भारत-नेपाल सीमा पर स्थित गंडक बैराज में इन दिनों मेहमान परिंदों के कलरव से गुलजार होने लगा है जिसे कयास लगाया जा रहा है कि अब ठंड आ गई है। जलाशय में इन प्रवासी पक्षी पानी में डुबकी लगाकर सबका ध्यान अपनी ओर खींच रहे हैं। इन पंछियों के यहां पहुंचने से वीटीआर की सुंदरता में चार चांद लग गए हैं।
By Viveka NandEdited By: Prateek JainUpdated: Tue, 21 Nov 2023 05:13 PM (IST)
जागरण टीम, बगहा/वाल्मीकिनगर (पश्चिमी चंपारण)। भारत-नेपाल सीमा पर स्थित गंडक बैराज के जलाशय में इन दिनों मेहमान परिंदों के कलरव से गुलजार होने लगा है, जिसे कयास लगाया जा रहा है कि अब ठंड आ गई है।
जलाशय में इन प्रवासी पक्षी पानी में डुबकी लगाकर सबका ध्यान अपनी ओर खींच रहे हैं। इन पंछियों के यहां पहुंचने से वीटीआर की सुंदरता में चार चांद लग गए हैं। इन मेहमान परिंदों का शिकार नहीं हो, इसलिए वन विभाग के द्वारा गश्त बढ़ा दी गई है।
दरअसल, साइबेरिया में भयंकर ठंड से बचने के लिए हजारों किलोमीटर की यात्रा कर प्रवासी पक्षी प्रत्येक वर्ष वाल्मीकिनगर आते हैं। पक्षी विशेषज्ञों की मानें तो ये पक्षी प्रतिवर्ष अपने निश्चित ठिकाने पर ही पहुंचते हैं। यह पक्षी हजारों किलोमीटर दूर तकरीबन तीन से चार माह में यहां पहुंचते हैं।
अक्टूबर माह में इनका आना शुरू होता है जो कि नवंबर के अंतिम सप्ताह तक चलता है इसके बाद यह पक्षी मार्च तक यहां रहते हैं। बसंत पंचमी के बाद यहां से यहां ये पक्षी धीरे-धीरे पलायन करने लगते हैं। वाल्मीकिनगर में प्रवासी पक्षियों का जमावड़ा पर्यटकों को खूब भा रहा है।
प्यार का पैगाम लेकर आते हैं प्रवासी पक्षी
प्रवासी पक्षी अपने साथ संदेश भी लेकर आते हैं। प्रवास पर आने वाले ज्यादातर पक्षी अपने एक ही जोड़ के साथ पहुंचते हैं। शीतकालीन में यहां पर अपने वंश की वृद्धि करते हैं और पुनः अपने परिवार के साथ वापस लौट जाते हैं।बताया जाता है कि ये पक्षी प्रत्येक वर्ष आते तो अकेले हैं, लेकिन यहां से जाते हैं तो इनके साथ होता है, भरा पूरा परिवार। यह परिंदे मुख्यतः नदी की मछलियां, जलीय जीव एवं आसपास के खेतों में लगे अनाज का सेवन करते हैं।
नवंबर से मार्च तक प्रवास पर रहते हैं विदेशी परिंदे
गंडक बैराज के जलाशय में नवंबर से मार्च तक विदेशी परिंदे प्रवास करते हैं। इस बाबत प्रकृति प्रेमी मनोज कुमार ने बताया कि साइबेरिया में भयंकर ठंड से बचने के लिए हजारों किलोमीटर की यात्रा कर प्रवासी पक्षी प्रत्येक वर्ष वाल्मीकिनगर आते हैं।ये पक्षी प्रतिवर्ष अपने निश्चित ठिकाने पर ही पहुंचते हैं। ये आसमान के नक्षत्रों,नदी नालों, तालाब, झीलों, घाटियों के सहारे अपने गंतव्य स्थल तक पहुंचते हैं।
करीब तीन चार माह तक यहां रहते हैं। इन दिनों यह वंश की वृद्धि करते हैं। जैसे जैसे गर्मी बढ़ने लगती है। वैसे वैसे यहां से जाने की तैयारी करने लगते हैं। जैसे जैसे ठंड में इजाफा होगा।वैसे वैसे प्रवासी पक्षियों की संख्या में भी बढ़ोतरी होगी।हालांकि मार्च से अप्रैल तक ये अस्थाई आशियानों को छोड़ कर अपने वतन को लौट जाते हैं। ये प्रवासी पक्षी नवंबर माह में सर्दियों के आगमन पर आते हैं और मार्च के महीने में बसंत पंचमी के पश्चात अपने वतन को लौट जाते हैं। साइबेरियन क्षेत्र में अधिक ठंड पड़ती है।
ठंड के कारण वहां बेजुबान परिंदों के सामने भोजन का संकट उत्पन्न हो जाता है। इसलिए वे अपना वतन छोड़कर गर्म प्रदेशों की ओर रुख कर लेते हैं। साइबेरियन पक्षी में लालसर, दिघवच, डमर, केशराज,अमैठा, गैरी, आदि शामिल है।
आते अकेले, जाते परिवार के साथ
ये पक्षी प्रत्येक वर्ष आते तो अकेले हैं। लेकिन यहां से जाते हैं तो इनके साथ होता है भरा पूरा परिवार। यह परिंदे मुख्यतः नदी के मछली, जलीय जीव एवं आसपास के खेतों में लगे अनाज का सेवन करते हैं। प्रवास के क्रम में ये अंडे भी देते हैं। उन अंडों से बच्चे निकलते हैं। तीन चार माह में उनके बच्चे उड़ना भी सीख जाते हैं।
सबसे सुरक्षित है वीटीआर
इन पंछियों पर शिकारियों की नजर रहती है। लेकिन वाल्मीकि टाइगर रिजर्व के नियम, कानून और सख्त रुख के कारण यहां शिकारी की दाल नहीं गलती है। ऐसे में यहां आने वाले परिंदे सबसे सुरक्षित जोन में रहते हैं।यही कारण है कि परिंदे अपने आप को वीटीआर के आसपास के जलाशय और गंडक नदी में सुरक्षित ठिकाना मानते हैं, और यहां प्रत्येक वर्ष भारी संख्या में प्रवासी पक्षी पहुंच रहे हैं।
गंडक नदी के जलाशय में आए प्रवासी पंछियों की जानकारी मिलने के बाद वन कर्मियों को उनकी गतिविधियों पर नजर रखने का आदेश दिया गया है, जिससे की उनकी सुरक्षा हो सके।
- राज कुमार पासवान, प्रभारी रेंजर, वाल्मीकिनगर यह भी पढ़ें - KK Pathak: बिहार के इस जिले में 30 हजार से ज्यादा बच्चों के स्कूल से नाम कटे, स्कॉलरशिप समेत ये लाभ भी होंगे बंद
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