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रोजगार नहीं देने वाला तेज विकास एक गंभीर समस्या

रिजर्व बैंक के गवर्नर रघुराम राजन का मानना है कि तेज विकास का ऐसा मॉडल ज्यादा मायने नहीं रखता, जिसमें रोजगार के मौके नहीं बढ़ते। यह गंभीर समस्या है, जिसके समाधान की दरकार है। राजन ने अगले वित्त वर्ष की मौद्रिक नीति से पहले अर्थव्यवस्था की हालत के साथ-साथ कई दूसरे मसलों पर भी गंभीरता से गौर किया है। इनमें बैंकों

By Edited By: Updated: Mon, 31 Mar 2014 09:27 AM (IST)

मुंबई। रिजर्व बैंक के गवर्नर रघुराम राजन का मानना है कि तेज विकास का ऐसा मॉडल ज्यादा मायने नहीं रखता, जिसमें रोजगार के मौके नहीं बढ़ते। यह गंभीर समस्या है, जिसके समाधान की दरकार है।

राजन ने अगले वित्त वर्ष की मौद्रिक नीति से पहले अर्थव्यवस्था की हालत के साथ-साथ कई दूसरे मसलों पर भी गंभीरता से गौर किया है। इनमें बैंकों के फंसे हुए कर्ज और रोजगार के मौके बढ़ाए बगैर आर्थिक विकास की मुश्किलें शामिल हैं। एक परिचर्चा में उन्होंने कहा कि रोजगार के मौके बढ़ाए बगैर आर्थिक विकास की वजह से सामाजिक तनाव पैदा होता है। इस मौके पर उन्होंने आइसीआइसीआइ बैंक की सीईओ और एमडी चंदा कोचर से यह पूछकर चौंका दिया कि बैंकों में एनपीए (फंसे हुए कर्ज) के बारे में उनका क्या आकलन है। खास तौर पर सरकारी बैंकों में।

राजन ने कहा, 'सरकारी बैंकों में एनपीए बढ़ना चिंता की बात है, न कि निजी क्षेत्र के बैंकों में।' राजन के सवाल का जवाब देते हुए कोचर ने दावा किया कि जो परियोजनाएं विभिन्न मंजूरियों की राह देख रही हैं, उनके चालू हो जाने के बाद एनपीए की समस्या एक हद तक हल हो जाएगी। इस पर राजन ने कहा, 'क्या आप यह कह रही हैं कि यह मानने का कोई कारण नहीं है कि सभी फंसे हुए कर्ज भ्रष्टाचार की देन हैं।'

राजन ने योजना आयोग के सदस्य अरुण मायरा के साथ रोजगार के मौके बढ़ाए बगैर आर्थिक विकास की समस्या का मसला भी उठाया। उन्होंने वित्त वर्ष 2013 के लिए आर्थिक सर्वेक्षण में अपरेंटिस अधिनियम में संशोधन करके अकुशल श्रमिकों को नौकरियों के मौके उपलब्ध कराने के बारे में लिखा है। इस पर मायरा ने कहा कि श्रमिकों में कौशल का अभाव अर्थव्यवस्था के लिए बड़ी समस्या है। लेकिन नियोक्ता इस क्षेत्र में निवेश करके यह मुश्किल कम कर सकते हैं।

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