किराया नहीं घटाएंगी एयरलाइंस
विमान ईंधन की कीमतों में भारी कटौती के बावजूद भारतीय एयरलाइनें किराये घटाने को तैयार नहीं हैं। उनका कहना है कि एटीएफ की कीमतों में कमी के बावजूद भारत में अभी भी हवाई किराये लागत के नजरिये से तो कम हैं ही, ये विदेश के मुकाबले भी कम हैं।
By Edited By: Updated: Sun, 04 Jan 2015 02:54 AM (IST)
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। विमान ईंधन की कीमतों में भारी कटौती के बावजूद भारतीय एयरलाइनें किराये घटाने को तैयार नहीं हैं। उनका कहना है कि एटीएफ की कीमतों में कमी के बावजूद भारत में अभी भी हवाई किराये लागत के नजरिये से तो कम हैं ही, ये विदेश के मुकाबले भी कम हैं। लिहाजा वे इस मौके का उपयोग किराये घटाने के बजाय अपने घाटे कम करने व ग्राहकों को बेहतर सेवा देने में करना पसंद करेंगी।
सरकार की पहल पर तेल कंपनियों ने कुछ दिनों पहले विमान ईंधन (एटीएफ) की कीमतों में एकमुश्त 12.5 फीसद कमी का एलान किया है। इसके साथ जून, 2014 से लेकर अब तक एटीएफ की कीमतों में 26 फीसद की कटौती हो चुकी है। मगर खराब माली हालत का हवाला देकर एयरलाइनें किराया घटाने से बच रही हैं। एक एयरलाइन के प्रवक्ता ने नाम न छापने की शर्त पर कहा कि स्पाइसजेट की हालत देखने के बावजूद किराया घटाने की बात करना समझ से परे है। स्पाइसजेट ही नहीं, गो एयर व जेट एयरवेज भी वित्तीय दबाव का सामना कर रही हैं। सरकारी एयरलाइन एयर इंडिया भी पैकेज के सहारे चल रही है। केवल इंडिगो की हालत थोड़ा-बहुत बेहतर है, परंतु बेड़े के विस्तार से जुड़ी देनदारियों के दबाव के कारण उसके लिए भी किराया घटाना आसान नहीं होगा।
किराया न घटाने के पीछे मांग-आपूर्ति के समीकरण भी जिम्मेदार हैं। अर्थव्यवस्था की स्थिति सुधरने के साथ देश में विमान यात्रा करने वालों की संख्या बढ़ती जा रही है। साथ ही, विदेशी यात्रियों की आमद में भी इजाफा हो रहा है। भारत में ट्रेन व बस सेवाएं अभी इतनी तीव्र नहीं हुई हैं कि उन्हें विमान यात्रा के विकल्प के रूप में आजमाया जा सके। फिर ट्रेनों में लेटलतीफी, आरक्षण, सुरक्षा और संरक्षा के जोखिम भी हैं। लिहाजा विमान यात्रा की मांग काफी ज्यादा है। इसके मुकाबले विमान सीटों की संख्या नहीं बढ़ी है। मांग के मुकाबले आपूर्ति का यह अंतर भी एयरलाइनों को किराये के मामले में टस से मस न होने के लिए प्रेरित कर रहा है। इस हालात में केवल तभी किराये कम हो सकते हैं, जब एयरलाइनों पर किसी तरह का नियामक हस्तक्षेप हो। फिलहाल यह विषय न तो विमानन नियामक डीजीसीए के और न ही प्रतिस्पद्र्धा आयोग के एजेंडे में है। ऐसे में विमान यात्रा करने वालों के आगे मन मसोस कर रह जाने के अलावा कोई चारा नहीं है।
एक एयरलाइन अफसर के अनुसार, एटीएफ की कीमत अब भी अंतरराष्ट्रीय स्तर से अधिक है। एयरलाइन उद्योग में गलाकाट प्रतिस्पद्र्धा के कारण प्रति किलोमीटर कमाई मात्र सात रुपये है, जो सड़क व रेल से भी कम है। ज्यादातर एयरलाइनों ने वित्तीय संस्थाओं से इतने कर्ज ले रखे हैं कि उनका ब्याज अदा करना ही मुश्किल है। ऐसे में किराया घटाने का प्रश्न ही कहां पैदा होता है। पढ़ेंः स्पाइसजेट ने सरकार को सौंपी पुनरुद्वार योजना हवाई यात्रा करने वालों के लिए राहत भरी खबर, छूट