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आम चुनाव से मिलेगी अर्थव्यवस्था को खुराक

नई दिल्ली [जाब्यू]। अगले वर्ष होने वाले आम चुनाव के बाद चाहे जिस पार्टी की सरकार केंद्र में बने लेकिन इतना तय है कि पूरी चुनावी प्रक्रिया देश की सुस्त अर्थव्यवस्था में नई जान फूंक सकती है। पिछले पांच लोकसभा चुनावों के अनुभव के आधार पर यह कहा जा सकता है कि आगामी आम चुनाव न सिर्फ आर्थिक विकास दर की गति तेज करेगा बल्कि रुपये को भी

By Edited By: Updated: Mon, 30 Mar 2015 06:40 PM (IST)
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नई दिल्ली [जाब्यू]। अगले वर्ष होने वाले आम चुनाव के बाद चाहे जिस पार्टी की सरकार केंद्र में बने लेकिन इतना तय है कि पूरी चुनावी प्रक्रिया देश की सुस्त अर्थव्यवस्था में नई जान फूंक सकती है। पिछले पांच लोकसभा चुनावों के अनुभव के आधार पर यह कहा जा सकता है कि आगामी आम चुनाव न सिर्फ आर्थिक विकास दर की गति तेज करेगा बल्कि रुपये को भी नई मजबूती दे सकता है। यह बात प्रमुख अंतरराष्ट्रीय वित्तीय एजेंसी डाएचे बैंक ने दी अपनी ताजा रिपोर्ट में कही है।

डाएचे से पहले गोल्डमैन सैक्श, नोमुरा जैसी अन्य अंतरराष्ट्रीय एजेंसी भी कह चुकी है कि अगले चुनाव के बाद ही भारतीय अर्थव्यवस्था की सुस्ती खत्म होगी। डाएचे की तरफ से भारतीय अर्थंव्यवस्था पर जारी रिपोर्ट में वर्ष 1996, 1998, 1999, 2004 और 2009 के आम चुनावों और उनके आर्थिक प्रभावों की समीक्षा की गई है। रिपोर्ट का लब्बोलुवाब यह है कि विश्व के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश में राजनीति काफी हद तक अर्थनीति को प्रभावित करती है। यह देखा गया है कि आम चुनाव से पहले निवेश कम हुआ है लेकिन चुनाव बाद निवेश बढ़ जाता है।

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डाएचे बैंक के मुताबिक चुनाव की अनिश्चितता को देखते हुए निवेशक व कंपनियां पैसा लगाना बंद कर देते हैं और राजनीतिक स्पष्टता का इंतजार करते हैं। चुनाव बाद निवेश चक्र फिर शुरू होता है जिससे अर्थव्यवस्था में तेजी आती है। बैंक का अनुमान है कि जैसे ही यह स्पष्ट होगा कि देश की बागडोर किसके हाथ में है, रुपया भी मजबूत होना शुरू हो जाएगा। आम चुनाव के बाद आर्थिक विकास दर में एक फीसद तक की वृद्धि संभावित है।

रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष 1998 के चुनाव को छोड़ दें तो वर्ष 1999, 2004 और 2009 के चुनाव के बाद भारत में काफी तेजी से विदेशी निवेश बढ़ने की प्रवृत्ति देखी गई। हालांकि, एक गंभीर ट्रेंड यह भी देखा गया है कि चुनाव से पहले महंगाई की दर कम हुई है लेकिन इसके बाद इसमें अच्छी खासी वृद्धि हुई है। मगर इस बार स्थिति बदल सकती है क्योंकि बेहतर मानसून, कच्चे तेल की कीमतों में संभावित कमी से महंगाई की स्थिति चुनाव बाद सुधर सकती है।