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IDBI Bank में सरकारी हिस्सेदारी की बिक्री, कैसे पूरा होगा विनिवेश, बैंकिंग सेक्टर पर क्या होगा इसका असर

IDBI Bank privatization सरकार ने शुक्रवार को आईडीबीआई बैंक के विनिवेश की प्रक्रिया शुरू कर दी। सरकार और एलआईसी सामूहिक रूप से बैंक में 60.72 प्रतिशत हिस्सेदारी बेचेंगे। लेकिन इन सबके बीच बड़ा सवाल ये है कि क्या यह विनिवेश इस वित्त वर्ष में पूरा होगा!

By Siddharth PriyadarshiEdited By: Updated: Sat, 08 Oct 2022 10:44 PM (IST)
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IDBI Bank: How will IDBI Bank privatization going to impact banking industry
नई दिल्ली, बिजनेस डेस्क। IDBI Bank Privatization: सरकार ने शुक्रवार को आईडीबीआई बैंक (IDBI Bank) के रणनीतिक विनिवेश की शुरुआत कर दी। बोलीदाताओं से इस डील के लिए बोलियां आमंत्रित की गई हैं। इसके तहत सरकार और एलआईसी एक साथ 60.72% हिस्सेदारी को बेच देंगे। सार्वजनिक क्षेत्र के किसी बैंक के निजीकरण का यह पहला मामला है। सरकार इसके लिए दो चरणों की प्रक्रिया का पालन करेगी।

पहले चरण में पात्रता मानदंडों को पूरा करने वाले बोलीदाताओं को भारतीय रिजर्व बैंक से 'फिट और उचित' असेसमेंट की मंजूरी की जरूरत होगी। इसके अलावा उन्हें गृह मंत्रालय द्वारा सुरक्षा मंजूरी भी चाहिए होगी। पहले चरण को पूरा करने के बाद योग्य बोलीदाताओं को एक गोपनीय प्रक्रिया के तहत चरण दो में प्रवेश करने की अनुमति दी जाएगी, जहां वित्तीय बोलियां मांगी जाएंगी।

क्या होगी विनिवेश की प्रक्रिया

निवेश और सार्वजनिक संपत्ति प्रबंधन विभाग (DIPAM) जो ऐसे लेन-देन की प्रक्रिया और इच्छुक बोलीदाताओं के लिए मानदंड की रूपरेखा तैयार करता है, द्वारा जारी प्रारंभिक सूचना के अनुसार LIC बैंक में अपनी 49.24% हिस्सेदारी में से 30.24 प्रतिशत को कम करेगी, जबकि सरकार अपनी 45.48% हिस्सेदारी में से 30.48 फीसदी को कम करेगी। संभावित दावेदारों को बोली लगाने के लिए 16 दिसंबर की समय सीमा दी गई है।

बोली लगाने की इच्छुक पार्टियों के पास लेटेस्ट ऑडिटेड फाइनेंशियल ड्राफ्ट के अनुसार मिनिमम नेटवर्थ 22,500 करोड़ या 2.85 बिलियन डॉलर होनी चाहिए। उन्हें पिछले तीन वित्तीय वर्ष के लाभ और हानि विवरण भी जमा करने होंगे। सूचीबद्ध निजी क्षेत्र की बैंकिंग कंपनियों, विदेशी बैंकों, आरबीआई के साथ पंजीकृत गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों, सेबी में पंजीकृत आईएएफ को बोली प्रक्रिया में भाग लेने की अनुमति दी जाएगी।

