राज्यों के परिवहन निगमों पर भारी पड़ रहा मुफ्त सफर, कर्नाटक में बढ़ेगा किराया, पंजाब सब्सिडी के नियम बनाने की तैयारी
कर्नाटक सरकार ने सार्वजनिक परिवहन की अपनी बसों का किराया बीस प्रतिशत तक बढ़ाने का मन बना लिया है। इसका कारण ये है कि सरकार लगातार घाटा झेल रही है। पिछले तीन महीने में सरकार 295 करोड़ रुपये का घाटा हुआ है। वहीं महिलाओं को फ्री ट्रांसपोर्ट देने के कारण पजाब सरकार भी हर रोज 1 करोड़ का घाटा झेल रही है।
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। लगातार भारी घाटे के बाद कर्नाटक सरकार ने सार्वजनिक परिवहन की अपनी बसों का किराया बीस प्रतिशत तक बढ़ाने का मन बना लिया है। इसी परेशानी से जूझ रही पंजाब सरकार भी महिला यात्रियों को मुफ्त सफर की सुविधा सीमित करने पर विचार कर रही है।
कर्नाटक सरकार को पिछले तीन महीने में 295 करोड़ रुपये का घाटा हुआ है, जबकि महिलाओं को बसों में मुफ्त सफर की सुविधा प्रदान करने में पंजाब राज्य सड़क परिवहन निगम को हर दिन एक करोड़ रुपये का घाटा होता है। पंजाब की तरह कर्नाटक में भी महिलाओं को निशुल्क यात्रा का अवसर मिलता है और इसी श्रेणी में दिल्ली भी शामिल है।
लगातार घाटे में दिल्ली
दिल्ली तो कई सालों से लगातार घाटे में है, लेकिन कर्नाटक और पंजाब जैसे राज्य सब्सिडी के बोझ के कारण अपने सार्वजनिक परिवहन निगम को आर्थिक बदहाली की तरफ ले जा रहे हैं। दोनों ही राज्यों के परिवहन निगम पांच साल पहले न केवल मुनाफे में थे, बल्कि दस सबसे अच्छे नतीजे देने वाले राज्यों में शामिल थे। राज्यों के सड़क परिवहन निकायों के प्रदर्शन से संबंधित सड़क परिवहन मंत्रालय की पिछले साल जारी की गई रिपोर्ट बताती है कि 56 में से 49 निगम लगातार घाटे में बने हुए हैं।रिपोर्ट के मुताबिक इसका कारण सीधा है-कमाई से ज्यादा खर्च। समस्या यह है कि किराये का निर्धारण इस ढंग से नहीं किया जा रहा है कि वह बढ़े हुए खर्चों की भरपाई कर सके। रिपोर्ट में कहा गया है कि राज्य सरकारें किराये में छूट जैसे फैसले करती हैं और इसकी नियमित रूप से भरपाई भी नहीं की जाती। कर्नाटक और पंजाब, दोनों को ही इस स्थिति से जूझना पड़ रहा है।यह भी पढ़ें - MTNL के बांड ब्याज का तत्काल भुगतान करने के लिए सरकार ने जमा किए 92 करोड़ रुपये
निगमों के कामकाज में पारदर्शिता की कमी
सड़क परिवहन निगमों के कामकाज में पारदर्शिता की कमी समस्या को बढ़ा रही है। रिपोर्ट के अनुसार किराये के पुनरीक्षण में डायनमिक यानी स्थिति के अनुरूप नीति बनाने की जरूरत है, लेकिन राज्य सरकारें इसकी अनदेखी कर रही हैं। कर्नाटक का मामला इसका उदाहरण है। चार साल पहले उसका सार्वजनिक परिवहन निगम अपने स्त्रोतों से लगभग तीन सौ करोड़ रुपये के फायदे में था, लेकिन पिछले साल सत्ता में आने के बाद सिद्दरमैया सरकार की ओर से महिलाओं को निशुल्क सफर की सुविधा देने के कारण अब उसे सौ करोड़ रुपये हर महीने नुकसान हो रहा है।
पिछले एक साल में महिला यात्रियों की संख्या बीस प्रतिशत बढ़ी है। वैसे तो कर्नाटक सरकार ने अभी घाटे की भरपाई के लिए किराया बढ़ाने के फैसले की घोषणा नहीं की है, लेकिन राज्य के चारों परिवहन निगमों ने इस आशय का प्रस्ताव पास किया है। कर्नाटक जैसी स्थिति पंजाब की भी है। राज्य सरकार ने पीआरटीएस को सब्सडी का पैसा मुहैया कराया है और इस साल बजट में भी इसके लिए 450 करोड़ रुपये रखे गए हैं, लेकिन घाटे की भरपाई नियमित नहीं हो पा रही है। अब राज्य सरकार उन विकल्पों पर विचार कर रही है जिनसे इस रियायत के लिए कुछ शर्तें निर्धारित की जा सकें। इसकी वजह भी है, क्योंकि परिवहन निगम की 80 प्रतिशत कमाई यात्रियों से मिलने वाले किराये से ही होती है।
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