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Kingfisher Airlines : कभी देश की दूसरी सबसे सफल एयरलाइन थी किंगफिशर, क्या विजय माल्या की 'जल्दबाजी' से हुई बर्बाद?

किंगफिशर एयरलाइंस की शुरुआत और अंत के बीच तीन वर्ल्ड कप हैं। शुरुआत 2003 में हुई जब सौरव गांगुली की अगुआई में भारत फाइनल तक पहुंचा। 2007 में भारत पहले ही दौर में बाहर हो गया और उसी साल से किंगफिशर की मुश्किलें भी शुरू हुईं। 2011 में धोनी की कप्तानी में वर्ल्ड कप जीता और तब किंगफिशर देश की दूसरी सबसे बड़ी एयरलाइन थी। फिर इसका दिवाला कैसे निकला?

By Suneel Kumar Edited By: Suneel Kumar Updated: Tue, 26 Mar 2024 08:20 PM (IST)
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Kingfisher Airlines की शुरुआत 2003 में हुई, फाउंडर थे विजय माल्या।
बिजनेस डेस्क, नई दिल्ली। किंगफिशर चिड़िया बाकी पक्षियों से काफी अलग दिखती है। खासकर अपने चमकीले रंग और खूबसूरत बनावट के चलते। इसकी एक और खासियत है, आसमानी ऊंचाई से सिर के बल पानी में गोता लगाना और वो भी घायल हुए बिना। लेकिन, इसी नाम की एयरलाइंस ने जब आसमान की ऊंचाइयों से एक बार गोता लगाया, तो ऐसी क्रैश हुई कि फिर कभी उठ नहीं पाई।

हम बात कर रहे हैं देश की सबसे चर्चित विमान कंपनियों में से एक किंगफिशर एयरलाइंस (Kingfisher Airlines) की। इसकी शुरुआत 2003 में हुई। इसी साल देश के शायद सबसे चर्चित किंगफिशर कैलेंडर की शुरुआत भी हुई, जिसमें दुनियाभर की खूबसूरत मॉडल्स ने अपने जलवे बिखेरे।

यह वही साल था, जब सौरव गांगुली की अगुआई में भारतीय टीम वनडे क्रिकेट के फाइनल तक पहुंची। साल 2011 में जब भारतीय क्रिकेट टीम ने महेंद्र सिंह धोनी की कप्तानी में वर्ल्ड कप उठाया, तो उस वक्त देश की दूसरी सबसे बड़ी एयरलाइन थी किंगफिशर।

लेकिन, एक ही साल में सबकुछ बदल गया। किंगफिशर का दिवाला निकाला गया। उसके फाउंडर विजय माल्या (Vijay Mallya) लेनदारों से बचने के लिए ब्रिटेन भाग गए। आइए जानते हैं किंगफिशर के अर्श से फर्श पर आने की पूरी कहानी।

किंगफिशर एयरलाइंस ने कैसे भरी उड़ान

किंगफिशर एयरलाइंस की नींव 2003 में पड़ी। फाउंडर थे तब के मशहूर कारोबारी विजय माल्या। माल्या उस वक्त Kingfisher beer बनाने वाली United Breweries Group के चेयरमैन थे, जिसकी एयरलाइंस में हिस्सेदारी 50 फीसदी थी। किंगफिशर ने पहली उड़ान 2005 में भरी। इसने देश के सबसे बिजी रूट मुंबई और दिल्ली पर फोकस किया।

अगले दो साल में किंगफिशर ने अपने बेड़े को चार से बढ़ाकर 20 एयरबस A320 तक कर लिया। उड़ानें भी 26 डेस्टिनेशन तक जाने लगीं। इसने लंदन और हांगकांग जैसे चर्चित अंतरराष्ट्रीय शहरों को भी कवर करने लगी थी। अपने गोल्डन पीरियड में 69 एयरक्राफ्ट थे किंगफिशर के फ्लीट में। इसने इंटरनेशनल सर्विसेज के लिए 10 और एयरक्राफ्ट के ऑर्डर भी दिए, लेकिन उनकी डिलीवरी से पहले ही खेल हो गया।

क्या माल्या की जल्दबाजी से बिगड़ा खेल?