क्यों हो रहा है आईडीबीआई का विनिवेश

आईडीबीआई बैंक मई 2017 से मार्च 2021 तक भारतीय रिजर्व बैंक के पीसीए ढांचे के तहत था। बैंक के ढांचे से बाहर निकलने के दो महीने बाद आर्थिक मामलों की कैबिनेट समिति ने इसके विनिवेश की सैद्धांतिक मंजूरी दे दी। आईडीबीआई बैंक की बिक्री अगर यह इस वित्तीय वर्ष में पूरी होती है तो यह वित्त वर्ष 23 के लिए निर्धारित विनिवेश लक्ष्य 65,000 करोड़ में एक अहम योगदान होगा। सरकार पहले ही 24,544 करोड़ रुपये जुटा चुकी है, जिसमें से अधिकांश मई में देश की सबसे बड़ी बीमा कंपनी एलआईसी की लिस्टिंग से हासिल हुआ है।

1964 में एक विकास वित्तीय संस्थान के रूप में स्थापित भारतीय औद्योगिक विकास बैंक को 2004 में एक कमर्शियल बैंक में बदल दिया गया था। यह कॉर्पोरेट क्रेडिट स्पेस में एक अग्रणी खिलाड़ी था। होम लोन से लेकर एटीएम कार्ड तक, आईडीबीआई बैंक खुदरा बैंकिंग में काफी आगे था। लेकिन 2014 से बैंक के बुरे दिन शुरू हो गए। 2018 में जैसे-तैसे इसे एलआईसी द्वारा बचाया गया।

दिलचस्प बात यह है कि एलआईसी द्वारा प्रमोटर का टैग लेने के बाद आईडीबीआई बैंक काफी हद तक एक निजी बैंक बन गया। 1.34 लाख करोड़ से अधिक की लोन बुक, 2.22 लाख करोड़ की जमाओं और 54.69 प्रतिशत कासा अनुपात के साथ आईडीबीआई बैंक की बैलेंस शीट काफी बड़ी है।

बैंकिंग सेक्टर पर क्या होगा असर

हाल के दिनों में बैंकों के सामने बैड लोन की समस्या काफी बढ़ गई है। यह समस्या केवल निजी बैंकों के सामने नहीं है, बल्कि सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक भी इसी समस्या का सामना कर रहे हैं। बैड लोन बढ़ने के साथ देनदारियां भी बढ़ी हैं। लेकिन इस समस्या का कोई ठोस समाधान निकलता नहीं दिखाई दे रहा। आईडीबीआई के प्राइवेटाइजेशन से बहुत सी चीजें बदलेंगी। बहुत से लोग इस निजीकरण के पक्ष में दिखाई देते हैं तो इसके विपक्ष में खड़े होने वालों की कमी भी नहीं है।

दरअसल, प्राइवेट बैंकों के छवि केवल मुनाफा कमाने वाले उपक्रम की बनकर रह गई है। खुद आरबीआई इस बात को स्वीकार कर चुका है कि सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक पूरी तरह से केवल अधिकतम लाभ के लक्ष्य पर नहीं चलते। आरबीआई ने यह भी माना है कि हाल के वर्षों में इन बैंकों ने बाजार में अधिक भरोसा हासिल किया है। कमजोर बैलेंस शीट के बावजूद इन बैंकों ने कोविड-19 महामारी के झटके को अच्छी तरह से झेला है।

आरबीआई का कहना है कि हाल ही में सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के विलय से इस क्षेत्र का एकीकरण हुआ है, जिससे अधिक मजबूत और प्रतिस्पर्धी बैंक बने हैं। सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों ने निजी बैंकों की तुलना में कृषि और उद्योग को अपने कुल ऋण का एक बड़ा हिस्सा दिया है। अगर अकेले कृषि ऋण की बात करें तो इसमें सहकारी बैंकों की हिस्सेदारी कम हो गई है जबकि पीएसबी के शेयर में वृद्धि हुई है।

आईडीबीआई के संचालन में 2014 के पहले से बहुत सी खामियां दिखाई देने लगी थीं। बढ़ता एनपीए, घटता मार्केट शेयर और लाभ में होने वाली कमी के चलते इसके बोझ को वहन करना मुश्किल होता जा रहा था। बैंक की हालत में कुछ सुधार को देखते हुए अंततः सरकार ने इससे हटने का फैसला किया।

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