फल, सब्जी या डेयरी प्रोडक्ट्स के दाम बढ़ने पर किसानों को कितना मिलता है फायदा?
रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने एक दिलचस्प रिपोर्ट पेश की है। इसमें बताया गया है कि किसी कृषि उत्पाद को बेचने पर किसान को कितना हिस्सा मिलता है। रिपोर्ट के मुताबिक एक आम ग्राहक अगर एक किलो आलू के लिए 100 रुपये का भुगतान किया है तो इसमें से 36.7 रुपये किसान को 16.2 रुपये ट्रेडर्स को 16 रुपये थोक विक्रेता को और 31 रुपये खुदरा दुकानदार को मिलता है।
जयप्रकाश रंजन, नई दिल्ली। बाजार में टमाटर की खुदरा कीमत 70-90 रुपये प्रति किलो है लेकिन इसकी पैदावार करने वाले किसान को इसका अधिकतम 33 फीसद ही मिलता है। इसी तरह से आलू की खुदरा कीमत में 37 फीसद, प्याज की खुदरा कीमत का 36 फीसद ही किसानों को मिलता है। यह बात आरबीआई की तरफ से गुरुवार को जारी एक अध्ययन पत्र में कही गई है।
अब जबकि खाद्य उत्पादों की महंगाई से आरबीआई का महंगाई प्रबंधन कई बार असफल हो जाता है तब उसने 12 प्रमुख खाद्य उत्पादों की खुदरा कीमतों और इससे जुड़े सभी आयामों पर चार अध्ययन रिपोर्टें प्रकाशित की है। यह बताती है कि टमाटर, आलू, प्याज, केला, आम, अंगूर, चना, तूर, मूंग, दूध, पौल्ट्री उत्पाद व अंडे की खुदरा कीमतें जब बढ़ती हैं तो किसानों को उस हिसाब से बहुत फायदा नहीं होता।
ये रिपोर्टें यह भी बताती हैं कि आम खाद्य उत्पादों के मुकाबले अगले दलहन व पौल्ट्री या दूध से जुड़े किसानों की खुदरा कीमतों में हिस्सेदारी ज्यादा होती है। मसलन, दूध की खुदरा कीमत में किसानों की हिस्सेदारी 70 फीसदी, पौल्ट्री उत्पादों में 56 फीसद और अंडा में 75 फीसद तक होती है।
इसी तरह से चना की खुदरा कीमत में किसानों को 75 फीसद, मूंग में 70 फीसद और तुर में 65 फीसद हिस्सा किसानों को होता है। यानी दूसरे शब्दों में कहें तो प्रोटीन आधारित उत्पादों में जब भी कीमतें बढ़ेंगी तो किसानों को उसी हिसाब से ज्यादा फायदा होगा।
इसी तरह से केला की खुदरा कीमत का 31 फीसद, अंगूर का 35 फीसद और आम की कीमतों का 45 फीसद किसानों को मिलता है। हाल के वर्षों में यह देखा जा रहा है कि खाद्य उत्पादों की महंगाई की वजह से समूचे महंगाई के हिसाब-किताब में गड़बड़ी हो जाती है। यही वजह है कि आरबीआई ने खाद्य महंगाई पर ज्यादा तवज्जो देना शुरू किया है।
हालांकि खाद्य उत्पादों की महंगाई को थामने में आरबीआई की भूमिका बहुत ही सीमित होती है। रिपोर्ट में आलू की कीमतों की स्थिति को देखें तो यह बात सामने आती है कि एक आम ग्राहक अगर एक किलो आलू के लिए 100 रुपये का भुगतान किया है तो इसमें से 36.7 रुपये किसान को मिला है, 16.2 रुपये ट्रेडर्स को मिला, 16 रुपये थोक विक्रेता को मिलता है और 31 रुपये खुदरा दुकानदार को मिलता है।
प्याज को लेकर कमोबेश यही स्थिति है। यहां किसानों को 36.2 फीसद, ट्रेडर्स को 17.6 फीसद, थोक विक्रेता को 15 फीसद और रिटलर्स को 31.3 फीसद मिलता है। किसानों को ढुलाई आदि का खर्च भी वहन करना पड़ता है। रिपोर्ट में टमाटर, प्याज व आलू (टॉप) की कीमतों में स्थिरता बनाये रखने के लिए देश में ज्यादा से ज्यादा किसान उत्पादक संगठन (एफपीओ) स्थापित करने, कृषि उत्पादों की मार्के¨टग में सुधार करने, फ्यूचर ट्रेडिंग शुरू करने का सुझाव दिया गया है।
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