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वित्त आयोग के अध्यक्ष बोले- बेरोजगारी देश की समस्या नहीं, हमें बढ़ाने होंगे रोजगार

नीति आयोग के पूर्व उपाध्यक्ष और 16वें वित्त आयोग के चेयरपर्सन अरविंद पनगढ़िया (Arvind Panagariya) का कहना है कि इस वक्त भारत की समस्या बेरोजगारी नहीं है। बल्कि देश Under-employment यानी कम रोजगार की समस्या से जूझ रहा है। पनगढ़िया ने कहा कि वह बतौर अर्थशास्त्री भारत की तरक्की से खुश हैं लेकिन देश को अभी भी कुछ क्षेत्रों में सुधार की जरूरत है।

By Jagran News Edited By: Jagran News NetworkUpdated: Sat, 24 Feb 2024 07:34 PM (IST)
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पनगढ़िया ने कहा कि वह बतौर अर्थशास्त्री भारत की तरक्की से खुश हैं
पीटीआई, नई दिल्ली। नीति आयोग के पूर्व उपाध्यक्ष और 16वें वित्त आयोग के चेयरपर्सन अरविंद पनगढ़िया (Arvind Panagariya) का कहना है कि इस वक्त भारत की समस्या बेरोजगारी नहीं है। बल्कि, देश Under-employment यानी कम रोजगार की समस्या से जूझ रहा है।

Under-employment का मतलब किसी वर्कर की क्षमता का पूरा इस्तेमाल न होना है, क्योंकि उसकी नौकरी उसकी स्किल के हिसाब की नहीं है। उसे काम करने के लिए काफी कम घंटे मिलते हैं या फिर वह बेकार हो जाता है। इस स्थिति बेरोजगारी से अलग होती है, जहां किसी शख्स को चाहने के बावजूद भी रोजगार नहीं मिलता।

पनगढ़िया ने कहा कि वह बतौर अर्थशास्त्री भारत की तरक्की से खुश हैं, लेकिन देश को अभी भी कुछ क्षेत्रों में सुधार की जरूरत है।

पनगढ़िया ने कहा कि आप लेबर फोर्स सर्वे पर नजर डालेंगे, पता चलेगा कि रोजगार पैदा होने की दर उतनी ज्यादा नहीं है। यह स्थिति ग्रामीण क्षेत्रों में और भी खराब है। इस सूरत में हमें बेरोजगारी से नहीं, कम रोजगार पैदा होने से लड़ना होगा। हालांकि, उन्होंने उम्मीद जताई कि अगले 10 साल में रोजगार से जुड़ी समस्या हल हो जाएगी।

नीति आयोग के पूर्व उपाध्यक्ष ने यह भी कहा कि हमें शहरी और ग्रामीण इलाकों में अधिक से अधिक रोजगार के अवसर बनाने की कोशिश करनी होगी। उन्होंने उत्पादकता कम होने पर भी चिंता जताई। पनगढ़िया ने कहा कि जो काम अकेला शख्स कर सकता है, उसे दो या तीन लोग कर रहे हैं। हमारे पास वर्क फोर्स बड़ी है, लेकिन पूंजी का सही तरीके बंटवारा नहीं है।

उन्होंने कहा कि देश की ज्यादातर पूंजी कुछ उद्योगों में हैं, जिन्होंने ज्यादा नौकरियां नहीं पैदा की हैं। वहीं, कृषि और SME सेक्टर बहुत ज्यादा नौकरियां देते हैं, लेकिन उनके पास नाममात्र की पूंजी है। अगर अर्थव्यवस्था के शब्दजाल का इस्तेमाल करें, तो भारत एक श्रम-प्रचुर और पूंजी-कमी वाला देश है।

पनगढ़िया में लेबर लॉ को सही तरीके से लागू करने पर भी जोर दिया। उन्होंने कहा कि लेबर लॉ में सुधार की बड़ी जरूरत है। लेकिन, कानून बनाने में काफी वक्त लगता है और लागू करने में उससे भी अधिक।