आर्थिक नीतियां जारी रहने की उम्मीद, बड़े फैसले आसान नहीं
नई सरकार को नए कानूनों के लिए गठबंधन की पार्टियों पर निर्भर रहना होगा सहयोगी दलों को सड़क जैसे अन्य विभाग इन्फ्रा से जुड़े रेल देने पड़ सकते हैं। आर्थिक विशेषज्ञ मान रहे हैं कि पिछले दस सालों में जो आर्थिक नीतियां अपनाई गई हैं उसे जारी रहना चाहिए। तभी अगले तीन साल में अर्थव्यवस्था के आकार को पांच ट्रिलियन डालर तक ले जाना संभव होगा।
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। चुनावी नतीजों के बाद यह साफ हो गया है कि भाजपा के नेतृत्व में राजग की सरकार तो बनेगी, लेकिन किसी भी बड़े आर्थिक सुधार के लिए भाजपा को गठबंधन दलों के फैसले पर निर्भर रहना पड़ेगा।
आर्थिक विशेषज्ञ मान रहे हैं कि पिछले दस सालों में जो आर्थिक नीतियां अपनाई गई हैं, उसे जारी रहना चाहिए। तभी अगले तीन साल में अर्थव्यवस्था के आकार को पांच ट्रिलियन डालर तक ले जाना संभव होगा। परंतु सरकार के तीसरे कार्यकाल में जमीन, कृषि, श्रम जैसे क्षेत्र में नए कानून की जो उम्मीद की जा रही थीं, अब उसे लाने के लिए तेदेपा और जदयू जैसी पार्टियों पर निर्भर रहना होगा।
इन्फ्रास्ट्रक्चर एवं सामाजिक कल्याण
एचडीएफसी बैंक की प्रमुख अर्थशास्त्री साक्षी गुप्ता कहती हैं कि गठबंधन की सरकार में भी इन्फ्रास्ट्रक्चर एवं सामाजिक कल्याण से जुड़ी योजनाओं पर सरकारी खर्च जारी रहना चाहिए और तभी इससे चालू वित्त वर्ष 2024-25 में जीडीपी विकास दर सात प्रतिशत रह सकती है।
आर्थिक जानकारों के मुताबिक, राजग सरकार में जदयू एवं तेदेपा जैसे क्षेत्रीय दलों की अहम भूमिका होगी क्योंकि भाजपा बहुमत से दूर रह गई है। अब तक अगले 100 दिनों में सरकार श्रम, भूमि रिकार्ड व कारोबार को आसान करने संबंधी कई नए कानून लाने की तैयारी कर रही थी। तेदेपा एवं जदयू जैसी पार्टियों पर निर्भर रहने से यह आसान नहीं होगा क्योंकि दोनों ही पार्टियां उन्हीं कानून को बनने के लिए आसानी से हामी भरेंगी, जिससे उनकी राज्य की राजनीति प्रभावित नहीं हो और उन्हें अपने-अपने राज्यों में राजनीतिक लाभ भी मिले।
सरकार में मंत्रालय का बंटवारा
आर्थिक जानकारों का यह भी कहना है कि गठबंधन की सरकार में मंत्रालय का बंटवारा भी सहयोगी दलों की इच्छा पर निर्भर करेगा। इन्फ्रास्ट्रक्चर से जुड़े रेल, सड़क जैसे कई अन्य विभाग सहयोगी दलों को देने पड़ सकते हैं। इनका इस्तेमाल वे अपने-अपने राज्यों की राजनीति चमकाने के लिए कर सकते हैं। निवर्तमान सरकार में भाजपा के पास 303 सीटें थी, इसलिए राजग की सरकार होने के बावजूद किसी भी नीति को लागू करने के मामले में सहयोगी दलों के सामने झुकना नहीं पड़ता था।