Pitru Paksh 2024: पितरों को प्रसन्न करने के लिए जरूर करें ये काम, इन बातों का रखें विशेष ध्यान
पितृ पक्ष में हम अपने पूर्वजों को प्रसन्न करने के लिए पूजा-पाठ व तर्पण आदि करते हैं। पितृ पक्ष में ऋषि अगस्त्य को तर्पण करने का विशेष महत्व है। इस दिन सुबह स्नान कर पवित्र जलाशय में श्री अगस्त्य मुनि का तर्पण करें। इसके लिए शंख में जल पुष्प और सफेद चंदन डालकर गंगा का आवाहन करें। फिर दीप या धूप बत्ती जलाकर अग्नि का पूजन करें।
संवाद सूत्र, बगहा। पुराणों के अनुसार पितृ पक्ष के आश्विन कृष्ण प्रतिपदा शुरू होने से एक दिन पहले, यानी भाद्रपद मास की पूर्णिमा के दिन मध्याह्न में मुनिवर अगस्त्य के प्रति तर्पण किया जाना चाहिए। ऐसे में इस दिन सुबह स्नान कर पवित्र जलाशय (यह संभव न हो तो घर के पवित्र स्थान पर ही भींगे वस्त्र से) में श्री अगस्त्य मुनि का तर्पण करें।
इसके लिए शंख में या (यदि यह न मिले तो दोनों हाथों की अंजलि बनाकर जल, पुष्प से ध्यान कर घर पर या जलाशय किनारे (आसन लगा कर पूर्वाभिमुख बैठ तीन कुशाओं की पवितत्री दाएं हाथ में और दो कुशाओं की पवित्री बाएं हांथ में धारण कर लें।
इसके बाद सोना, चांदी, ताम्बा, पीतल या कास्य के वर्तन (पात्र) में जल लेकर गंगाजल, फूल व सफेद चंदन डाल कर गंगा का आवाहन कर त्रिकुशा से पवित्री करें। फिर दीप या धूप बत्ती जला के अग्नि का पूजन करें।
स्वयं की शिखा बंधन कर तिलक लगावें और विष्णु मंत्र व गायत्री जप करें। पुनः शंख में पान, सुपारी, भुआ वाला मक्का का बाल, फूल, जौ और दक्षिणा लेकर सव्य होकर ऋषि अगस्त्य तर्पण करें।
कैसे करें तर्पण
सर्वप्रथम जल पात्र में जल, फूल व गंगाजल डाल कर स्वयं को पवित्री करें तथा आचार्य द्वारा सुझाए गए मंत्र से जल लेकर पर्पण करें। तत्पश्चात मन ही मन समस्त देवताओं व पूर्वजों का आह्वान करें। इतना करने के बाद शंख, फल, फूल, अक्षत व जल लेकर संबंधित मंत्र से अर्घ्य दें।
आचार्य सुबोध कुमार मिश्र ने बताया कि उसके बाद काश का फूल (अभाव में उसकी कल्पना कर) जल से इस श्लोक के द्वारा अर्घ्य दें।
अर्घ्य देने के बाद पुनः देवताओं की प्रार्थना करें। इतना के बाद अगस्त्य की पत्नी लोपामुद्रा के प्रति जल से अर्घ्य दें। व अंत में श्रद्धापूर्वक प्रणाम करें।
पितृ पक्ष में श्राद्ध-तर्पण का महत्व
आचार्य ने बताया कि जो हमारे जन्मदाता हैं उनकी कृपा व आशीर्वाद से ही हमारा वंश चलता आया है और आगे भी चलता रहेगा। उन पितरों(पितृगणों) के उद्देश्य से की गई श्रद्धापूर्वक पूजा, दान आदि को ही ‘श्राद्ध’ कहा जाता है। फिर जो कर्म उन पितरों को तृप्त कर उन्हें तार दे उसे ‘तर्पण’ कहा जाता है।
सनातन धर्म-शास्त्रों में इसका बड़ा महत्व बताया गया है। कहीं-कहीं ऐसा भी उल्लेख मिलता है कि पितृगण देवताओं की अपेक्षा जल्दी प्रसन्न हो जाते हैं, इसलिए उनके श्राद्ध-तर्पण के बिना कोई भी शुभकार्य करना ही नहीं चाहिए।
वैसे तो साल भर में पितरों के प्रति किए जाने वाले इन कर्मों का विस्तार से वर्णन मिलता है, लेकिन सांसारिक कर्म में लगे सभी मनुष्यों के लिए इन सबका निर्वाह करना कठिन होने के कारण मनीषियों ने इस कर्म के लिए आश्विनमास के कृष्णपक्ष को अति उत्तम बताया है। जिसे पितृपक्ष कहा जाता है। कई जगह इसको 16 श्राद्ध भी कहा जाता है।
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