1960 के दशक में खराब मानसून और सूखे की समस्या ने कृषि उत्पादन को काफी प्रभावित किया। लेकिन, 1964-65 में मानसून काफी अच्छा रहा। फिर भी भारत को 70 लाख टन खाद्यान्न की विदेशी मदद लेनी पड़ी। ऐसे में देश के नीति-निर्माताओं को लगा कि खाद्यान्न के मामले में आत्मनिर्भर होने के लिए कारगर कदम उठाने की जरूरत होती है।
भारत ने खाद्यान्न आत्मनिर्भरता हासिल करने के लिए कई कदम उठाए। इसमें सबसे उल्लेखनीय है, हरित क्रांति। वनस्पति वैज्ञानिक एस स्वामीनाथन ने साल 1960 के दशक में हरित क्रांति (
Green Revolution) की शुरुआत की। इसमें पैदावार बढ़ाने वाले बीज, उर्वरक और रसायन का इस्तेमाल किया गया। इसका व्यापक असर भी देखने को मिला और अगले तीन साल में यानी 1971 तक भारत खाद्यान्न के मामले में आत्मनिर्भर हो गया।
कैसे शुरू हुई थी हरित क्रांति (When Green Revolution started in India)
हरित क्रांति का मकसद था, कृषि पैदावार को बढ़ाना। इससे खाद्यान्न की जरूरत तो पूरी होती ही, किसानों की आय भी बढ़ती। हरित क्रांति में बीजों की नई किस्मों से कृषि पैदावार बढ़ाने पर जोर दिया गया। शुरुआत की गई खरीफ फसल से। इसमें वैज्ञानिकों को उल्लेखनीय सफलता मिली। और इस प्रयोग को पूरे देश में फैलाया गया और इसने एक क्रांति का रूप ले लिया।
हरित क्रांति की शुरुआत 1966-67 में 1.89 मिलियन हेक्टेयर के एक छोटे से क्षेत्र से की गई थी। वहीं, 1998-99 में यह 78.4 मिलियन हेक्टेयर तक पहुंच गया था। उन्नत बीजों और तकनीक ने कृषि उत्पादकता को काफी ज्यादा बढ़ा दिया। इससे कृषि उत्पादकता तो बढ़ी ही, किसानों की आय में भी उल्लेखनीय इजाफा हुआ।
आज, एक निवेश विशेषज्ञ के रूप में, यह समझना जरूरी है कि हरित क्रांति ने भारत की अर्थव्यवस्था और खाद्यान्न सुरक्षा को कैसे मजबूती दी। यह एक ऐसा उदाहरण है जिसमें नई तकनीकों और नीतियों के उचित संयोजन से एक बड़े पैमाने पर बदलाव संभव हुआ। इसी तरह, वर्तमान समय में भी, अगर हम कृषि और अन्य क्षेत्रों में उन्नत तकनीकों और नीतियों को अपनाएं, तो हम नई ऊंचाइयों को छू सकते हैं। भारत की खाद्यान्न में आत्मनिर्भरता हमें सिखाती है कि सही निवेश, सही समय पर, बड़े बदलाव ला सकता है।
सिद्धार्थ मौर्य, फाउंडर एंड मैनेजिंग डायरेक्टर, विभावंगल अनुकूलकारा प्राइवेट लिमिटेड
क्या शुरू हो गई दूसरी हरित क्रांति?
1960 के दशक वाली हरित क्रांति का अधिक जोर उन्नत बीजों और उर्वरकों पर था। लेकिन, अब कृषि में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) का भी रोल है। कृषि क्षेत्र की चुनौतियों को सुलझाने के लिए एआई के साथ बिग डेटा एनालिटिक्स जैसी अत्याधुनिक तकनीक का भी इस्तेमाल हो रहा है। इसके सकारात्मक नतीजे भी दिख रहे हैं।
सैटेलाइट, ड्रोन, सेंसर और IoT जैसे तकनीकों से मिट्टी की सेहत, मौसम के पैटर्न, फसल की वृद्धि और कीटों के संक्रमण आदि की सही समय पर जानकारी मिल जाती है। इससे किसान सिंचाई,फसल सुरक्षा जैसे फैसलों को बेहतर तरीके से ले पाते हैं।
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कृषि क्षेत्र में AI के फायदे
एआई ने कृषि क्षेत्र में जोखिम कम करने, पैदावार बढ़ाने और स्थिरता लाने में मदद की है। एआई फसल किस्मों और पर्यावरणीय परिस्थितियों के अनुसार बुआई की जानकारी भी देता है। कई AI-संचालित चैटबॉट और मोबाइल ऐप मौजूद हैं, जिनसे किसानों को फसल से जुड़ी अहम जानकारियां मिलती हैं। किसान अपने सवालों का जवाब भी यहां आसानी से पा सकते हैं।
कृषि क्षेत्र में एआई और डेटा- एनलिसिस को बढ़ावा देने की लगातार कोशिश भी हो रही है। सरकारी एजेंसियां, रिसर्च संस्थान और कृषक समुदाय समेत कई हितधारक इस दिशा में पहल कर रहे हैं। सरकार भी कृषि क्षेत्र में जिस तरह से एआई जैसी नई तकनीकों को बढ़ावा दे रही है, उसे एक तरह से दूसरी हरित क्रांति भी कहा जा सकता है। इसकी सफलता तय करेगी कि बढ़ती आबादी के साथ खाद्यान्न के मामले में हमारा भविष्य कैसा होगा।
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