस्थ है। इंस्टाग्राम पर फाउंडेशन के 30 हजार फालोअर हैं, इनमें 473 डोनर हैं। कई डोनरों ने मरीजों को गोद ले लिया है।

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