हेल्थ इंश्योरेंस लेते समय पुरानी बीमारी छिपाना पड़ सकता है भारी
स्वास्थ्य बीमा खरीदते समय मधुमेह और रक्तचाप (बीपी) जैसी अन्य पुरानी स्थितियों को छिपाना आपके लिए महंगा पड़ सकता है। इस आधार पर बीमा कंपनियां क्षति के लिए मुआवजा देने से इनकार कर सकती हैं और यहां तक कि बीमा अनुबंध भी समाप्त कर सकती हैं। हाल में हुए पॉलिसीबाजार सर्वेक्षण के अनुसार 25 प्रतिशत स्वास्थ्य बीमा आवेदन पुरानी बीमारियों को छिपाने के आधार पर खारिज कर दिए जाते हैं।
By Jagran NewsEdited By: Ankita PandeyUpdated: Sat, 25 Nov 2023 09:00 PM (IST)
राजीव कुमार, नई दिल्ली। हेल्थ इंश्योरेंस उत्पाद की खरीदारी के दौरान शुगर व ब्लड प्रेशर (बीपी) जैसी अन्य पुरानी बीमारियों को छिपाना भारी पड़ सकता है। इस आधार पर इंश्योरेंस कंपनियां क्लेम को खारिज कर सकती है और प्रीमियम का पैसा जब्त कर इंश्योरेंस पॉलिसी भी रद कर सकती है।
पॉलिसी बाजार के हालिया सर्वे के मुताबिक हेल्थ इंश्योरेंस के जितने क्लेम खारिज होते हैं, उनमें 25 प्रतिशत का आधार पुरानी बीमारियों को छिपाना होता है।
वहीं 50 प्रतिशत क्लेम इंश्योरेंस उत्पाद की सीमित समझ की वजह से खारिज होते हैं। कंपनी ने यह खुलासा इस साल अप्रैल से सितंबर के बीच दो लाख क्लेम में से 30 हजार अस्वीकृत क्लेम के विश्लेषण के बाद किया है। जानकारों के मुताबिक हेल्थ इंश्योरेंस के उत्पादों को लेकर उपभोक्ताओं की समझ सीमित होती है और कई बार वह ऐसी गलती कर बैठते हैं जिसका खामियाजा उन्हें भुगतना पड़ता है।
उदाहरण के लिए कई ऐसी बीमारी होती है जिनके क्लेम में वेटिंग पीरियड होता है। यह वेटिंग पीरियड एक माह, दो साल और चार साल तक का हो सकता है जो बीमारी पर निर्भर करता है। मान लीजिए अगर स्टोन की बीमारी का वेटिंग पीरियड दो साल का है तो इंश्योरेंस लेने के दो साल के बाद ही स्टोन के इलाज का क्लेम कंपनी देगी।
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पॉलिसी बाजार के सर्वे में पाया गया कि 18 प्रतिशत से अधिक क्लेम वेटिंग पीरियड पूरा न होने की वजह से खारिज कर दिए जाते हैं। मतलब क्लेम वेटिंग पीरियड पूरा होने के पहले फाइल किया गया था।सर्वे में पाया गया कि 25 प्रतिशत क्लेम इसलिए खारिज हुए क्योंकि वे कवरेज से बाहर के थे। कई बार इंश्योरेंस उत्पाद में डे केयर या ओपीडी कवरेज शामिल नहीं होता है, लेकिन उपभोक्ता उसका क्लेम भी कर देते हैं। इसलिए जरूरी है कि इंश्योरेंस खरीदने वाले कवरेज के दायरे को ठीक से समझ ले। इलाज कराने से पहले पॉलिसी दस्तावेजों को सही से पढ़ने और समझने से इस प्रकार की अस्वीकृति को कम किया जा सकता है।
4.5 प्रतिशत क्लेम गलत तरीके से फाइल करने के कारण खारिज कर दिए जाते हैं। सर्वे में पाया गया कि 50 लाख से एक करोड़ वाले हेल्थ इंश्योरेंस में क्लेम खारिज करने का प्रतिशत पांच लाख तक के इंश्योरेंस की तुलना में काफी कम था।पॉलिसी बाजार के हेड हेल्थ इंश्योरेंस अमित छाबड़ा के मुताबिक अक्सर लोग हेल्थ इंश्योरेंस लेते समय पहले से मौजूद बीमारी को छिपा लेते हैं। हेल्थ इंश्योरेंस खरीदते समय प्रत्येक व्यक्ति को अपनी मेडिकल हिस्ट्री की पूरी जानकारी बीमा कंपनियों को देनी चाहिए। उन्होंने कहा कि क्लेम फाइल करते समय सावधानीपूर्वक संपूर्ण जानकारी प्रदान करनी चाहिए ताकि क्लेम खारिज नहीं हो।
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