Rs 2000 Note: नोटबंदी से कितना अलग है दो हजार की करेंसी बंद करने का फैसला, ये पांच कारण बनाते हैं इसे खास
RBI के फैसले के बाद कुछ लोग इसकी तुलना 2016 में हुई नोटबंदी से कर रहे हैं। हम आपको बताते हैं कि आपको आरबीआई के कल के फैसले की नोटबंदी से तुलना क्यों नहीं करनी चाहिए और इनके क्या कारण हैं।
नई दिल्ली, बिजनेस डेस्क: भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने 2000 रुपये के नोट वापस लेने की घोषणा की है। इसका मतलब ये हुआ कि अब इस नोट की छपाई भी नहीं होगी और न ही कोई बैंक आपको यह नोट देगा। लेकिन इसका मतलब यह बिल्कुल नहीं है कि ये नोट बंद हो जाएंगे या फिर इनकी वैधता समाप्त हो जाएगी।
आरबीआई ने देश की जनता को बैंक शाखाओं में या फिर नामित आरबीआई कार्यालयों में 2,000 रुपये के नोटों को बदलने या जमा करने के लिए चार महीने यानी 30 सितंबर तक का वक्त दिया है।
डिजिटल मीडिया के इस जमाने में आरबीआई की घोषणा के बाद, सोशल मीडिया पर इसको लेकर कई तरह की अटकलें, फर्जी खबरें और जानकारियां सामने आ रही हैं। कुछ लोग तो आरबीआई की इस घोषणा को 2016 के विमुद्रीकरण अभियान से जोड़कर देख रहे हैं। लेकिन ये आज हम आपको बताते हैं कि आपको आरबीआई के कल के इस फैसले की तुलना नोटबंदी से क्यों नहीं करनी चाहिए।
पहला कारण
आपके लिए यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि 2016 में जो हुआ था वो नोटबंदी था, जिसमें पुराने 500 और 1000 रुपए के नोट अवैध घोषित कर दिए गए, लेकिन कल जो आरबीआई का फैसला आया है उसमें 2000 के नोट के सर्कुलेशन को बंद करने का फैसला लिया गया है, मतलब 2000 रुपये के नोट अभी चलेंगे और आप इससे कोई भी सामान खरीद सकते हैं।
दूसरा कारण
आरबीआई के इस फैसले से भारत के किसी भी नागरिक को परेशान या घबराने की जरूरत नहीं है। बैंक शाखाओं या अधिकृत आरबीआई केंद्रों में इन नोटों को जमा करने या बदलने के लिए आरबीआई द्वारा पर्याप्त समय और सुविधा जनता को दी गई है।
आप 30 सितंबर तक एक बार में 20,000 मूल्य के 2,000 रुपये तक के नोट बदल सकते हैं। साथ ही ग्राहकों के खातों में 2,000 रुपये के नोट जमा करने पर भी कोई पाबंदी नहीं है।
तीसरा कारण
आपको यह जानकर थोड़ी संतुष्टि और राहत जरूर मिलेगी कि इससे पहले भी आरबीआई ने नोटों को चलन से वापस लिया है। इस तरह की कवायद 2013-14 में भी आरबीआई ने किया था, जब मार्च 2014 के बाद साल 2005 से पहले जारी किए गए सभी बैंक नोटों को पूरी तरह से संचलन से वापस ले लिया गया था।
इसलिए आरबीआई के इस फैसले की तुलना केवल 2014 में हुई घटनाओं से की जा सकती है, न कि 2016 में नोटबंदी से।
चौथा कारण
पिछली बार लोगों के पास 500 रुपये और 1,000 रुपये के नोट काफी ज्यादा मात्रा में थे, लेकिन इस बार ऐसा नहीं है, क्योंकि आरबीआई ने वित्त वर्ष 2018-19 से ही 2000 रुपये के नोट छापने बंद कर दिए थे।
इस बार लोगों के पास काफी कम मात्रा में 2000 रुपये के नोट मौजूद होंगे। इसलिए, नोटबंदी के दौरान जिस तरह की दहशत दिखाई दे रही थी, इस बार उसकी संभावना नहीं है।
पांचवां कारण
2000 रुपये के नोट की वापसी की किसी को उम्मीद नहीं थी। लोगों के बीच डर का माहौल इसलिए भी है क्योंकि उन्हें 2016 की लंबी-लंबी लाइनें याद आ रही हैं। लेकिन आरबीआई के आंकड़ों के अनुसार, मार्च 2023 तक 2000 रुपये का नोट सिर्फ 10.8 प्रतिशत रह गए हैं।
आपको बता दें कि अगर आरबीआई ने इस नोट को वापस लेने का फैसला नहीं भी लिया होता तो भी कुछ सालों में यह नोट बाजार में दिखना बंद हो जात, क्योंकि आरबीआई ने इस 2019 के बाद से ही छापना बंद कर दिया था। इसलिए, आपको इस फैसले से घबराना नहीं चाहिए।