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रेल यात्रियों के लिए मुश्किलों का दौर, सड़क मार्ग से आवागमन में रहीं चुनौतियां

बेतिया। आर्थिक जीवन में परिवहन का अत्यधिक महत्व है। यातायात के साधन रेल सड़क आपसी समन्वय त

By JagranEdited By: Updated: Wed, 30 Dec 2020 12:24 AM (IST)
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रेल यात्रियों के लिए मुश्किलों का दौर, सड़क मार्ग से आवागमन में रहीं चुनौतियां

बेतिया। आर्थिक जीवन में परिवहन का अत्यधिक महत्व है। यातायात के साधन रेल, सड़क आपसी समन्वय तथा आर्थिक एकता व विकास के साथ कई मायनों में क्रांतिकारी बदलाव के गवाह बनते रहे हैं। लेकिन वैश्विक आपदा कोरोना ने परिवहन व्यवस्था को काफी प्रभावित किया। मार्च में लॉक डाउन के बाद इस वर्ष कई स्टेशन वीरान पड़े रहे। सड़क परिवहन व्यवस्था का वहीं हाल रहा। पश्चिमोत्तर बिहार का महत्वपूर्ण जंक्शन नरकटियागंज और इसके रोड साइड स्टेशनों का बुरा हाल रहा। गौनाहा रेल खंड में पांच वर्षों से चल रहा आमान परिवर्तन का कार्य इस साल भी पूरा नहीं हुआ। चमुआ, हरिनगर, भैरोगंज, बगहा, साठी, चनपटिया, कुमारबाग, बेतिया, गोखुला, मरजदवा, सिकटा आदि स्टेशनों से जुड़े लोगों को अनुमंडल और जिला मुख्यालय आने जाने के चुनौतियां रही। पैसेंजर ट्रेनों के परिचालन का लोग इंतजार करते रहे। लोगों का कहना है कि साल के अंतिम महीनों में मुजफ्फरपुर वाया नरकटियागंज होकर गोरखपुर रेल खंड में प्रतिदिन दो गाड़ियों का परिचालन भी शुरू हुआ। मगर आम यात्रियों कोई राहत नहीं मिली। विभिन्न रेल खंडों में गोखुला, मरजदवा, पुरुषोत्तमपुर, सिकटा, कंगली, भेलवा आदि स्टेशन सुनसान पड़े रहे। ना कोई ट्रेन चली और ना यात्रा की उम्मीद में यात्री पहुंचे। बॉर्डर क्षेत्र के लोगों को परिवहन व्यवस्था की परेशानियां उठानी पड़ी।

सिर्फ दिन में ही परिचालित हुईं दो ट्रेनें

अमान परिवर्तन के पहले नरकटियागंज - रक्सौल रेल खण्ड में 6 जोड़ी गाड़ियां चलती थी। लेकिन इसके बाद इस खंड में दो जोड़ी गाड़ियां चलनी शुरू हुईं। लेकिन लॉकडाउन के बाद इनका भी परिचालन बंद हो गया। इस इलाके में सड़क व्यवस्था भी ठीक नहीं होने के कारण लोगों को काफि परेशानियों का सामना करना पड़ा। उनकी आर्थिक और अन्य गतिविधियां बुरी तरह से प्रभावित हुई। वेंडर और रिक्शा चालकों की रोजी-रोटी हुई प्रभावित

परिवहन व्यवस्था प्रभावित होने के कारण स्टेशन और बस पड़ाव से जुड़े वेंडरों, रिक्शा चालकों और छोटे-छोटे रोजगार करने वालों को काफी क्षति उठानी पड़ी। बड़े बड़े स्टेशनों पर ठेला वेंडर पूरे वर्ष ट्रेनों के परिचालन का इंतजार करते रहे ताकि यात्रियों की संख्या बढ़े और उनका रोजगार भी आबाद रहे। लेकिन इस इंतजार में वर्ष के अंत तक उन्हें मायूसी के साथ गुजारना पड़ा। कुछ वेंडर तो अन्य कार्य में लग गए। कमोबेश यही स्थिति बस, टेंपो पड़ाव की रही। रिक्शा चालकों के सामने भी यही स्थिति पैदा हुई।

प्राइवेट वाहनों से आवागमन में भी खड़ी हुई मुश्किलें

थरुहट के लोग आमान परिवर्तन के साथ ट्रेनों के परिचालन के इंत•ार में हैं। अमोलवा, बेलवा, माधोपुर, भितिहरवा, श्रीरामपुर, गौनाहा, सिट्ठी समेत दर्जनों गांव की बड़ी आबादी को पांच साल से इस सुविधा का अभाव खटकता रहा है। ऊपर से कोरोना के कारण कई माह तक सीमित संख्या में वाहन चले। गाइडलाइन के अनुपालन के साथ लोगों को आने जाने की छूट मिली। इसकी आड़ में सड़क मार्ग से मनमानी पूर्ण किराया देकर लोग यात्रा करने को विवश हुए । ट्रेन से यात्रा में जिस दूरी के लिए दस रुपये देने पड़ते थे, सड़क मार्ग से उसके लिए 40- 50 रुपये देने पड़े। भिखनाठोरी निवासी पुन्ना सिंह का कहना है कि ट्रेन के परिचालन लिए भिखनाठोरी तक अमान परिवर्तन नहीं होना दुर्भाग्यपूर्ण है। पहले इसका लाभ बॉडर क्षेत्र से जुड़े नेपाल के लोग भी उठाते रहे हैं। कोरोना के कारण तो बॉर्डर क्षेत्र के लोगों का सड़क मार्ग से भी आवागमन काफी महंगा और चुनौतियों से भरा रहा।

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