खाद्य कीमतों का ऊंचा रहना खुदरा महंगाई की कमी में बड़ी रुकावट, अब मानसून पर टिकी हैं उम्मीदें
एमपीसी मीटिंग में RBI गवर्नर शक्तिकांत दास ने कहा था कि खुदरा मुद्रास्फीति में धीमी गति से कमी आने की प्रमुख वजह खाद्य कीमतों का ऊंचा रहना है। MPC की बैठक में नीतिगत दरों को 6.50 प्रतिशत पर बनाए रखने के लिए सदस्यों ने मतदान किया था। चार सदस्यों ने रेपो रेट को यथावत रखने के पक्ष में मतदान किया था जबकि दो सदस्यों ने इसका विरोध किया था।
पीटीआई, नई दिल्ली। मॉनिटरी पॉलिसी कमेटी (एमपीसी) की बैठक में रिजर्व बैंक (आरबीआई) गवर्नर शक्तिकांत दास ने कहा था कि खुदरा मुद्रास्फीति में धीमी गति से कमी आने की प्रमुख वजह खाद्य कीमतों का ऊंचा रहना है। इस महीने की शुरुआत में हुई एमपीसी की बैठक में नीतिगत दरों को 6.50 प्रतिशत पर बनाए रखने के लिए सदस्यों ने मतदान किया था। चार सदस्यों ने रेपो रेट को यथावत रखने के पक्ष में मतदान किया था जबकि दो सदस्यों ने इसका विरोध किया था।
एमपीसी बैठक के मिनट्स के अनुसार, 'दास ने कहा था कि खुदरा मुद्रास्फीति कम हो रही है, लेकिन इसकी गति बहुत धीमी है और इसका प्रमुख कारण खाद्य मुद्रास्फीति में उस अनुपात में कमी नहीं आना है।' उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि सामान्य मानसून अंतत: प्रमुख खाद्य वस्तुओं के मूल्य दबाव को कम कर सकता है। बड़े अनुकूल आधार प्रभावों के कारण जून तिमाही में मुद्रास्फीति अस्थायी रूप से और एक बार लक्ष्य दर से नीचे जा सकती है, लेकिन चालू वित्त वर्ष की तीसरी और चौथी तिमाही में यह बार फिर से बढ़ सकती है।
एमपीसी के सदस्य शशांक भिडे, राजीव रंजन (आरबीआई के कार्यकारी निदेशक), माइकल देबव्रत पात्रा (आरबीआई के डिप्टी गवर्नर) और दास ने नीतिगत रेपो दर को 6.50 प्रतिशत पर अपरिवर्तित रखने के लिए मतदान किया था। एमपीसी के बाहरी सदस्यों आशिमा गोयल और जयंत आर वर्मा ने नीतिगत दरों को 25 आधार अंकों तक कम करने के पक्ष में मतदान किया था।
RBI कमेटी के दो मेंबर ने ऐसे वक्त में रेट कट की वकालत की है, जब स्विट्जरलैंड, स्वीडन, कनाडा और यूरोपीय क्षेत्र की कुछ विकसित अर्थव्यवस्थाओं ने पहले ही 2024 के दौरान ब्याज दरों में रियायत देने का सिलसिला शुरू कर दिया है। दूसरी ओर अमेरिका में ब्याज दरों में कटौती की उम्मीदें कम हो गई हैं, जो पहले अधिक थीं।
आरबीआई गवर्नर शक्तिकांत दास ने मॉनिटरी पॉलिसी का फैसला सुनाते कहा कि एक राय यह है कि मौद्रिक नीति के मामले में बैंक का सिद्धांत ही यही है कि 'फॉलो द फेड' यानी अमेरिका के केंद्रीय बैंक फेडरल रिजर्व के फैसलों के हिसाब से चलो। लेकिन, असल में ऐसा है नहीं।
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