16वें वित्त आयोग की पहली बैठक संपन्न, 31 अक्टूबर, 2025 को सरकार को सौंपी जाएगी पहली सिफारिश
वित्त आयोग राजस्व संग्रह के केंद्र व राज्यों के बीच बंटवारे पर अपने सुझाव देता है और साथ ही राज्यों के संग्रह को विभिन्न स्थानीय इकाइयों के बीच किस तरह से विभाजित किया जाए इसको लेकर भी सुझाव देता है। 16वें वित्त आयोग में पूर्व व्यय सचिव अजय नारायण झा पूर्व विशेष सचिव (व्यय) जार्ज मैथ्यू और निरंजन राजध्यक्ष को पूर्ण सदस्य के तौर पर शामिल किया गया है।
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। डॉ. अरविंद पनगढ़िया की अध्यक्षता में 16वें वित्त आयोग की पहली बैठक में आयोग के संचालन को लेकर कई अहम फैसले किये गये। बैठक में आयोग के अधिकारों व उद्देश्यों को लेकर चर्चा हुई और आने वाले दिनों में राज्य सरकारों, स्थानीय निकायों, विभिन्न मंत्रालयों और विशेषज्ञों से किस तरह से विमर्श को आगे बढ़ाया जाएगा, इसकी रूप-रेखा को तय किया गया।
आयोग ने माना, विभिन्न क्षेत्रों के विशेषज्ञों से व्यापक बातचीत की है जरूरत
आयोग की तरफ से शोध संस्थानों, थिक टैंक से भी विमर्श की जरूरत को चिन्हित किया गया है। आयोग की तरफ से स्वीकार किया गया है कि उसे बहुत बड़े स्तर पर विभिन्न क्षेत्रों के विशेषज्ञों के साथ बातचीत करनी होगी। आयोग की तरफ से पहली सिफारिशें 31 अक्टूबर, 2025 को सरकार को सौंपी जाएगी। 01 अप्रैल, 2026 से पांच वर्षों के लिए इसकी रिपोर्ट के आधार पर केंद्र सरकार और राज्यों के बीच राजस्व का बंटवारा किया जाएगा।
वित्त आयोग का यह है काम
वित्त आयोग मुख्य तौर पर राजस्व संग्रह के केंद्र व राज्यों के बीच बंटवारे पर अपने सुझाव देता है और साथ ही राज्यों के संग्रह को विभिन्न स्थानीय इकाइयों के बीच किस तरह से विभाजित किया जाए, इसको लेकर भी सुझाव देता है। 16वें वित्त आयोग में पूर्व व्यय सचिव अजय नारायण झा, पूर्व विशेष सचिव (व्यय) जार्ज मैथ्यू और निरंजन राजध्यक्ष को पूर्ण सदस्य के तौर पर शामिल किया गया है। जबकि एसबीआइ समूह के प्रमुख आर्थिक सलाहकार सौम्य कांति घोष को अंशकालिक सदस्य के तौर पर शामिल किया गया है।राजस्व के बंटवारे को लेकर होती है राजनीति
अध्यक्ष पनगढ़िया कोलंबिया विश्वविद्यालय में अर्थशास्त्र के प्रोफेसर हैं और पूर्व में वह नीति आयोग के उपाध्यक्ष के तौर पर अपनी सेवा दे चुके हैं। अभी केंद्र सरकार अपने राजस्व का 41 फीसद हिस्सा राज्यों के साथ साझा करती है। इसको लेकर काफी राजनीति होती है। जो पार्टियां विपक्ष में होती हैं वह इस हिस्सेदारी को बढ़ाने की मांग करती हैं।