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गारमेंट एक्सपोर्ट में बांग्लादेश और वियतनाम से पिछड़ रहे भारतीय निर्यातक? GTRI ने जताई चिंता

जीटीआरआई का कहना है कि बांग्लादेश और वियतनाम के विपरीत भारतीय निर्यातकों को रोजाना संघर्ष करना पड़ता है। कपड़ों पर उच्च आयात शुल्क डीजीएफटी और सीमा शुल्क की जटिल प्रक्रियाओं की वजह से निर्यातकों को हर इंच आयातित कपड़े के लिए हिसाब लगाना पड़ता है और संघर्ष करना पड़ता है। बांग्लादेश और वियतनाम में निर्यातकों को आसानी से गुणवत्ता वाले आयातित कपड़े मिल जाते हैं।

By Jagran News Edited By: Suneel Kumar Updated: Sun, 21 Jul 2024 05:28 PM (IST)
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प्रमुख समस्या गुणवत्ता वाला कच्चा माल, खासतौर पर सिंथेटिक कपड़े हासिल करना है।
पीटीआई, नई दिल्ली। विदेश व्यापार महानिदेशालय (डीजीएफटी) और सीमा शुल्क की जटिल प्रक्रियाओं, आयात अंकुश और घरेलू निहित स्वार्थ जैसे मुद्दों के कारण गारमेंट निर्यात की वृद्धि प्रभावित हो रही है। आर्थिक थिंक टैंक ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनिशिएटिव (जीटीआरआई) ने यह बात कही है। जीटीआरआई का कहना है कि निर्यातकों की प्रमुख समस्या गुणवत्ता वाला कच्चा माल, खासतौर पर सिंथेटिक कपड़े हासिल करना है।

भारतीय निर्यातकों का कड़ा संघर्ष

जीटीआरआई के संस्थापक अजय श्रीवास्तव ने कहा कि बांग्लादेश और वियतनाम के विपरीत भारतीय निर्यातकों को रोजाना संघर्ष करना पड़ता है। कपड़ों पर उच्च आयात शुल्क, डीजीएफटी और सीमा शुल्क की जटिल प्रक्रियाओं की वजह से निर्यातकों को हर इंच आयातित कपड़े के लिए हिसाब लगाना पड़ता है और संघर्ष करना पड़ता है। बांग्लादेश और वियतनाम में निर्यातकों को आसानी से गुणवत्ता वाले आयातित कपड़े मिल जाते हैं।

ऊंची कीमतों पर खरीद के लिए मजबूर

श्रीवास्तव ने कहा कि पालिस्टर और विस्कोस स्टेपल फाइबर जैसे कच्चे माल पर अनिवार्य गुणवत्ता मानदंड लागू करने से आयात जटिल हो रहा है। इसका कारण यह है कि भारतीय मानक ब्यूरो (बीआईएस) धीमी गति से विदेशी आपूर्तिकर्ताओं को पंजीकृत करता है। यह देरी निर्यातकों को घरेलू बाजार में एकाधिकार रखने वालों से ऊंची कीमतों पर खरीद के लिए मजबूर करती है।

जीटीआरआई की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि डीजीएफटी और सीमा शुल्क की प्रक्रियाएं पुरानी हैं। यह जटिल प्रक्रिया निर्यातकों को हतोत्साहित करती है। इसलिए इसमें व्यापक बदलाव की तत्काल जरूरत है। जीटीआरआई का मानना है कि कपड़ा क्षेत्र के लिए उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन (पीएलआई) योजना में भी बदलाव लाने की जरूरत है।

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