बैंकों के निजीकरण पर पूर्व आरबीआई गवर्नर सुुब्बाराव का सुझाव, सरकार को बनाना चाहिए 10 साल का रोड मैप
वित्त वर्ष 2021-22 के बजट में केंद्र सरकार ने नीतिगत विनिवेश योजना के तहत दो सरकारी बैंकों के निजीकरण का ऐलान किया था। सरकारी थिंक-टैंक नीति आयोग भी सरकार को दो सरकारी बैंकों और एक इंश्योरेंस कंपनी के निजीकरण की सलाह दे चुका है।
By Siddharth PriyadarshiEdited By: Updated: Wed, 07 Sep 2022 04:17 PM (IST)
नई दिल्ली, एजेंसी। आरबीआई के पूर्व गवर्नर डी सुब्बाराव ने सुझाव दिया है कि सरकार को सभी सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों (PSU Bank) के निजीकरण के लिए 10 साल के रोड मैप पर काम करना चाहिए, क्योंकि यह सभी पक्षों के लिए बहुत अहमियत रखता है। इससे यह अनुमान लगाने में सहायता मिलेगी कि आगे क्या होगा। डी सुब्बाराव ने आगे कहा कि सरकारी बैंकों के निजीकरण के मुद्दे को सरकार को ठंडे बस्ते में नहीं डालना चाहिए।
समाचार एजेंसी पीटीआई से बातचीत करते हुए सुब्बाराव ने कहा कि सरकार को सभी सरकारी बैंकों के निगमीकरण (corporatisation) पर ध्यान देना चाहिए, ताकि वे समान आरबीआई रेगुलेशन के दायरे में आ सकें।
बैंकों के निजीकरण का प्रस्ताव
वित्त वर्ष 2021-22 के बजट में केंद्र सरकार ने नीतिगत विनिवेश योजना के तहत दो सरकारी बैंकों के निजीकरण का ऐलान किया था। सरकारी थिंक-टैंक नीति आयोग भी सरकार को दो सरकारी बैंकों और एक इंश्योरेंस कंपनी का निजीकरण के नाम सुझा चुका है।बैंकों के निजीकरण से होगा क्या असर?
सुब्बाराव के मुताबिक, सरकारी बैंकों के निजीकरण के दो परिणाम होंगे। सबसे पहले तो देश में बैंकिंग व्यवस्था की गुणवत्ता में सुधार होगा। हालांकि उन्होंने आशंका जताई कि इससे सरकारी बैंकों का उद्देश्य सामाजिक भलाई से हटकर अन्य निजी बैंकों की तरह केवल मुनाफे पर केंद्रित हो जाएगा। इसके एक और परिणाम पर प्रकाश डालते हुए उन्होंने कहा कि इससे वित्तीय सुविधाओं को समाज के अंतिम व्यक्ति तक पहुंचाने का कार्य भी प्रभावित हो सकता है।