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बेमौसम बारिश से लहलहा उठीं गेहूं और गन्ने की फसलें, पर इस खेती को हो गया बड़ा नुकसान; ऐसे करें बचाव

Agricultural News बिहार के कई जिलों में बुधवार को झमाझम बारिश हुई। सुबह से ही आसमान में मेघा छाए रहे। रुक-रुक कर दिन भर बारिश होती रही। कभी बूंदाबांदी तो कभी तेज वर्षा के कारण जनजीवन अस्त व्यस्त हो गया। बेमौसम बरसात की वजह से लोग घरों में दुबके रहे। वर्षा का खेती पर मिला जुला असर देखने को मिला।

By Manoj Mishra Edited By: Mohit Tripathi Updated: Wed, 20 Mar 2024 03:33 PM (IST)
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बेमौसम बारिश से लहलहा उठीं गेहूं और गन्ने की फसलें। (फाइल फोटो)
जागरण संवाददाता, बेतिया। बिहार के विभिन्न जिलों में बुधवार को झमाझम बारिश हुई। किसानों का कहना है कि वर्षा से गन्ना के फसल को फायदा होगा। जिन खेतों में गन्ना की रोपाई हुई है, वे तेजी से निकलेंगे।

हालांकि बेमौसम बरसात ने गेहूं, तिलहन और दलहन के फसल को नुकसान पहुंचा है। वर्षा से खेसारी, मसूरी के फूल झड़ गए हैं, जिसका असर पैदावार पर पड़ेगा।

कृषि अनुसंधान केंद्र माधोपुर के कृषि वैज्ञानिक डॉ. धीरू कुमार तिवारी ने बताया कि वर्षा से गन्ना के फसल को फायदा होगा। सरसों, मसूर इत्यादि को नुकसान होने की संभावना है। ज्यादा वर्षा होने और इसके साथ तेज हवा बहने पर गेंहू के फसल को भी नुकसान हो सकता है।

पाउडरी मिल्डू रोग से आम के पौधे हो रहे प्रभावित

बारिश एवं तेज हवा के प्रभाव से नए मंजर के फूलों के झड़ने से आम के फसल में कमी हो सकती है। अभी आम के पौधों पर मैंगो पाउडरी मिल्डू की रोग का प्रकोप देखा जा रहा है। मिल्डू रोग से बचाव को लेकर कृषि विज्ञानी ने किसानों को तुरंत प्रभाव से उपचार करने की सलाह दी है।

वरीय विज्ञानी एवं कृषि विज्ञान केंद्र के अध्यक्ष डॉ. दिव्यांशु शेखर एवं उद्यान विशेषज्ञ डा. प्रदीप कुमार विश्वकर्मा ने आम उत्पादक किसानों को समय से इसके प्रबंधन की सलाह देते हुए किसानों से कहा है कि अभी समय से इसके प्रबंधन कर लें।

पाउडरी मिल्डू रोग से संक्रमित मंजर (फूल, पुष्प डंठल और युवा फल) के ऊपर सफेद पाउडर जैसा लग जाता है। संक्रमित फूल और फल अंततः भूरे और सूखे हो जाते हैं। पत्तियां मुड़कर, विकृत, भूरे, परिगलित घाव या बड़े, अनियमित आकार के धब्बे बन सकते हैं।

कुछ पौधों पर कवक का सफेद अवशेष नीचे की ओर दिखाई देता है। यदि बीमारी के लक्षण दिखे और आम के फल जब सरसों के दाने के बराबर हो जाएं तो इसके नियंत्रण के लिए सल्फर या सल्फर धूल (सल्फर कवकनाशी) का सात 14 दिनों के अंतराल पर दो से तीन बार छिड़काव करना चाहिए।

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