करोड़ों का होता यह सांप, भारत में पकड़ने की चीन दे रहा ‘सुपारी’
चीन में दोमुंहे सांप की खाल की मांग बढ़ने से इसकी तस्करी बढ़ गई है। चीनी तस्कर भारत-नेपाल सीमा पर सक्रिय शिकारियों को इन्हें जिंदा पकडऩे की सुपारी दे रहे हैं।
By Ravi RanjanEdited By: Updated: Fri, 21 Apr 2017 11:36 PM (IST)
पश्चिम चंपारण [जेएनएन]। चीन में रेड सैंड बोआ (दोमुंहा) सांप की खाल व हड्डियों से बने उत्पाद की मांग अचानक काफी बढ़ गई है। इस सांप का उपयोग एड्स व कैंसर जैसी बीमारियों तथा सेक्स पॉवर की दवाओं के निर्माण में होता है।
बिहार में इस सांप के तस्करों की सक्रियता बढ़ गई है। इस मौसम में अंतरराष्ट्रीय तस्करों ने वाल्मीकि व्याघ्र परियोजना के जंगल में रहने वाले सुनहरे रंग व सुस्त रफ्तार वाले इस सांप के शिकार की योजना बनाई है। चीनी तस्कर भारत-नेपाल सीमा पर सक्रिय शिकारियों को इन्हें जिंदा पकडऩे की सुपारी दे रहे हैं।वीटीआर में रेड सैंड बोआ (दोमुंहे की तरह दिखने वाले सांप) की जिंदगी खतरे में है। इस सांप को जिंदा पकडऩे वाले शिकारी इसे ऊंची कीमत पर नेपाल में बेचते हैं, जहां से चीन के तस्कर इंडोनेशिया ले जाते हैं। इसकी खाल से नशीली व मिर्गी की दवाइयां बनाई जाती हैं।
सांपों एवं अन्य जंगली जानवरों की सुरक्षा को लेकर वन विभाग के अधिकारियों ने कर्मियों को अलर्ट किया है। जंगल में असामाजिक तत्वों की आवाजाही पर निगरानी रखी जा रही है। सीमा पर एसएसबी के जवान भी अलर्ट हैं। इंडोनेशिया में मार दिया जाता है
शिकारी कम से कम ढाई सौ ग्राम के दोमुंहे सांप को पकड़कर नेपाल पहुंचाते हैं। वहां से चीनी तस्कर उसे इंडोनेशिया ले जाते, जहां विशेषज्ञों की देखरेख में सांप की हत्या कर दी जाती है। तदोपरांत उसकी खाल चीन के मार्केट में पहुंचाई जाती है। चीन के मार्केट में 250 ग्राम के बोआ की कीमत दो लाख है, जबकि 500 ग्राम के सात लाख। एक किलोग्राम की कीमत दस लाख से अधिक है।
शिकारी कम से कम ढाई सौ ग्राम के दोमुंहे सांप को पकड़कर नेपाल पहुंचाते हैं। वहां से चीनी तस्कर उसे इंडोनेशिया ले जाते, जहां विशेषज्ञों की देखरेख में सांप की हत्या कर दी जाती है। तदोपरांत उसकी खाल चीन के मार्केट में पहुंचाई जाती है। चीन के मार्केट में 250 ग्राम के बोआ की कीमत दो लाख है, जबकि 500 ग्राम के सात लाख। एक किलोग्राम की कीमत दस लाख से अधिक है।
खाल से बनाई जातीं कई दवाइयां
चीन, ताइवान, मलेशिया में बोआ का इस्तेमाल दवा बनाने के लिए किया जाता है। इससे नशा, ताकत एवं मिर्गी के लिए दवा बनाई जाती है।जहरीला नहीं रेड सैंड बोआ
पशु चिकित्सक डॉ. आरबी सिंह बताते हैं कि इस सांप को पकडऩा आसान है, क्योंकि ये जहरीले नहीं होते हैं। ये मोटे आकार के होते हैं। इस वजह से इसकी चाल सुस्त होती है। सर्दी से बचने के लिए ये चूहे के बिल में छुप जाते, गर्मी में निकलते ही शिकारी पकड़ लेते हैं।मुंह की तरह बोआ की पूंछ
सुनहरे रंग व सुस्त रफ्तार वाले बोआ की पूंछ भी मुंह की तरह दिखने की वजह से इसे दोमुंहा सांप कहा जाता है। दक्षिण के राज्यों में मान्यता है कि दोमुंहे सांप यदि घर के आसपास दिख गए तो धन की प्राप्ति होगी। बोआ की औसत उम्र 15-20 वर्ष होती है।यह भी पढ़ें: हवस के दरिंदों ने नाबालिग से किया गैंगरेप, तेजाब से नहलाकर कुंए में फेंकागर्मी के मौसम में वन एवं वन्य प्राणियों की सुरक्षा को लेकर कर्मियों को अलर्ट किया गया है। रात में भी गश्ती दल सक्रिय है। जंगल में आनेवाले संदिग्धों पर विशेष नजर रखी जा रही है। -आर.बी. सिंह, वन संरक्षक, वीटीआर, वाल्मीकिनगर। यह भी पढ़ें: खाड़ी देशों में 15 महीने में दफन हो गए यहां के 37 युवक, जानिए
आपके शहर की हर बड़ी खबर, अब आपके फोन पर। डाउनलोड करें लोकल न्यूज़ का सबसे भरोसेमंद साथी- जागरण लोकल ऐप।चीन, ताइवान, मलेशिया में बोआ का इस्तेमाल दवा बनाने के लिए किया जाता है। इससे नशा, ताकत एवं मिर्गी के लिए दवा बनाई जाती है।जहरीला नहीं रेड सैंड बोआ
पशु चिकित्सक डॉ. आरबी सिंह बताते हैं कि इस सांप को पकडऩा आसान है, क्योंकि ये जहरीले नहीं होते हैं। ये मोटे आकार के होते हैं। इस वजह से इसकी चाल सुस्त होती है। सर्दी से बचने के लिए ये चूहे के बिल में छुप जाते, गर्मी में निकलते ही शिकारी पकड़ लेते हैं।मुंह की तरह बोआ की पूंछ
सुनहरे रंग व सुस्त रफ्तार वाले बोआ की पूंछ भी मुंह की तरह दिखने की वजह से इसे दोमुंहा सांप कहा जाता है। दक्षिण के राज्यों में मान्यता है कि दोमुंहे सांप यदि घर के आसपास दिख गए तो धन की प्राप्ति होगी। बोआ की औसत उम्र 15-20 वर्ष होती है।यह भी पढ़ें: हवस के दरिंदों ने नाबालिग से किया गैंगरेप, तेजाब से नहलाकर कुंए में फेंकागर्मी के मौसम में वन एवं वन्य प्राणियों की सुरक्षा को लेकर कर्मियों को अलर्ट किया गया है। रात में भी गश्ती दल सक्रिय है। जंगल में आनेवाले संदिग्धों पर विशेष नजर रखी जा रही है। -आर.बी. सिंह, वन संरक्षक, वीटीआर, वाल्मीकिनगर। यह भी पढ़ें: खाड़ी देशों में 15 महीने में दफन हो गए यहां के 37 युवक, जानिए