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Union Budget लीक हुआ और बदल गई पूरी परंपरा; जानिए उस 'अनोखे' बजट की पूरी कहानी

भारत में आजादी के बाद पहले जो तीन बजट पेश हुए उनमें से दो का कुछ अहम हिस्सा लीक हो गया। यह सरकार के लिए बड़ी चिंता की बात थी। इसके बाद बजट की गोपनीयता को सुनिश्चित करने के लिए कई सख्त कदम उठाए गए। बजट छपने वाली जगह बदली गई। बजट टीम की कड़ी निगरानी की व्यवस्था की गई।

By Suneel Kumar Edited By: Suneel Kumar Updated: Sun, 23 Jun 2024 09:00 AM (IST)
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तत्कालीन वित्त मंत्री जॉन मथाई पर आरोप लगा कि वह 'बड़ी शक्तियों' के हित साध रहे हैं।
बिजनेस डेस्क, नई दिल्ली। साल 1950 की बात है। केंद्रीय बजट पेश करने की तैयारी जोरों पर थी। देश को आजाद हुए चंद साल ही हुए थे। नीति-निर्माण की शुरुआत होनी थी। देश के विकास की दिशा तय करनी थी। इन सब वजहों से बजट की अहमियत काफी ज्यादा थी। बजट पेश करने की जिम्मेदारी वित्त मंत्री जॉन मथाई पर थी, जो इससे पहले 1949-50 का बजट पेश कर चुके थे।

लेकिन, अपना दूसरा बजट पेश करने से पहले जॉन मथाई को शायद तनिक अंदाजा भी नहीं रहा होगा कि यह उनका बतौर वित्त मंत्री आखिरी बजट साबित होगा। जब वह बजट पेश करने संसद जा रहे थे, तभी पता चला कि बजट के कुछ हिस्से पहले ही लीक हो गए। जब मथाई संसद पहुंचे, तो विपक्षी सदस्यों ने जमकर हंगामा किया। उन्होंने मथाई पर कई गंभीर आरोप लगाते हुए इस्तीफा देने की मांग की।

मथाई पर आरोप लगा कि वह 'बड़ी शक्तियों' के हित साध रहे हैं। उनके खिलाफ प्रदर्शन भी हुए। वह आजादी के शुरुआती साल ही थे। प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू नहीं चाहते थे कि उनकी सरकार इस तरह के आरोपों के साथ आगे बढ़े। लिहाजा, मथाई का दूसरा बजट ही उनका आखिरी बजट साबित हुआ और उसके बाद उन्हें वित्त मंत्री का पद छोड़ना पड़ गया।

बजट लीक होने के बाद क्या हुआ?

वैसे यह पहला मौका नहीं था, जब देश का केंद्रीय बजट लीक हुआ हो। आजाद भारत का पहला बजट (1947-1948) केंद्रीय वित्त मंत्री सर आरके षणमुखम चेट्टी ने पेश किया। वह ब्रिटिश समर्थक जस्टिस पार्टी के नेता थे। लेकिन, बजट से पहले ब्रिटेन के वित्त मंत्री ह्यूग डाल्टन ने एक पत्रकार से बातचीत में टैक्स में कुछ बदलावों के बारे में बता दिया, जो भारत सरकार करने वाली थी। पत्रकार ने संसद में बजट भाषण से पहले यह बात छाप दी।

यह सरकार के लिए गंभीर चिंता की बात थी कि तीन में से दो बजट पेश होने से पहले ही लीक हो गए। ऐसे में उच्च स्तर पर विचार-विमर्श हुआ कि किस तरह से बजट की गोपनीयता को बरकरार रखा जाए, क्योंकि इससे आम जनता से बड़े औद्योगिक घराने के हित जुड़े रहते हैं। इसके लगातार लीक होने से सरकार की छवि तो खराब होगी ही, आम जनता से लेकर कारोबारियों का हित प्रभावित होगा।

गोपनीयता के लिए क्या किया गया?

सबसे पहले सरकार ने इस बात पर विचार किया कि बजट कैसे लीक हुआ था। उस वक्त केंद्रीय बजट राष्ट्रपति भवन में छपता था। वहीं से उसका एक हिस्सा लीक हुआ था। ऐसे में फैसला किया गया कि बजट छापने के लिए अलग बंदोबस्त होना चाहिए। इसके बाद प्रिंटिंग के वेन्‍यू को बदला गया और नई दिल्‍ली के मिंटो रोड में बजट छापा जाने लगा।

1951 से 1980 तक बजट की छपाई मिंटो रोड वाली प्रेस में होती थी। फिर पुराने संसद भवन में वित्त मंत्रालय के मुख्यालय नॉर्थ ब्लॉक के बेसमेंट में एक सरकारी प्रेस लगाई गई, ताकि बजट लीक होने की जो थोड़ी-बहुत आशंका है, उसे भी खत्म किया जाए।

बजट से पहले क्वारंटीन का पालन

बजट पेश होने से कुछ हफ्ते वित्त मंत्रालय के दफ्तर को पूरी तरह से क्वारंटीन कर दिया जाता है। वहां मीडिया और किसी भी अन्य आगंतुक के प्रवेश पर सख्त रोक होती है। इस दौरान वित्त मंत्रालय के अधिकारियों और कर्मचारियों के साथ पूरी बजट टीम को किसी से बात करने की इजाजत नहीं होती। यहां तक कि अपने परिजनों से भी नहीं। अगर कोई इमरजेंसी है, तो उनके परिवारवाले सिर्फ एक खास नंबर पर संदेश छोड़ सकते हैं। वे सीधे उनसे बात नहीं कर सकते।

इस दौरान वित्त मंत्रालय के एंट्री और एग्जिट गेट पर सख्त सुरक्षा व्यवस्था रहती है। बजट बनाने में शामिल लोगों पर भी दिल्ली पुलिस की मदद से इंटेलिजेंस ब्यूरो कड़ी नजर रखता है। संयुक्त सचिव की अध्यक्षता में एक खुफिया टीम बजट बनाने की प्रक्रिया में शामिल अधिकारियों निगरानी करती है, उनके फोन कॉल पर भी नजर रखी जाती है। जब वित्त मंत्री का संसद में बजट भाषण खत्म होता है, तभी उन्हें सार्वजनिक जीवन में वापस आने की इजाजत होती है।

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