ब्याज दरों में बदलाव का असर, घरेलू वित्तीय बचत फिर सात प्रतिशत के पार
महंगाई पर अंकुश लगाने के लिए पिछले साल ब्याज दरें बढ़ाने के रिजर्ब बैंक (आरबीआई) के फैसले ने उधार लेना महंगा जरूर हो गया लेकिन इसका सकारात्मक असर देश की अर्थव्यवस्था पर भी दिख रहा है। इसका असर घरेलू बचत दर पर पड़ा है जिसे बढ़ाने की कोशिश केंद्र सरकार कई सालों से कर रही है। पढ़िए क्या है पूरी खबर।
जयप्रकाश रंजन, नई दिल्ली। महंगाई थामने के लिए आरबीआई ने पिछले साल ब्याज दरों को बढ़ाने का जो फैसला किया था, उससे कर्ज तो निश्चित तौर पर महंगे हुए लेकिन इसका एक सकारात्मक असर भी देश की इकोनमी पर दिखाई देने लगा है। यह असर घरेलू वित्तीय बचत दर पर हुआ है जिसे बढ़ाने की कोशिश केंद्र सरकार पिछले कई वर्षों से कर रही है।
घरेलू बचत दर में वृद्धि
आरबीआई की मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) के कुछ सदस्यों का मानना है कि बैंकों की तरफ से जमा स्कीमों को आकर्षक बनाने की कोशिश हो रही है और उसका असर बचत दरों पर दिखाई भी देने लगा है।
महंगाई के बावजूद लोगों में वित्तीय सेक्टर में बचत की रूचि बढ़ रही है। एमपीसी की पिछली बैठक के ब्योरे के अनुसार, वित्त वर्ष 2022-23 की तीसरी तिमाही में जीडीपी के मुकाबले घरेलू बचत दर का अनुपात चार प्रतिशत था, जो चौथी तिमाही (जनवरी-मार्च, 2023) में सात प्रतिशत हो गया है।
कोरोना के बाद वित्तीय बचत में तेजी पर लगा ब्रेक
अर्थविद आशिमा गोयल ने एमपीसी की पिछली बैठक में कहा था कि कोरोना महामारी से पहले जीडीपी के अनुपात में देश की कुल वित्तीय बचत (बैंक जमा, नकदी, निवेश आदि) सात प्रतिशत होती थी, जो वित्त वर्ष 2022-23 में घटकर 5.1 प्रतिशत पर आ गई थी।
कोरोना के बाद के वर्ष में वित्तीय बचत में तेजी का रुख देखा गया था, जो आगे बरकरार नहीं रखा जा सका। हालांकि, बाद में कुल घरेलू वित्तीय बचत के बढ़ने की सूरत बन गई है। आशिमा कहती हैं कि पिछले वित्त वर्ष से यह भी देखा जा रहा है कि भारतीय घरों में भौतिक निवेश में बड़ी वृद्धि हुई है।
आने वाले दिनों में बढ़ेगा घरेलू बचत
भारत में युवा आबादी है जो कर्ज के महंगा होने के बावजूद भौतिक निवेश (रियल एस्टेट आदि) करने से पीछे नहीं हट रही। चूंकि अब बैंकों ने ब्याज दरों में वृद्धि के चक्र का फायदा जमा दरों पर देना शुरू कर दिया है, ऐसे में आने वाले दिनों में घरेलू बचत में वृद्धि होना संभव है।
वित्त वर्ष 2022-23 की अंतिम तिमाही में इसका संकेत दिखाई दिया, जब जीडीपी के मुकाबले शुद्ध वित्तीय बचत का अनुपात बढ़कर सात प्रतिशत हो गया।निवेश और आय में वृद्धि का होगा सकारात्मक असरएमपीसी के एक अन्य सदस्य डा. राजीव रंजन ने इस बैठक में कहा कि
अर्थव्यवस्था के सभी क्षेत्रों में गतिविधियों का असर घरेलू बचत पर भी दिखाई देगा। वित्त वर्ष 2022-23 में घरेलू वित्तीय बचत में 13.9 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई थी। हालांकि, जीडीपी के मुकाबले इनका अनुपात (वर्ष 2021-22 की तुलना में) कम हुआ था।
एसबीआई की आर्थिक रिपोर्ट ने क्या की टिप्पणी
बता दें कि कुछ हफ्ते पहले एसबीआई इकोरैप रिपोर्ट में कहा गया था कि पिछले कुछ वर्षों के दौरान ब्याज दरों के न्यूनतम स्तर पर आने की वजह से वित्तीय बचत पर असर दिखाई दिया है और लोग भौतिक बचत में ज्यादा रूचि ले रहे हैं।
अब चूंकि बैंकों की तरफ से जमा दरों को भी बढ़ाया जाने लगा है तो संभव है कि आम जनता फिर से बैंकों की तरफ रुख करे।ग्राहकों को फायदा देने में पीछे रहते हैं बैंकइस महीने की शुरुआत में ही आरबीआइ ने एक रिपोर्ट में बताया था कि फरवरी, 2019 से मार्च, 2022 के दौरान ब्याज दरों में जो 250 आधार अंकों (2.50 प्रतिशत) की कटौती की गई थी, तब बैंकों ने जमा दरों में औसतन 2.09 प्रतिशत की कटौती की थी।
अब अप्रैल, 2022 से सितंबर, 2023 तक जब ब्याज दरों में फिर से 2.50 प्रतिशत की बढ़ोतरी कर दी है, तब जमा दरों में सिर्फ 1.68 प्रतिशत की वृद्धि बैंकों ने की है। यानी बैंक जमा स्कीमों में ब्याज घटाने में तो आगे रहते हैं लेकिन जब ग्राहकों को फायदा देने की बात आती है तो वह तेजी नहीं दिखाते।