Retail Inflation: महंगाई ने दिया जोर का झटका, 14 महीने के उच्चतम स्तर पर पहुंची
अक्टूबर में खुदरा महंगाई 6.21 फीसदी पर पहुंच गई। यह महंगाई का 14 महीनों का उच्चतम स्तर है। सितंबर 2024 में खराब मौसम और सब्जियों के महंगे होने से रिटेल इन्फ्लेशन बढ़कर 5.49 फीसदी पर पहुंच गई थी। अक्टूबर में भी खाने-पीने की चीजों के दाम में उछाल दिखा जिसके चलते महंगाई दर में एक्सपर्ट के अनुमान से भी अधिक उछाल दिखा है।
बिजनेस डेस्क, नई दिल्ली। जनता को एक बार फिर महंगाई का बड़ा झटका लगा है। अक्टूबर में खुदरा महंगाई 6.21 फीसदी पर पहुंच गई। यह महंगाई का 14 महीनों का उच्चतम स्तर है। इससे पहले यह रिकॉर्ड अगस्त 2023 के नाम था, जब महंगाई 6.83 फीसदी के स्तर पर थी।
सितंबर 2024 में खराब मौसम और सब्जियों के महंगे होने से रिटेल इन्फ्लेशन बढ़कर 5.49 फीसदी पर पहुंच गई थी। अक्टूबर में भी खाने-पीने की चीजों के दाम में उछाल दिखा, जिसके चलते महंगाई दर में एक्सपर्ट के अनुमान से भी अधिक उछाल दिखा है।
महंगाई के बास्केट में करीब 50 फीसदी योगदान खाने-पीने की चीजों का होता है। इसकी महंगाई मासिक आधार पर 9.24 फीसदी से बढ़कर 10.87 फीसदी हो गई है। वहीं, ग्रामीण महंगाई 5.87 फीसदी से बढ़कर 6.68 फीसदी और शहरी महंगाई 5.05 फीसदी से बढ़कर 5.62 फीसदी हो गई है।
खतरे के निशान के पार पहुंची महंगाई
सरकार ने भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) को खुदरा महंगाई 4 फीसदी पर रखने की जिम्मेदारी है। इसमें 2 फीसदी घट-बढ़ हो सकता है। इसका मतलब है कि महंगाई अगर 2 से 6 फीसदी के दायरे में रहती है, तो यह केंद्रीय बैंक के लिए संतोषजनक आंकड़ा होता है।
लेकिन, इस दायरे के बाहर जाते ही महंगाई सरकार और आरबीआई के लिए चिंता का कारण बन जाती है। अब अक्टूबर में महंगाई 6 फीसदी के पार पहुंच गई है। ऐसे में आरबीआई की चिंता बढ़ी होगी और हो सकता है कि वह इस बारे में कोई उपाय भी करे। अमूमन, ऐसी परिस्थिति में केंद्रीय बैंक ब्याज दर बढ़ा देते हैं।
महंगाई कैसे बढ़ती-घटती है?
यह पूरी तरह से डिमांड और सप्लाई का खेल है। अगर लोगों के पास ज्यादा पैसे रहेंगे, तो वे ज्यादा चीजें खरीदेंगे। इससे उन प्रोडक्ट की डिमांड बढ़ेगी और उसका असर कीमतों में उछाल के तौर पर दिखेगा। ऐसे में सप्लाई की भूमिका काफी अहम रहती है। अगर सप्लाई बढ़ेगी, तो डिमांड पूरी होने लगेगी और कीमतों में भी नरमी आएगी।
आसान शब्दों में, बाजार में पैसों का ज्यादा फ्लो से डिमांड बढ़ती है, जिससे महंगाई आती है। वहीं, डिमांड कम और सप्लाई ज्यादा होने की सूरत में महंगाई कम होगी। सरकार और आरबीआई इसी डिमांड और सप्लाई के बीच संतुलन बनाने का काम करते हैं।