छोटे IPO में बहुत बड़ी चेतावनी के संकेत, निवेशकों के लिए सतर्कता बरतना जरूरी
किराये पर चलने वाले दो मोटरसाइकिल शोरूम और आठ कर्मचारियों वाली एक छोटी सी कंपनी 11 करोड़ रुपये का आईपीओ लाती है और निवेशक उसे 4000 करोड़ रुपये से लबालब भर देते हैं। 90 के दशक में एक फर्नीचर की दुकान का आईपीओ आया। जिसे निवेशकों ने हाथों-हाथ लिया था। लेकिन इसके नतीजे निवेशकों की उम्मीद के मुताबिक नहीं रहे।
धीरेंद्र कुमार, नई दिल्ली। पिछले कुछ समय से छोटी कंपनियों या एसएमई के IPO को लेकर जबरदस्त जोश दिख रहा है। इस साल एसएमई के नए इश्यू पर लगभग 5,900 करोड़ रुपये की छप्पर फाड़ बारिश हुई है। हालांकि, आम निवेशकों ने इस ट्रेंड को पिछले एक-दो हफ्तो के दौरान ही नोटिस किया। हमारे इस दौर के स्वभाव के मुताबिक, इसे इतनी तवज्जो इसलिए मिली क्योंकि एक आईपीओ की स्टोरी वायरल हो गई।
किराये पर चलने वाले दो मोटरसाइकिल शोरूम और आठ कर्मचारियों वाली एक छोटी सी कंपनी 11 करोड़ रुपये का आईपीओ लाती है और निवेशक उसे 4,000 करोड़ रुपये से लबालब भर देते हैं। जैसा कि हर एसएमई आईपीओ के अतिरेक में होता है। इस बार सामाजिक व्यंग्यकार और हास्य अभिनेता, स्वर्गीय जसपाल भट्टी का एक क्लासिक वीडियो खोज निकाला गया। दिलचस्प ये है कि आईपीओ का ऐसा अतिरेक और उन्माद कोई नई बात नहीं है। मैंने करीब तीन दशक तक बाजार को हर रोज देखा है। इस अर्से में ये पांचवां या छठा एसएमई आईपीओ उन्माद है जो मेरे सामने घटित हो रहा है।
हर बार इस तरह की अजीब-ओ-गरीब मिसालें देखी गई हैं। 90 के दशक में एक फर्नीचर की दुकान का आईपीओ आया था। आईपीओ के तुरंत बाद, इस व्यवसायी (अगर यही शब्द इस्तेमाल कर सकते हैं) ने एक मर्सिडीज और जमीन के कुछ टुकड़े खरीदे। अपने घर को दोबारा इटालियन संगमरमर से मढ़वाया। और बस बात खत्म हो गई। जहां तक स्टॉक का सवाल है, तो ये बिना कोई निशान छोड़े डूब गया। मुझे खुद इसका अनुभव तब हुआ, जब एक ऐसी फाइनेंस कंपनी का पता चला जिसका मुख्य काम इस तरह के आईपीओ को फेल होने से बचाना था।
पहले एक नियम हुआ करता था कि अगर किसी आईपीओ को कम-से-कम 90 प्रतिशत सब्सक्रिप्शन नहीं मिलता तो वो इश्यू फेल हो जाएगा और निवेशकों का पैसा वापस करना होगा। ये फाइनेंस कंपनी - जिसका नाम विश्वप्रिया था और जिसका मालिक बाद में किसी दूसरे मामले में जेल गया - ऐसे आइपीओ को अस्थायी तौर पर फाइनेंस करती थी। चंद दिनों के इस फाइनेंस की फीस करीब 20 प्रतिशत थी। मैं ये नहीं कह रहा कि एसएमई आईपीओ का हाल अब भी वैसा ही है।
दरअसल मुझे इसकी कोई जानकारी नहीं है। हालांकि, पहले जब आईपीओ का बुखार चढ़ा करता था, तब एक छोटी कंपनी का आईपीओ होना ही कंपनी के लिए खराब समझा जाता था। आप किसी भी स्थापित पैमाने से देखें, तो एसएमई आइपीओ को लेकर मौजूदा मार्केट सेंटीमेंट की तार्किकता और रिटेल निवेशकों के लिए संभावित रिस्क को लेकर गंभीर सवाल खड़े होते हैं। क्या हम इंटरनेट मीडिया हाइप और फोमो (पीछे छूट जाने का डर) से प्रेरित एक बुलबुले को बनते देख रहे हैं? कुछ समय पहले रेग्युलेटर ने हस्तक्षेप करते हुए, कम अनुभवी निवेशकों के बिना समझे-बूझे ज्यादा रिस्क वाली कंपनियों के आइपीओ में निवेश पर सार्वजनिक चेतावनी जारी की थी।
जब तक उन्माद जारी है, निवेशकों को सावधानी बरतनी चाहिए और एसएमई आइपीओ के रथ पर सवार होने से पहले पूरी तरह से जांच-पड़ताल करनी चाहिए। तो क्या मैं सभी एसएमई को छोड़ने लायक कह रहा हूं? ये सवाल जरा पेचीदा है। मैंने जो पहले कहा, उससे तो यही लगता है। हालांकि, जब मैं स्माल-कैप इंडेक्स और स्माल-कैप फंड्स का ट्रैक रिकार्ड देखता हूं, तो मुझे इस नजरिए में एक समस्या दिखाई देती है। आखिर, हर स्माल कैप की शुरुआत एक एसएमई के तौर पर ही हुई थी।
ऐसे में अगर निवेशक हर एसएमई से नजरें चुराएंगे तो चैंपियन स्माल-कैप स्टाक कहां से आएंगे? नहीं, यहां कोई विरोधाभास नहीं है। समस्या इसकी शब्दावली में है। जहां सुर्खियां एसएमई आईपीओ की बात करती हैं, वहीं जिन कंपनियों से त्योरियां चढ़नी चाहिए, वे एसएमई नहीं हैं। एसएमई का मतलब है लघु एवं मध्यम उद्यम। मगर ये आईपीओ(सूक्ष्म एवं अति सूक्ष्म उद्यमों के नाम का मेरा ताजा-ताजा आविष्कार)।
इनमें से कई जिनमें ये मोटरसाइकिल शोरूम भी शामिल है, सिर्फ दुकानें हैं। जब स्थापित स्मॉल-कैप स्टाक की चर्चा होती है, तब बात हजारों करोड़ की बिक्री वाले बिजनेस की हो सकती है। इसलिए, इन तथाकथित एसएमई आईपीओ में सिर्फ इस वजह से निवेश नहीं करना चाहिए, क्योंकि स्मॉल-कैप स्टॉक का प्रदर्शन अच्छा है। ये बात पूरी तरह से अलग स्केल वाली कंपनियों की है।