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पर्यावरण रक्षा का संदेश देता सामा चकवा

बेतिया। छठ पर्व के समापन होते ही अब सामा चकवा के गीतों से भाई-बहन के पवित्र प्रेम की भावना फिजा में

By Edited By: Published: Wed, 09 Nov 2016 03:00 AM (IST)Updated: Wed, 09 Nov 2016 03:00 AM (IST)

बेतिया। छठ पर्व के समापन होते ही अब सामा चकवा के गीतों से भाई-बहन के पवित्र प्रेम की भावना फिजा में घुलने लगी है। ग्रामीण क्षेत्र के इस लोक पर्व में बहनें अपनी भाई के दीर्घायु व खुशहाल जीवन की कामना करती है। रात शुरू होते ही ,समवा हेरइले दउरीया से गइले चोर.. आदि पारंपरिक गीतों के बोल से मधुरस प्रवाहित होने लगे है। भगवान श्री कृष्ण की पुत्री श्यामा व पुत्र सौम्ब प्रेम कथा पर आधारित इस लोक पर्व का ग्रामीण क्षेत्रों में खासा महत्व है। हर बहन छठ के प्रात:कालीन अ‌र्घ्य के बाद शाम में इसमें जरूर जुटती है। बूढ़ी हो या अबोध बहन सामा को छूने की और हर भाई का नाम लेकर उनके दीर्घ जीवन की कामना की परंपरा का निर्वाह करती है। पूर्णिमा के दिन होने वाले विसर्जन तक बहनों के हंसी से वातावरण गूंजायमान होता रहेगा। परंपरा के अनुसार बहने एक जगह सामा-चकवा डाला लेकर जुट रही है और गोलाकार बैठ कर न सिर्फ परंपरागत गीतों का प्रयोग होता है। बल्कि इसके माध्यम से हास परिहास का भी माहौल बनता है। ननद-भाभी के बीच की हंसी भी गीतों में गूंजते रहे है। इस दौरान महिलाएं चुंगली के लिए अनिष्ट की कामना भी करती है। इसके बाद सामा-चकवा को शीत में छोड़ दिया जाता है। अगले दिन बहने फिर इसे दोहराती है। अंतिम दिन विदाई गीतों के साथ नदी, तालाबों में उसे विसर्जित किया जाता है। यह पर्व अपने आप में पर्यावरण संरक्षण का संदेश भी समेटे है। पशु-पक्षी के प्रति प्रेम व संवेदना भी इसमें समाहित है। ऐसे संदेशों से भरा पर्व ग्रामीण क्षेत्रों में जोर-शोर से मनाया जा रहा है। लेकिन इसके स्वर मंद पड़ने लगे है। शहरीकरण व सामाजिक दूरी के कारण अब इसका सामूहिक स्वरूप सिमटता जा रहा है। इस मौके पर भलुवहिया गांव में बहन शशीबाला कुमारी, संजना कुमारी, मंजु तिवारी, मनीषा कुमारी, अनिता, रेश्मी, संगना, दिव्या, झुन्नी, मुन्नी, रमिता, पूनम देवी, सुशीला देवी, ममता देवी, जानकी देवी, रीतू, सोनी, अंजली, आरती, गुड़िया, रीपू, पुनीता, रीना, जोनी आदि शामिल रहे।


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