GST on Hotel Rooms: होटल में 1000 रुपए से कम किराए वाले कमरे पर लग सकता है जीएसटी
जीएसटी के चार स्लैब पांच 12 18 व 28 को बदलने की मंशा जाहिर की गई है लेकिन महंगाई को देखते हुए जीएसटी दरों के स्लैब में फिलहाल बदलाव संभव नहीं है। 28-29 जून को जीएसटी काउंसिल की बैठक में क्षतिपूर्ति सेस को लेकर राज्य जोरदार आवाज उठाएंगे।
By Praveen Prasad SinghEdited By: Updated: Fri, 24 Jun 2022 08:33 AM (IST)
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली: होटल में 1000 रुपए से कम किराए वाले कमरे लेने पर भी जीएसटी देना पड़ सकता है। वहीं निजी अस्पताल में इलाज के दौरान प्रतिदिन 5000 रुपए से अधिक किराए वाले कमरे पर भी जीएसटी लग सकता है। आगामी 28-29 जून को चंडीगढ़ में होने वाली जीएसटी काउंसिल की बैठक में इन सिफारिशों पर विचार किया जाएगा। जीएसटी काउंसिल के मंत्रियों के समूह (जीओएम) ने सेवा सेक्टर में जीएसटी के दायरे को बढ़ाने के लिए इस प्रकार की कई सिफारिश की हैं।
- आरबीआइ की तरफ से बैंक और अन्य वित्तीय संस्थाओं को दी जाने वाली सेवाओं के साथ इंश्योरेंस नियामक प्राधिकरण से जुड़ी सेवाओं को भी जीएसटी के दायरे में लाने की सिफारिश की गई है।
- कर्नाटक के मुख्यमंत्री एवं वित्त मंत्री बी.बोम्मई के नेतृत्व में जीओएम का गठन किया गया था।
- काउंसिल की बैठक में जीओएम की रिपोर्ट सार्वजनिक की जाएगी। जीओएम ने इंवर्टेड ड्यूटी स्ट्रक्चर को तार्किक बनाने के उद्देश्य से कई वस्तुओं की जीएसटी दरों में भी बदलाव की सिफारिश की है।
- वहीं जीएसटी के चार स्लैब पांच, 12, 18 व 28 को भी बदलने की मंशा जाहिर की गई है। लेकिन खुदरा महंगाई दर में बढ़ोतरी को देखते हुए वस्तुओं की जीएसटी दर या जीएसटी स्लैब में बदलाव की कोई संभावना नहीं है। सरकार फिलहाल किसी भी उस वस्तु की जीएसटी दरों में बदलाव नहीं करेगी जिससे महंगाई को हवा मिल सके। लेकिन सेवा सेक्टर से जुड़ी सिफारिशों पर फैसला किया जा सकता है।
- सूत्रों के मुताबिक अभी होटल में 1000 रुपए से कम किराए वाले कमरे पर जीएसटी नहीं लगने का नाजायज फायदा उठाया जा रहा है। 1001-7500 रुपए किराए वाले कमरे पर 12 फीसद जीएसटी लगता है। लेकिन कई बार होटल मालिक ग्राहक से नकद में भुगतान लेकर 2500-3000 रुपए किराए वाले कमरे का किराया 1000 रुपए से कम दिखाकर जीएसटी की चोरी कर लेता है। इससे होटल मालिक अपनी आय को भी कम दिखाने में सफल हो जाता है।
राज्य उठाएंगे क्षतिपूर्ति सेस का मुद्दा
जीएसटी काउंसिल की बैठक में राज्य क्षतिपूर्ति सेस को जारी रखने का भी मुद्दा जमकर उठाएंगे। एक जुलाई, 2017 से जीएसटी की शुरुआत से पांच साल तक राज्यों को जीएसटी लागू करने से होने वाले नुकसान की क्षतिपूर्ति के लिए सेस लगाने का फैसला किया गया था। अब जुलाई में पांच साल पूरे हो रहे हैं, इसलिए क्षतिपूर्ति सेस राज्यों को मिलना बंद हो सकता है। हालांकि केंद्र का कहना है कि क्षतिपूर्ति सेस को वर्ष 2026 तक जारी रखा जाएगा। कोरोना काल में राज्यों की क्षतिपूर्ति में कमी रह गई थी और उसे पूरा करने के लिए केंद्र ने राज्यों के नाम पर आरबीआइ से कर्ज लिया। क्षतिपूर्ति के नाम पर वसूले जाने वाले सेस से अब उस कर्ज को चुकाने का काम किया जाएगा। इसलिए राज्यों को सीधे तौर सेस की कोई राशि नहीं मिलेगी।
यह सेस मुख्य रूप से ऑटोमोबाइल्स और तंबाकू जैसे आइटम पर वसूले जाते हैं। सेस अगर हट जाता तो कई गाडि़यों की कीमतें 20 फीसद तक कम हो सकती थी। क्योंकि गाडि़यों पर एक फीसद से लेकर 20 फीसद तक सेस लगता है। तभी अप्रत्यक्ष कर विशेषज्ञ डेलॉयट के पार्टनर एम.एस.मनी कहते हैं कि राज्यों के राजस्व को सुरक्षित करने के उद्देश्य से पांच साल के लिए क्षतिपूर्ति सेस लगाया गया था। अब 30 जून के बाद इसे बढ़ाए जाने से क्षतिपूर्ति सेस से प्रभावित कारोबार के लिए ¨चता का विषय हो सकता है।