बगहा। वाल्मीकिनगर (प.च.), संसू. : पड़ोसी देश नेपाल के नवलपरासी जिला स्थित त्रिवेणी में ब्रह्मांड स्वर
By JagranEdited By: Updated: Thu, 17 Jan 2019 11:41 PM (IST)
बगहा। वाल्मीकिनगर (प.च.), संसू. : पड़ोसी देश नेपाल के नवलपरासी जिला स्थित त्रिवेणी में ब्रह्मांड स्वरूप अलौकिक मंदिर बनकर तैयार हो चुका है। रंगरोगन का कार्य अंतिम चरण में है। इस मंदिर में 500 से अधिक देवी-देवताओं की प्रतिमा स्थापित है। भव्यता और प्रतिमाओं के आधार पर यह विश्व के बड़े मंदिरों में से एक माना जा रहा है। वैदिक मंत्रोच्चार के बीच चैत्र रामनवमी के उपलक्ष्य में आगामी 3 से 9 मार्च के बीच श्री गजेन्द्र मोक्ष नारायण भगवत प्राणप्रतिष्ठा महोत्सव एवं अष्टोतरशत श्री विष्णु पुराण ज्ञान महायज्ञ का आयाजन किया जाएगा। इसके साथ ही मंदिर के द्वार श्रद्धालुओं के लिए खोल दिए जाएंगे। विश्व के ¨हदू धर्मावलंबियों के लिए यह मंदिर आकर्षण का केंद्र होगा। बता दें कि प्रयागराज के अलावा त्रिवेणी संगम सिर्फ यहीं अवस्थित है। पवित्र नारायणी (गंडक) नदी में भगवान विष्णु के स्वरूप जीवित शालीग्राम पत्थर पाए जाते हैं। त्रिवेणी संगम पर अवस्थित गजेंद्र मोक्षधाम मंदिर के निर्माण पर करीब 25 करोड़ रुपये का खर्च आया है। त्रिवेणी संगम श्रेत्र में शैव और वैष्णव परंपरा का संगम है।
मंदिर की आधारशिला वर्ष 2012 में रामनवमी के दिन स्वामी श्री कमलनयनाचार्य (मुक्ति नाथ बाबा) ने रखी थी।
----------------------------------------------------------------- जनकपुर धाम से अयोध्या नगरी तक के होंगे दर्शन :-
उत्तराधिकारी स्वामी श्रीकृष्ण प्रपन्नाचार्य (करपात्री) ने बताया कि नेपाली पैगोडा शैली एवं दैविक संपदापन्न दक्षिणात्य शैली एवं वास्तु शास्त्रीय विधान के अनुसार पंचमहाभूतादि पंज्चिकरण पद्धति से निर्मित ब्रह्माण्ड का प्रतीकात्मक स्वरूप दर्शाते हुए 5 मंजिल मे निर्मित यह मंदिर नेपाल की धार्मिक संपदा की गरिमा को दर्शाता है। मंदिर के बाहर भगवान का रथ खींचते हुए दो हाथी दिखते हैं। मंदिर के अंदर श्री तिरुपति बालाजी में विराजमान श्रीव्यंकटेश भगवान, श्री राधाकृष्ण जी के विभिन्न झांकियां, अष्टलक्ष्मी, वाल्मीकि आश्रम, जनकपुर धाम, अयोध्या में श्री राम दरबार, मत्स्य, कूर्म, वराह, नर¨सह आदि दस अवतारों का दर्शन, सुरक्षा मुद्रा में हनुमान जी के साथ गरूड़ जी, वैदिक शास्त्रीय संगीत श्रवण कराते हुए अपने मित्र तम्बुरूजी के साथ देवर्षि नारद, श्री मुक्ति नाथ श्रेत्र में दीर्घकाल तक तपस्या कर भगवान का साक्षात्कार करने वाले महर्षि शालंकायन, गण्डर्षि , विष्णुचित शूरी, परकाल शूरी एवं श्रीवैष्णव परंपरा के आल्वार आचार्य के साथ भगवान श्री गजेन्द्र मोक्ष नारायण का भी दर्शन होता है । -------------------------------------------------------------------
भगवान विष्णु ने अवतरित होगी बचाए थे गजेंद्र के प्राण :- पौराणिक काल में गजेंद्र (हाथी) और ग्राह के बीच नारायणी गंडक नदी तट पर लंबा युद्ध चला था। जिसका वर्णन श्रीमद भागवत गीता में भी मिलता है। नदी तट पर पत्थरों पर हाथी के पांव के निशान आज भी स्पष्ट रूप से दिखाई देते हैं। कहा जाता है कि भगवान विष्णु का प्रिय भक्त राजा इन्द्रद्युमन एवं गंधर्व प्रमुख हूहू को ऋषि अगस्त मुनि एवं देवाल मुनि के श्राप से गज एवं ग्राह योनि में जन्म लेना पड़ा। गजेंद्र पानी पीने नारायणी नदी तट पर पहुंचे तो ग्राह से सामना हो गया। फिर लंबी लड़ाई चली। दोनों गंगा गंडक के संगम पर हरिहर क्षेत्र में के पास पहुंचकर निर्णायक युद्ध के करीब पहुंचे। जहां जीवन संकट भांपकर गजेंद्र ने भगवान विष्णु को पुकारा। माता लक्ष्मी के आग्रह पर भगवान मृत्युलोक में आए और सुदर्शन चक्र से ग्राह का संहार कर भक्त की रक्षा की। इसके साथ गजेंद्र को भी मोक्ष की प्राप्त हुई।
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