विजय माल्या किंगफिशर के साथ जल्द से जल्द अंतरराष्ट्रीय उड़ान भरना चाहते थे। लेकिन, देश में नियम है कि कोई भी एयरलाइन पांच साल से पहले इंटरनेशनल फ्लाइट नहीं शुरू कर सकती। माल्या ने इस नियम का तोड़ निकालने के लिए आर्थिक रूप से बदहाल एयर डेक्कन (Air Deccan) को खरीद लिया, जिसके पास बड़ा डोमेस्टिक नेटवर्क भी था। लेकिन, यह रणनीतिक रूप से माल्या की बड़ी भूल साबित हुई और किंगफिशर भारी कर्ज के जाल में फंस गई।

2008 की मंदी से किंगफिशर का बेड़ा गर्क हुआ

बदहाल एयर डेक्कन को खरीदने के झटके से किंगफिशर शायद उबर भी जाती, क्योंकि उसके पास अच्छा खासा मार्केट शेयर था। देश की दूसरी सबसे बड़ी एयरलाइन थी वह। लेकिन, 2008 की वैश्विक आर्थिक मंदी ने उसे उबरने का मौका ही नहीं दिया। उसी दौरान फ्यूल के दाम भी तेजी से बढ़ने लगें। जब चीजें बेकाबू होने लगीं, तो किंगफिशर ने अपनी उड़ानों की संख्या घटाकर जख्मों पर मरहम लगाने की कोशिश की।

लेकिन, तब तक बहुत देर हो चुकी थी। कर्ज के मर्ज ने किंगफिशर को एकदम तबाह कर दिया। एयरलाइन के पास ना तो कर्मचारियों का वेतन देने भर के पैसे थे, और ना ही लोन चुकाने के। किंगफिशर की उड़ान जारी रखने के लिए माल्या अपने पैसे भी झोंकने लगे।

निवेशक मिल जाते तो बदल सकता था अंजाम

माल्या ने अपनी एयरलाइन को बचाने के लिए निवेशक भी तलाशे। लेकिन, उनकी बदकिस्मती थी कि उस वक्त विदेशी एयरलाइंस को किसी भारतीय विमानन कंपनी में निवेश की इजाजत नहीं थी। लिहाजा, माल्या के हाथ निराशा ही लगी।

आखिरकार, अक्टूबर 2012 में एविएशन रेगुलेटर डायरेक्टोरेट जनरल ऑफ सिविल एविएशन ने किंगफिशर का लाइसेंस सस्पेंड कर दिया। देश की दूसरी सबसे बड़ी एयरलाइन का दिवाला निकल गया। 2016 में लेनदार बैंकों ने अपना बकाया वसूल करना शुरू किया। इसमें करीब 9 हजार करोड़ रुपये की देनदारी खुद माल्या के ऊपर ही थी।

माल्या उसी साल लेनदारों से बचने के लिए भारत से भागकर ब्रिटेन में बस गए। सरकार ने माल्या को वापस लाने की तमाम कोशिशें कर रही है, उन्हें आर्थिक भगोड़ा तक घोषित किया जा चुका है, लेकिन वह अभी तक ब्रिटेन में ही हैं।

किंगफिशर के साथ गड़बड़ी क्या हुई?

अगर कागजी बात करें, तो वहां किंगफिशर सबकुछ शानदार कर रही थी। इसके बेडे़ के एयरक्राफ्ट नए और आरामदायक थे। यात्रियों के हिसाब से खाना भी लजीज था। मनोरंजन के लिहाज से भी फ्लाइट में अच्छा बंदोबस्त था। फिर मसला कहां हुआ?

असल में किंगफिशर का करियर बहुत छोटा रहा। यह कभी मुनाफे में भी नहीं आई। हालांकि, एक स्टार्टअप एयरलाइन से इस बात की शिकायत भी नहीं की जा सकती। लेकिन, असल समस्या हुई कर्ज के मोर्चे पर। एक ही समय में किंगफिशर आसमान की बुलंदियों पर उड़ान भर रही थी और साथ में कर्ज के समंदर में गोते भी लगा रही थी।

विजय माल्या और उनकी टीम का जो फोकस था, वो एयरलाइन की सुविधाओं और विस्तार तक ही सीमित रहा। उन्होंने ऐसा कुछ नहीं किया, जिससे एयरलाइन के कर्ज का बोझ कम होता। आखिर में वही हुआ, जिसका डर था। किंगफिशर कर्ज के बोझ के साथ ज्यादा दूर तक उड़ान नहीं भर पाई और क्रैश हो गई।

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