Bihar: पश्चिम चंपारण के भिखना ठोरी गांव में घर-घर सौर ऊर्जा उत्पादन, कार्बन मुक्त बनाने की दिशा में बढ़े कदम
Bhikhna Thori Village West Champaran भारत-नेपाल सीमा और वाल्मीकि टाइगर रिजर्व (वीटीआर) क्षेत्र में बसे भिखना ठोरी गांव तक वन विभाग की आपत्ति के कारण आज तक बिजली नहीं पहुंच सकी है। राज्य सरकार के सहयोग से वर्ष 2017 में सोलर पैनल लगाया गया था।
गौनाहा (पश्चिम चंपारण), विवेक कुमार: मुश्किलों से पार पाकर किस तरह जिंदगी आसान बनाई जा सकती है, इसे बिहार के पश्चिम चंपारण जिले के भिखना ठोरी के ग्रामीणों से सीख सकते हैं।
इस गांव में आज तक बिजली नहीं पहुंच सकी है, लेकिन इसका हल यहां के ग्रामीणों में सौर ऊर्जा में खोज निकाला है। इससे यहां के सभी घर रोशन हैं। इस तरह वे केंद्र सरकार के कार्बन मुक्त देश बनाने की दिशा में भी अपनी भूमिका निभा रहे हैं।
वन विभाग की आपत्ति के कारण नहीं पहुंच रही बिजली
भारत-नेपाल सीमा और वाल्मीकि टाइगर रिजर्व (वीटीआर) क्षेत्र में बसे भिखना ठोरी गांव तक वन विभाग की आपत्ति के कारण आज तक बिजली नहीं पहुंच सकी है।
राज्य सरकार के सहयोग से वर्ष 2017 में सोलर पैनल लगाया गया था। बैट्री, बल्ब और पंखे का वितरण किया गया। कुछ साल बाद बैट्री और कई लोगों का सौर पैनल खराब हुआ तो ग्रामीण निजी राशि से इसकी खरीदारी की।
आज वे सौर ऊर्जा का लाभ ले रहे हैं। 225 घरों वाले गांव के लोगों को न लो वोल्टेज की चिंता रहती है, न ही इस भीषण गर्मी में बिजली जाने का डर। पेयजल के लिए पीएचईडी (लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग) ने सोलर पंप लगाया है। गांव के अधिकतर लोग सीमावर्ती बाजार में दुकान चलाते हैं। कुछ खेती तो वहीं कुछ मजदूरी करते हैं।
पहले मोबाइल चार्ज करने जाना पड़ता था दूसरे गांव
ग्रामीण कृष्ण मोहन ठाकुर, अफरोज आलम और जितेंद्र सिंह का कहना है कि इस भीषण गर्मी में सोलर आधारित बिजली से बड़ी राहत है। बिजली का बिल देने का भी झंझट नहीं है। साथ ही इससे पर्यावरण को भी कोई नुकसान नहीं है।
अवधेश कुमार, नागेंद्र कुमार, मोती पासवान, दयानंद सहनी व मुन्ना खान ने बताया कि छह वर्ष पहले तक रात में पूरा गांव अंधेरे में डूबा रहता था। ढिबरी के सहारे काम चलाना पड़ता था। मोबाइल चार्ज करने के लिए पास के गांव में जाना पड़ता था। अब ऐसा नहीं है।
अगर सरकार सब्सिडी पर सोलर कुकर उपलब्ध कराए तो भोजन बनाने में लकड़ी के चूल्हे या गैस का सहारा नहीं लेना पड़ेगा। गांव पूरी तरह कार्बन मुक्त हो सकता है।
तीन तरफ जंगल से घिरा है गांव
भिखना ठोरी गांव एक तरफ पंडई नदी तो बाकी तीन तरफ वीटीआर के जंगल से घिरा है। यहां के ग्रामीणों की जिंदगी काफी कठिन है। इलाल के लिए भी उन्हें करीब 14 किमी दूर गौनाहा रेफरल अस्पताल जाना पड़ता है। वन क्षेत्र में होने के चलत इसे राजस्व गांव का दर्जा नहीं मिला है।
इस कारण बहुत सी सरकारी योजनाओं का लाभ भी यहां के ग्रामीणों को नहीं मिलता। इसके साथ ही यहां के लोगों को विस्थापित होने का डर भी बना रहता है। सोलर आधारित पंप से पानी तो निकल रहा है, लेकिन वह जरूरत से काफी कम है। ऐसे में पीएचईडी की ओर से टैंकर से 12 हजार लीटर पानी प्रतिदिन पहुंचाया जा रहा है।
पर्यावरण सरंक्षण की दिशा में भिखना ठोरी में ग्रामीणों ने अच्छा काम किया है। सरकार गैर परंपरागत ऊर्जा पर जोर दे रही है। केंद्र और राज्य सरकार दोनों इस दिशा में प्रयास कर रही हैं। इस व्यवस्था को और जगहों पर भी लागू करने का प्रयास किया जाएगा। - अजय प्रकाश राय, प्रखंड विकास पदाधिकारी, गौनाहा
सौर ऊर्जा का उपयोग बढ़ाने के लिए गांव स्तर पर जागरूकता फैलाई जा रही है। अभी पंचायतों में सोलर स्ट्रीट लाइट लगाने का कार्य चल रहा है। जंगल के समीप के गांवों को सोलर एनर्जी से आच्छादित करने का प्राविधान है। भिखना ठोरी के ग्रामीणों का प्रयास अच्छा है। - मनीष कुमार, जिला पंचायती राज पदाधिकारी, बेतिया