7th Pay Commission: क्या होता है महंगाई भत्ता, सरकार कैसे करती है DA का कैलकुलेशन, जानें सबकुछ
7th Pay Commission देश में बढ़ती महंगाई से राहत दिलाने के लिए यह रकम आपके वेतन में जोड़ी जाती है। बहुत से लोग सोचते हैं कि सभी कर्मचारी लाभ के हकदार हैं लेकिन हम आपको बताते हैं कि यह लाभ केवल केंद्र और राज्य सरकार के कर्मचारियों के लिए है। निजी कर्मचारियों को डीए का भुगतान नहीं किया जाता है। पढ़िए क्या है पूरी खबर।
बिजनेस डेस्क, नई दिल्ली: नौकरीपेशा लोगों के लिए महंगाई भत्ता किसी पुरस्कार से कम नहीं है। यह आपके सैलरी में जुड़कर आता है जिससे आपकी देश में बढ़ती हुई महंगाई से थोड़ी राहत मिल सके।
कई लोग यह सोचते हैं कि महंगाई भत्ता सभी नौकरीपेशा लोगों को मिलता है लेकिन आपको बता दें कि महंगाई भत्ता सिर्फ केंद्र सरकार के कर्मचारी और राज्य सरकार के कर्मचारियों को मिलता है। निजी कर्मचारियों को महंगाई भत्ता नहीं दिया जाता है।
क्या होता है मंहगाई भत्ता?
महंगाई भत्ता (Dearness Allowance (DA)) सरकारी कर्मचारियों का वो हथियार है जिससे वो हर साल बढ़ने वाली महंगाई से बचे रहते हैं। दरअसल सरकारी कर्मचारियों को सरकार (केंद्र या राज्य) उनके जीवन स्तर को बनाये रखने के लिए उन्हें बेसिक सैलरी के अलावा अतिरिक्त भत्ता देती है ताकि उन्हें महंगाई की मार ना झेलनी पड़े।
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आपको बता दें कि महंगाई भत्ता का पैसा सरकारी कर्मचारियों, पब्लिक सेक्टर के कर्मचारियों और पेंशनधारियों को दिया जाता है। सरकार हर 6 महीने में एक बार डीए की गणना करती है। वर्तमान में 42 प्रतिशत डीए दिया जाता है।
कैसे कैलकुलेट किया जाता है डीए?
महंगाई भत्ता की गणना करने के लिए फॉर्मूला तय है और इसी के हिसाब से डीए को कैलकुलेट किया जाता है।
यह फॉर्मूला है [(पिछले 12 महीने के ऑल इंडिया कंज्यूमर प्राइस इंडेक्स का औसत - 115.76)/115.76]×100
पब्लिक सेक्टर में काम करने वाले लोगों के डीए की गणना इस प्रकार की जाती है। महंगाई भत्ता प्रतिशत= (बीते 3 महीनों के उपभोक्ता मूल्य सूचकांक का औसत (बेस ईयर 2001=100)-126.33))x100
रिटेल महंगाई के आधार पर तय होती है महंगाई
डीए को रिटेल यानी खुदरा महंगाई के आधार पर तय किया जाता है थोक महंगाई के आधार पर नहीं। खुदरा महंगाई उसे कहते हैं कि जो हम और आप किसी समान को खरीदने के बाद पेमेंट करते हैं।
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टैक्स देना होता है नहीं?
आपको बता दें कि आपको जो डीए दिया जाता है वो पूरी तरह से टैक्सेबल इनकम होता। साल 1972 में सबसे पहले महंगाई भत्ते की शुरुआत हुई थी।