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खामियों को दूर करने के लिए सरकार PMFBY में कर रही बड़े बदलाव

सरकार पीएमएफबीवाई की सदस्यता लेने का फैसला पूरी तरह से किसानों पर ही छोड़ने की तैयारी कर रही है। इसके लिए योजना में कुछ महत्वपूर्ण बदलाव किए जाने पर विचार हो रहा है।

By Pawan JayaswalEdited By: Updated: Wed, 17 Jul 2019 09:40 AM (IST)
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खामियों को दूर करने के लिए सरकार PMFBY में कर रही बड़े बदलाव

नई दिल्ली, बिजनेस डेस्क। केंद्र सरकार प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (पीएमएफबीवाई) की सदस्यता लेने का फैसला पूरी तरह से किसानों पर ही छोड़ने की तैयारी कर रही है। इसके लिए योजना में कुछ महत्वपूर्ण बदलाव किए जाने पर विचार हो रहा है। एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने सोमवार को कहा कि योजना में प्रस्तावित बदलावों में सभी किसानों के लिए फसल बीमा को वैकल्पिक बनाना, ऊंचे प्रीमियम वाले फसलों को योजना से बाहर करना और राज्यों को उनकी पसंद के उत्पाद जोड़ने की अनुमति देना भी शामिल है। प्रस्तावित बदलावों पर राज्यों की राय मांगी गई है।

अधिकारी ने कहा कि कृषि मंत्रालय ने ‘स्टेट लेवल कॉर्पस फंड’ स्थापित करने का भी प्रस्ताव रखा है। इसके अलावा बचत को एक राष्ट्रीय स्तर के इंश्योरेंस रिस्क पूल में स्थानांतरित करने का भी प्रस्ताव है, ताकि आम लोगों की इस धारणा को दूर किया जा सके कि इस योजना से बीमा कंपनियां फायदा उठा रही हैं। इसके अलावा प्रीमियम की अधिकतम सीमा का भी प्रस्ताव है। इसके तहत किसी फसल के लिए सींचित क्षेत्र यदि 50 फीसद से अधिक होगा, तो अधिकतम प्रीमियम 25 फीसद होगा। प्रीमियम की दर में सालाना आधार पर संशोधन होगा। किसी फसल के लिए सींचित क्षेत्र यदि 50 फीसद से कम होगा, तो उस फसल के लिए अधिकतम प्रीमियम 30 फीसद तय करने का प्रस्ताव है।

पीएमएफबीवाई की शुरुआत अप्रैल 2016 में हुई थी। इसके तहत बोआई के पहले से लेकर फसल की कटाई के बाद तक के लिए अपरिहार्य प्राकृतिक आपदाओं के विरुद्ध व्यापक फसल बीमा उपलब्ध कराया जाता है। खरीफ फसलों के लिए इसका प्रीमियम दो फीसद, रबी फसलों के लिए 1.5 फीसद और बागवानी व वाणिज्यिक फसलों के लिए पांच फीसद है। मंत्रालय ने इस योजना में आने वाली अड़चनों को दूर करने के लिए कई बदलाव करने का प्रस्ताव रखा है और इस पर राज्यों की राय मांगी है।

प्रमुख प्रस्तावित बदलावों में कर्ज लेने वाले किसानों सहित सभी किसानों के लिए योजना को वैकल्पिक बनाने का सुझाव है। इसका कारण यह है कि कर्ज लेने वाले किसानों की अनिवार्य सदस्यता के प्रावधान के कारण इस योजना के प्रति असंतोष बढ़ रहा था। मंत्रलय ने फसल को हुए नुकसान का आकलन करने के लिए उपज का मूल्यांकन करने की दो चरणों वाली प्रक्रिया का भी सुझाव दिया है।