Digital Financial Scams: डिजिटल वित्तीय घोटालों की महामारी, जानिए कैसे शिकार हो रहे हैं लोग
लोगों से वन टाइम पासवर्ड मांगना सबसे प्रचलित तरीका है। हाल के दिनों में कई घोटालेबाजों ने डर को एक ट्रिगर के रूप में इस्तेमाल किया है। इसमें बताया जाता है कि आपके बच्चे को गिरफ्तार कर लिया गया है या उनके नाम से या उनको भेजे गए किसी कूरियर में ड्रग्स मिली है। ये बातें कुछ ऐसी होती हैं कि लोगों के लिए समझना मुश्किल हो जाता है।
धीरेंद्र कुमार। भले ही मैं आमतौर पर निवेश के विषयों पर ही ध्यान केंद्रित करता हूं, पर आज मैं फाइनेंस के एक अलग पहलू डिजिटल वित्तीय सुरक्षा पर चर्चा कर रहा हूं। ऐसी कहानियां अब आम हैं जहां डिजिटल चोरी में खासतौर पर सीनियर सिटीजन को निशाना बनाया जाता है। ऐसी धोखाधड़ी, जहां कोई आपको काल करके एक कहानी सुनाता है और इस कहानी का अंत, अगर आप भोले-भाले हैं, तो किसी को डिजिटली पैसे देने में होता है। सुनने में आया है कि पिछले कुछ महीनों में हमारे यहां धोखाधड़ी की करोड़ों कोशिशें हुई हैं।
मैं इस पर विश्वास करता हूं क्योंकि मैं किसी भी ऐसे व्यक्ति को नहीं जानता जिसके परिवार में, दोस्तों में या साथ में काम करने वाले ने हाल के महीनों में इसका सामना नहीं किया हो। बड़े पैमाने पर होने वाली ये धोखाधड़ी किस तरह की है, इसके कुछ दूसरे सुराग भी मौजूद हैं। कुछ लोगों ने रिकार्ड किए गए मैसेज मिलने के बारे में बताया है। फोन पर एक आवाज कुछ इस तरह कहती है, 'आपके भेजे कूरियर पैकेज में एक कानूनी समस्या है। कृपया ज्यादा विस्तार से जानने के लिए एक दबाएं।' अपराधियों के लिए फ्राड का ये एक शातिराना तरीका है।
जिन लोगों ने इस तरह के घोटाले के बारे में सुना है, वो फोन काट देंगे, जबकि भोलेभाले शिकार एक दबा देंगे।ऐसा लगता है कि धोखाधड़ी की सफलता का रेट बढ़ाने के लिए ऑटोमेशन एक फिल्टर के तौर पर काम करता है। इससे पता चलता है कि इन घोटालों को चलाने वाले लोग कितने संगठित हैं और एक आम कारोबार की तरह टेक्नोलाजी का इस्तेमाल करते हैं।ऐसे अनगिनत तरीके हैं जिनका इस्तेमाल ये घोटालेबाज कर रहे हैं।
लोगों से वन टाइम पासवर्ड (ओटीपी) मांगना सबसे प्रचलित तरीका है। हाल के दिनों में कई घोटालेबाजों ने डर को एक ट्रिगर के रूप में इस्तेमाल किया है। इसमें बताया जाता है कि आपके बच्चे को गिरफ्तार कर लिया गया है या उनके नाम से या उनको भेजे गए किसी कूरियर में ड्रग्स मिली है। ये बातें कुछ ऐसी होती हैं कि लोगों के लिए शांत होकर सोचना-समझना मुश्किल हो जाता है। फोन पर धोखाधड़ी करने वालों के पास शिकार को मूर्ख बनाने का लंबा अनुभव होता है, लेकिन आम लोगों के पास उनसे निपटने का कोई अनुभव नहीं होता।
इसे रोकने का स्पष्ट तरीका है बैंकिंग सिस्टम। डिजिटल धोखाधड़ी, बैंकों के बीच डिजिटल लेनदेन के जरिये ही लूट को अंजाम देती है। यही वो चीज है जो इस तरह के अपराध को संभव बनाती है और यहीं इन्हें रोका भी जा सकता है। मगर यही इसकी कमजोरी भी है। पूरी तरह से इलेक्ट्रानिक, पूरी तरह से केवाईसी वाले सिस्टम में, पैसे का पता न चल पाने का कोई कारण नहीं हो सकता। भले ही कोई घोटालेबाज लूट की रकम को कितने ही बैंक खातों में कितनी ही तेजी से क्यों न बांट दें और कैश निकाल ले, इसके पता न चलने का कोई कारण ही नहीं है।
दरअसल, इनके पता लगाने के रास्ते में जो चीज आड़े आ रही है वो पुराने और धीमे सिस्टम हैं जो इस तरह के अपराध को संभाल नहीं पा रहे हैं। जहां कुछ खबरें दिखी हैं जो बैंकों को गृह मंत्रालय की साइबर क्राइम सिस्टम या इस जैसी किसी चीज से जुड़ने को लेकर है। पर ये भी साफ है कि अभी बहुत कुछ किए जाने की जरूरत है और असल में, ये संभव भी है।
जब तक एक बेहतर सिस्टम विकसित होता है, हमें खुद को और अपने परिवार के बुजुर्गों को इन घोटालों का शिकार होने से बचाना चाहिए। घोटालेबाजों की आम रणनीति के बारे में खुद को शिक्षित करना, फोन या ईमेल पर संवेदनशील जानकारी साझा न करना, संदिग्ध काल को तुरंत काट देना, दो-स्तरीय सत्यापन का इस्तेमाल और अपने वित्तीय विवरण की नियमित निगरानी इन अपराधों को रोकने में काफी मदद कर सकता है।
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