Budget 2024: नए सुधारों की सोच दिखी, मगर विनिवेश और बैंकों के निजीकरण पर चुप्पी
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने मंगलवार को मोदी 3.0 का पहला बजट पेश किया। यह उनका लगातार सातवां बजट था और उन्होंने इस मामले में पूर्व वित्त मंत्री मोरारजी देसाई का रिकॉर्ड तोड़ा जिन्होंने लगातार 6 बजट पेश किए थे। इस बजट में वित्त मंत्री ने कई नए सुधारों की बात की लेकिन विनिवेश और बैंकों के निजीकरण जैसे मुद्दों पर चुप्पी दिखी। क्या है इसकी वजह?
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। आर्थिक सुधारों को लेकर कुछ नई सोच तो सरकार की तरफ से दिखाई गई है, लेकिन पूर्व में बड़े सुधारवादी कदमों को लेकर वित्त मंत्री की चुप्पी साफ तौर पर दिख रही है। बजट अभिभाषण में न तो सरकार की विनिवेश नीति को आगे बढ़ाने की बात है और न ही पूर्व में बैंक निजीकरण को लेकर जो घोषणाएं की गई थी, उसको लेकर कोई दिशा मिलती है।
लेबर कोड पर स्थिति साफ नहीं
इसी तरह से लेबर कोड को लेकर ही सरकार स्थिति साफ करती नहीं दिख रही है। चालू वित्त वर्ष के लिए विनिवेश से सरकार ने 50 हजार करोड़ रुपये के राजस्व का लक्ष्य रखा है। यह आंकड़ा फरवरी, 2024 में पेश अंतरिम बजट के मुताबिक ही है। पिछले वित्त वर्ष सरकार ने सिर्फ 30 हजार करोड़ रुपये का विनिवेश लक्ष्य रखा था।
विनिवेश पर सरकार की बेरुखी
विनिवेश सरकार के लिए हमेशा से राजनीतिक तौर पर संवेदनशील मामला माना जाता है। अभी सरकारी कंपनियों से सरकार को काफी ज्यादा लाभांश मिल रहा है क्योंकि आर्थिक तेजी के माहौल में इन कंपनियों का मुनाफा भी बढ़ा है। वर्ष 2023-24 में केंद्र को सरकारी कंपनियों से लाभांश के तौर पर 1.50 लाख करोड़ रुपये का राजस्व मिला था। यह भी एक कारण है कि वह विनिवेश को लेकर बहुत तेजी नहीं दिखाना चाहती।
बैंकों के निजीकरण का क्या
वर्ष 2022-23 के आम बजट में वित्त मंत्री ने दो सरकारी बैंकों के निजीकरण की घोषणा की थी और इस घोषणा पर अमल करने को लेकर अभी कोई गतिविधियां आगे बढ़ती नहीं दिखती। इसी तरह से पूर्व में सीतारमण ने सरकारी क्षेत्र की चारों साधारण बीमा कंपनियों को मिला कर एक साधारण बीमा कंपनी में तब्दील करने का ऐलान किया था। माना जा रहा है कि आम चुनाव बीतने के बाद सरकार इस बारे में कुछ ठोस पहल करेगी। लेकिन बजट इसको लेकर भी कोई स्पष्टता नहीं ला पाया है।
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