Green Hydrogen Mission: 40 अड़चनों की हुई पहचान, दूर करने को बनी 15 वर्षीय रणनीति
चूंकि ग्रीन हाइड्रोजन को लेकर दुनिया के कई देशों में शोध चल रहा है और इससे जुड़ी प्रौद्योगिकी अभी बहुत ही शुरुआती स्तर पर है इसलिए यह माना गया कि भारत के पास इस क्षेत्र में अगुवा बनने का मौका है। ऐसे में ग्रीन हाइड्रोजन मिशन से जुड़ी ऐसी परियोजनाओं का चयन किया गया है जिन्हें मिशन मोड में पांच वर्षों के तहत पूरा किया जाना है।
जयप्रकाश रंजन, नई दिल्ली। कैबिनेट की तरफ से जनवरी, 2023 में मंजूरी ग्रीन हाइड्रोडन मिशन के लक्ष्यों के जरिए देश में पर्यावरण संतुलन स्थापित करने की राह इतनी आसान नहीं होगी। केंद्र सरकार ने ग्रीन हाइड्रोजन मिशन की राह की 40 अड़चनों को चिन्हित कर लिया है और उन्हें चरणबद्ध तरीके से दूर करने की मसौदा भी तैयार कर लिया है। नवीन व नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय (एमएनआरई) ने इन 40 अड़चनों को 15 वर्षों में दूर कर ग्रीन हाइड्रोजन को सफल बनाने की योजना बनाई है।
इन अड़चनों को दूर करने के लिए जो प्रोजेक्ट तैयार किये जा रहे हैं उन्हें अलग अलग अवधि में पूरा करने की योजना है। इनमें से कुछ को पांच वर्षों के भीतर तो कुछ को आठ वर्षों मे और अंतिम अड़चनों को 15 वर्षों में पूरा किया जाएगा। इन अड़चनों के समाप्त होने से ना सिर्फ भारत के भीतर बड़े स्तर पर ग्रीन हाइड्रोजन के इस्तेमाल से पर्यावरण में सुधार की प्रक्रिया शुरु हो जाएगी बल्कि भारत इस नये उभरते ऊर्जा सेक्टर में एक वैश्विक केंद्र के तौर पर भी स्थापित हो सकता है।
ग्रीन हाइड्रोजन मिशन की तैयारियों को लेकर हुई उच्चस्तरीय बैठक
गुरुवार को बिजली व एमएनआरई मंत्री आर के सिंह ने ग्रीन हाइड्रोजन मिशन की तैयारियों को लेकर एक उच्चस्तरीय समीक्षा बैठक की। भारत सरकार के प्रमुख विज्ञान सलाहकार अजय सूद, एमएनआरई सचिव बी एस भल्ला के अलावा उद्योग जगत, इस क्षेत्र के विशेषज्ञों के अलावा आइआइटी दिल्ली, आइआइटी मुंबई, आइआइटी इंदौर, आइआइटी पटना, आइआइटी कानपुर, इंडियन आयल कार्पोरेशन, बीएचईएल, बीपीसीएसल, भाभा आटोमिक रिसर्च सेंटर, डीआरडीओ समेत दूसरे कई शैक्षणिक संस्थानों व सरकारी उपक्रमों के प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया। इसमें मुख्य तौर पर ग्रीन हाइड्रोजन मिशन की तैयारियों को लेकर चर्चा हुई।ग्रीन हाइड्रोजन के विस्तार के लिए अभी बहुत कुछ किया जाना बाकी
मोटे तौर पर बैठक में यह बात सामने आइ कि भारत की इकोनमी में ग्रीन हाइड्रोजन के विस्तार के लिए अभी बहुत सारे कदम उठाने की आवश्यकता है और इसके लिए दर्जनों विभागों व मंत्रालयों के बीच जबरदस्त सामंजस्य की जरूरत है। इसमें भारी-भरकम निवेश भी करना होगा। इसके लिए निजी सेक्टर की भागीदारी भी बढ़ानी होगी।इस क्रम में मंत्रालय की तरफ से व्यापक विमर्श के बाद तैयार यह प्रजेंटेशन दिया गया जिसमें 40 प्रमुख अड़चनों के बारे में बताया गया। ये अड़चनें उत्पादन, स्टोरेड, ट्रांसपोर्ट, सुरक्षा जैसे क्षेत्रों में है।
कई देशों में चल रहे शोध
चूंकि ग्रीन हाइड्रोजन को लेकर दुनिया के कई देशों में शोध चल रहा है और इससे जुड़ी प्रौद्योगिकी अभी बहुत ही शुरुआती स्तर पर है इसलिए यह माना गया कि भारत के पास इस क्षेत्र में अगुवा बनने का मौका है। ऐसे में ग्रीन हाइड्रोजन मिशन से जुड़ी ऐसी परियोजनाओं का चयन किया गया है जिन्हें मिशन मोड में पांच वर्षों के तहत पूरा किया जाना है।इलेक्ट्रोलाइजर्स की क्षमता को बढ़ाना सबसे ज्यादा जरूरी
यह बात भी सामने आइ कि इलेक्ट्रोलाइजर्स की क्षमता को बढ़ाने पर सबसे ज्यादा ध्यान देने की जरूरत है। इसके बगैर ग्रीन हाइड्रोजन की कीमत को कम करना मुश्किल होगा। सनद रहे कि पिछले वर्ष की शुरुआत में केंद्र सरकार ने जिस ग्रीन हाइड्रोजन मिशन को मंजूरी दी थी उसके तहत वर्ष 2030 तक देश में ग्रीन हाइड्रोजन उत्पादन की क्षमता 50 लाख टन सालाना करने का लक्ष्य रखा गया है। तब तक ग्रीन हाइड्रोजन के घरेलू इस्तेमाल को बढ़ावा दे कर विदेशों से एक लाख करोड़ रुपये के ईंधन आयात को कम करने का भी लक्ष्य रखा गया है। सरकार की तरफ से बताया गया था कि इस सेक्टर में अगले छह-सात वर्षों में आठ लाख करोड़ रुपये का निवेश होगा और छह लाख लोगों को रोजगार मिलेगा।